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14.6 साल कम जी पाती हैं दलित महिलाएं, 55.9 % हैं अनीमिया की शिकार



Ankit Francis
    नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NHFS-4) में सामने आया है कि दलित महिलाओं की औसत आयु बाकी जातियों की महिलाओं से 14.6 साल कम होती है. इससे पहले फरवरी 2018 में सामने आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में भी इस बात का दावा किया गया था कि भारत में महिलाओं की आयु उनकी जाति पर भी निर्भर करती है. NHFS की रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी, साफ-सफाई, पानी की कमी, कुपोषण, स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं की वजह से दलित महिलाएं कम जी पाती हैं. उधर हेल्थकेयर मिलने के मामले में आदिवासी महिलाओं की स्थिति सबसे बुरी है.

कम उम्र में ही मर जाती हैं दलित महिलाएं

दलितों के खिलाफ हिंसा तो अक्सर ख़बरों में रहती है लेकिन दलितों से हो रहे भेदभाव के चलते हेल्थकेयर से जुड़े सभी इंडेक्स में भी वो काफी पीछे नज़र आते हैं. NHFS की रिपोर्ट के मुताबिक देश की कुल महिलाओं की जनसंख्या का 16.6% हिस्सा दलित महिलाओं का है लेकिन सवर्ण जातियों के मुकाबले उनकी औसत आयु 14.6 साल कम है. रिपोर्ट में बताया गया है कि एक दलित महिला की औसत आयु जहां सिर्फ 39.5 साल है वहीं एक सवर्ण महिला की औसत आयु 54.1 साल है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक स्वच्छता, पेयजल जैसी सामाजिक दशाएं अगर एक जैसी भी उपलब्ध करा दीं जाएं तब भी दलित महिला और ऊंची जाति की महिला की मौत के बीच औसतन 11 साल का अंतर रहता है ।
14.6 साल कम जी पाती हैं दलित महिलाएं, 55.9 % हैं अनीमिया की शिकार
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट 'टर्निंग प्रॉमिसेज इन्टू एक्शन, जेंडर इक्वलिटी इन 2030' को तैयार करने में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ दलित स्टडीज के एक अध्ययन को आधार बनाया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक 89 देशों में करीब 33 करोड़ महिलाएं गरीब हैं और भारत में दलित-आदिवासी महिलाओं की स्थिति सबसे चिंताजनक है. NHFS की रिपोर्ट में सामने आया है कि हेल्थकेयर के मामले में आदिवासी महिलाओं की स्थिति सबसे बुरी है. 76.7% आदिवासी महिलाओं को बीमार पड़ने पर इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती जबकि 70.4% दलित महिलाओं के लिए भी यही स्थिति बनी हुई है. ओबीसी महिलाओं में से 66.7% जबकि सवर्ण महिलाओं में से 61.3% को बीमार होने पर बेसिक इलाज की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाती.

 अनीमिया और प्रेग्नेंसी के दौरान देखभाल
भारत में 25-49 साल उम्र की अनीमिया की शिकार महिलाओं में से 55.9 % महिलाएं दलित हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक देश भर की कुल महिलाओं में से 53% महिलाएं अनीमिया की गिरफ्त में हैं. जबकि प्रेग्नेंसी के दौरान उचित मेडिकल सुविधाएं मिलने के मामले में भी दलित-आदिवासी महिलाएं सबसे पीछे हैं. सर्वे के मुताबिक 15-49 उम्र की सवर्ण जातियों की 70.3% महिलाओं को ये सुविधाएं मिलती हैं जबकि 54.6% दलित, 47.9% आदिवासी और 57.2% महिलाओं को ही ये सुविधा हासिल हो पाती हैं. बच्चे की डिलीवरी के मामले में डॉक्टर की सुविधा सिर्फ 52.2 % दलित महिलाओं को मिल पाती है. 15-49 साल की हर चार में से एक दलित महिला कुपोषण की शिकार है जबकि सवर्ण महिलाओं में ये आंकड़ा हर छह में से एक महिला का है.
क्या है वजह
NHFS-4 की रिपोर्ट में जो बातें सामने आई हैं वो साल 2015 में आई लैंसेट रिपोर्ट- हेल्थ एंड द इंडिया कास्ट सिस्टम की बातों को दोहराती है. इस रिपोर्ट में भी बताया गया था कि कैसे जातीय व्यवस्था हेल्थकेयर से जुड़ी सुविधाओं के मामले में भी एक गैरबराबरी पैदा कर रहा है. रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि सामान्य आर्थिक स्थिति वाले घरों में महिलाओं का 12 प्रतिशत समय, पानी और जलावन का इंतजाम करने में ही निकल जाता है. जबकि गरीब और दलित महिलाओं को इसी काम में दोगुना यानी 24 प्रतिशत समय लग जाता है. यानी सामान्य वर्ग की महिलाओं की तो हालत खराब है ही, दलित और गरीब वर्ग की महिलाओं के मामले में हाल और बुरा हो जाता है.

इसके आलावा दलित-आदिवासी महिलाओं को शिक्षा से जुड़े मौके भी बाकी कि तुलना में काफी कम मिलते हैं. इससे उनके प्रति भेदभाव बढ़ता है और नौकरी करने की आज़ादी और हेल्थकेयर के मामले में भी उनकी स्थिति बाकी महिलाओं के मुकाबले बुरी हो जाती है. शिक्षा के क्षेत्र की बात करें तो भारत में पुरुषों की साक्षरता दर 85 प्रतिशत है और महिलाओं की सिर्फ 65 प्रतिशत. लेकिन दलित महिलाओं की शिक्षा दर इससे भी आठ प्रतिशत कम यानी 57 प्रतिशत ही है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था में उनकी हैसियत ही यह भी तय करती है कि कार्यस्थल पर उनका कितना शोषण हो सकता है. दलित महिलाएं सीधे तौर पर भी सामाजिक हिंसा के निशाने पर भी सबसे ऊपर होती हैं.
जानकारों के मुताबिक दलित महिलाएं दोहरी हिंसा, उपेक्षा, अपमान और घोर अभाव की सबसे बड़ी शिकार होती हैं और यही कारण उनकी औसत उम्र कम होने के अहम कारण बन जाते हैं. दलित महिलाएं जाति व्यवस्था के बुरे परिणामों और लैंगिक भेदभाव की सबसे बड़ी शिकार हैं. इंटरनेशनल दलित सॉलिडैरिटी नेटवर्क के मुताबिक जाति के चलते पर दलित महिलाओं को यौन हिंसा, गाली-गलौज, मारपीट, अन्य तरह के जातीय हमलों का शिकार होना पड़ता है वहीं दूसरी तरफ, लिंगभेद के कारण उन्हें कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा और कम उम्र में विवाह के कारण होने वाले कई स्तरों के अत्याचार झेलने पड़ते हैं.

NHFS-4 रिपोर्ट के अनुसार गरीबी, साफ-सफाई, पानी की कमी, कुपोषण, स्वास्थ्यगत समस्याओं की वजह से दलित महिलाएं कम जी पाती हैं. संपन्नता और इलाके का भी महिलाओं की आयु पर काफी असर पड़ता है. गरीब महिलाओं की शादी 18 साल से पहले होने की प्रायिकता ज्यादा होती है. ऐसी महिलाओं के पास खुद पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं होते. दलित महिलाएं भूमिहीन होती हैं, इसलिए उनकी गरीबी बनी रहती है. यही नहीं, दलित महिला की कम शिक्षा या सामाजिक भेदभाव की वजह से नौकरी में भी उसका शोषण होता है, पर्याप्त तनख्वाह नहीं मिलती.(साभार न्यूज 18)