बिहार 2019: लालू-माया-लेफ्ट साथ आए तो नीतीश-बीजेपी का क्या होगा?
- अंकित फ्रांसिस
- पटना 26 जून 2018 ।।
2019 लोकसभा चुनावों के लिए लालू प्रसाद यादव की आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल), मायावती की बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) और लेफ्ट की दो पार्टियों सीपीआई, सीपीआई-एमएल से गठबंधन कर सकती हैं. जानकारी के मुताबिक इस गठबंधन के लिए आरजेडी आगे बढ़कर सभी पार्टियों को साथ लाने का काम कर रही है, लेकिन बीएसपी सीट शेयरिंग के फ़ॉर्मूले पर पहले बातचीत करना चाहती है.
महादलितों के नेता जीतन राम मांझी के बीजेपी से अलग हो कर लालू के साथ आ जाने के बाद बीएसपी और लेफ्ट के जरिए आरजेडी दलित, मुस्लिम और गैर यादव ओबीसी पर निशाना साधने की तैयारी में है. हालांकि बिहार में बीजेपी के बढ़ते वोट शेयर का मुकाबला करने के लिए लालू का ये फ़ॉर्मूला कितना कारगर साबित होगा, उस पर अभी भी सवाल कायम है...
महादलितों के नेता जीतन राम मांझी के बीजेपी से अलग हो कर लालू के साथ आ जाने के बाद बीएसपी और लेफ्ट के जरिए आरजेडी दलित, मुस्लिम और गैर यादव ओबीसी पर निशाना साधने की तैयारी में है. हालांकि बिहार में बीजेपी के बढ़ते वोट शेयर का मुकाबला करने के लिए लालू का ये फ़ॉर्मूला कितना कारगर साबित होगा, उस पर अभी भी सवाल कायम है...
आरजेडी को चाहिए पार्टनर
2015 के विधानसभा चुनावों में भले ही सीटों के मामले में आरजेडी 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर लौटी हो, लेकिन वोट प्रतिशत के मामले में वो जदयू के साथ होने के बावजूद सिर्फ 18.4% पर ही रही थी. जबकि 2014 में मोदी लहर और सिर्फ 4 लोकसभा सीटों पर सिमटने के बाद भी उसका वोट शेयर 20% से ज्यादा था. उधर जदयू पर नज़र डाली जाए तो 71 सीटों के साथ उसके हिस्से 16.8% वोट शेयर था.
आरजेडी के लिए परेशानी का सबब बीजेपी का बीते चुनावों में तेजी से बढ़ता वोट शेयर है. 2015 के चुनावों में ये 53 सीटों के साथ 24.4% तक पहुंच गया है. उधर एनडीए की तीसरी पार्टनर राम विलास पासवान की एलजेपी (लोक जनशक्ति पार्टी) विधानसभा चुनावों में भले ही 2 सीट जीत पाई, लेकिन अपने 4% वोट शेयर पर कायम रही. ऐसे में बीते तीन लोकसभा चुनावों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो आरजेडी गठबंधन के लिए कांग्रेस ज़रूरी नज़र आती है.
क्या कहते हैं पिछले तीन लोकसभा चुनाव
तेजस्वी यादव और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बढ़ती नजदीकियों से ये अब लगभग साफ़ है कि दोनों पार्टियां 2019 में साथ चुनाव लड़ने जा रहीं हैं. हालांकि बसपा और लेफ्ट पार्टियों के गठबंधन में आने के बावजूद सीटों का फ़ॉर्मूला क्या रहेगा ये स्पष्ट नहीं है. बीते तीन चुनावों पर नज़र डालें तो आरजेडी के वोट शेयर में लगातार गिरावट देखी गई है. 2004 के चुनावों में 30% से ज्यादा वोट के साथ 22 सीटें जीतने वाली आरजेडी 2009 में 19% वोट के साथ 4 और 2014 में भी 20% वोट के साथ 4 सीटों पर सिमटी रही. उधर कांग्रेस की बात करें तो 2004 में 4.5% वोट शेयर के साथ 3 सीट जीतने के बाद 2009 में भले ही वो 2 सीटों पर सिमट गई हो लेकिन उसका वोट शेयर बढ़कर 10% हो गया. साल 2014 में भी ये वोट शेयर घटकर 8.57% तो हुआ लेकिन 2 सीटें जीतने में कांग्रेस कामयाब रही.
16% दलित आबादी वाले बिहार में मायावती की बीएसपी का प्रभाव सिर्फ तीन सीटों सासाराम, कैमूर और भोजपुर पर ही माना जाता है. इसकी एक वजह ये भी है कि राज्य के पास रामविलास पासवान और जीतन राम मांझी जैसे अपने दलित नेता मौजूद हैं. बिहार में बसपा ने बीते तीन लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीती लेकिन 2004, 2009 और 2014 में उसे 3.58, 4.4 और 2.7% वोट मिलता रहा है. लेफ्ट की बात करें तो सीपीआई और सीपीआई-एमएल के प्रभाव वाली कुल पांच सीटें मानी जाती हैं. इनमें बेगुसराय, आरा, उजियारपुर, आरा और सिवान शामिल हैं. इन दोनों पार्टियों को संयुक्त रूप से बीते तीन लोकसभा चुनावों में क्रमशः 3.1, 3.4 और 2.4 वोट मिले, हालांकि सीट एक भी नहीं जीत पाए. बहरहाल ये चारों पार्टियां साथ भी आ जाएं तो आरजेडी गठबंधन के पास औसत 38% के आस-पास वोट शेयर नज़र आता है. हालांकि जीतन राम मांझी के लालू के साथ आने से 16% दलित वोटों में मौजूद 8% महादलित भी इस गठबंधन के पास लौट सकते हैं.
NDA भी कमज़ोर नहीं
भले ही कांग्रेस, आरजेडी, बीएसपी और लेफ्ट के साथ आने से बिहार में नया महागठबंधन बनता नज़र आ रहा हो लेकिन जेडीयू, बीजेपी और एलजेपी के साथ होने से एनडीए भी कमज़ोर नज़र नहीं आता है. 2015 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू के हिस्से 16.8, बीजेपी के पास 24.4 जबकि एलजेपी के हिस्से 4.8% वोट शेयर था. बीते तीन लोकसभा चुनावों की बात करें तो जेडीयू के वोट शेयर में लगातार गिरावट देखी गई है 2004 में 22.3% से बढ़ते हुए हुए ये 2009 में 24.1 तक गया लेकिन 2014 में 16% पर आ गया.
उधर बीजेपी ने राज्य में अप्रत्याशित तरक्की की है 2004, 2009 में 14.57 और 13% वोट शेयर वाली पार्टी 2014 में 29.89% के साथ वोट शेयर के मामले में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. 2015 में लालू और नीतीश के साथ आने के बावजूद उसके वोट शेयर में सिर्फ 5% की ही कमी देखी गई. एलजेपी भले ही विधानसभा चुनावों में 2 सीटों पर सिमट गई हो लेकिन पिछले तीन लोकसभा चुनावों में उसने 8.2, 6.5 और 6.5% वोट शेयर हासिल किया है. ऐसे औसतन इस गठबंधन के पास करीब 45% वोट शेयर नज़र आता है, हालांकि मांझी के न होने से वोट शेयर में कमी देखे जाना तय माना जा रहा है.
क्या कह रही है राजद और बीएसपी
राजद के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र का कहना है कि महागठबंधन का दयारा बढ़ाने के लिए लगातार बात चल रही है. बीएसपी, एसपी, लेफ्ट, कांग्रेस, टीएमसी समेत सभी एनडीए विरोधी पार्टियों से बातचीत हो रही है. राजद प्रवक्ता ने कहा कि ईडी और सीबीआई का डर दिखाकर राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को डराया धमकाया जा रहा है जबकि नीरव मोदी, माल्या जैसे लोगों के खिलाफ सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है. जो लोग सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं उन्हें अलग अलग केसों में फंसाया जा रहा है. इस सवाल पर कि किस स्तर और कब तक महागठबंधन का खुलासा होगा तो उनका कहना है कि अभी बातचीत चल रही है और समय आने पर खुलासा किया जाएगा. उधर बीएसपी के बिहार-झारखंड प्रभारी तिलक चंद अहिरवार ने भी माना कि बातचीत चल रही है और सभी पार्टियां चाहती हैं कि बीजेपी से देश को मुक्त कराया जाए. अहिरवार ने कहा कि फिलहाल बहनजी ने बिहार में संगठन को मजबूत करने के लिए काम करने को कहा है और इसी दिशा में काम किया जा रहा है.
आरजेडी के निशाने पर दलित-मुस्लिम और गैर यादव
बिहार के जातीय समीकरण पर नज़र डालें तो 51% ओबीसी आबादी है जिनमें 14% यादव, 8% कुशवाहा, 4% कुर्मी और 26% में ईबीसी जातियां मौजूद हैं. इसके आलावा 16% दलित हैं जिनमें 8% के आस-पास महादलित मौजूद हैं. इसके आलावा 17% मुस्लिम और 15% अगड़ी जातियां शामिल हैं. इनमें से यादव और मुस्लिमों का बड़ा हिस्सा आरजेडी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है जबकि अगड़ी जातियां बीजेपी और कुर्मी+ईबीसी नीतीश का समर्थन करती हैं. RLSP के पास भी 3% वोट बैंक है जिसमें कुशवाहा का बड़ा हिस्सा शामिल है. जानकारों के मुताबिक आरजेडी से गैर यादव ओबीसी जातियां नाराज़ रहती हैं और उन्हीं के चलते बीजेपी सबसे बड़े वोट शेयर वाली पार्टी बनकर उभरी है.
बता दें कि आपको बता दें कि 2014 के आम चुनाव में बसपा अकेले चुनाव लड़ी थी और 7.65 लाख वोट हासिल की थी, जो कि 2015 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 7.88 लाख हो गया था. लालू यादव ने अगस्त 2017 में पटना में आयोजित 'भाजपा भगाओ देश बचाओ' रैली के जरिए गैर एनडीए दलों को साथ लाने का प्रयास किया था लेकिन उस वक्त बसपा सुप्रीमो मायावती ने लालू के निमंत्रण को ठुकराते हुए कहा था कि जब तक आगामी आम चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे और महागठबंधन का प्रारुप तय नहीं हो जाता है, तब तक बसपा किसी के साथ मंच साझा नहीं करेगी.
मायावती ने जोर देते हुए कहा था कि बसपा किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन तभी करेगी जब उसे सम्मानित संख्या में सीटें दी जाएगी, अन्यथा वह चुनाव अकेले लड़ेगी. राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन पर बात यहीं अटकी हुई हैं. हालांकि कर्नाटक में लालू समेत विपक्ष के नेताओं के साथ स्टेज शेयर कर मायावती ने नरमी के संकेत भी दिए हैं और आरजेडी के मुताबिक सीट शेयर के फ़ॉर्मूले पर बीएसपी से बातचीत जारी है. मिल रही जानकारी के मुताबिक फिलहाल आरजेडी यादव, मुस्लिम और दलित के कॉम्बिनेशन पर काम कर रही है और गैर-यादव जातियों को भी वापस लाने के लिए काम किया जा रहा है ।(साभार न्यूज 18)
2015 के विधानसभा चुनावों में भले ही सीटों के मामले में आरजेडी 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर लौटी हो, लेकिन वोट प्रतिशत के मामले में वो जदयू के साथ होने के बावजूद सिर्फ 18.4% पर ही रही थी. जबकि 2014 में मोदी लहर और सिर्फ 4 लोकसभा सीटों पर सिमटने के बाद भी उसका वोट शेयर 20% से ज्यादा था. उधर जदयू पर नज़र डाली जाए तो 71 सीटों के साथ उसके हिस्से 16.8% वोट शेयर था.
आरजेडी के लिए परेशानी का सबब बीजेपी का बीते चुनावों में तेजी से बढ़ता वोट शेयर है. 2015 के चुनावों में ये 53 सीटों के साथ 24.4% तक पहुंच गया है. उधर एनडीए की तीसरी पार्टनर राम विलास पासवान की एलजेपी (लोक जनशक्ति पार्टी) विधानसभा चुनावों में भले ही 2 सीट जीत पाई, लेकिन अपने 4% वोट शेयर पर कायम रही. ऐसे में बीते तीन लोकसभा चुनावों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो आरजेडी गठबंधन के लिए कांग्रेस ज़रूरी नज़र आती है.
क्या कहते हैं पिछले तीन लोकसभा चुनाव
तेजस्वी यादव और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बढ़ती नजदीकियों से ये अब लगभग साफ़ है कि दोनों पार्टियां 2019 में साथ चुनाव लड़ने जा रहीं हैं. हालांकि बसपा और लेफ्ट पार्टियों के गठबंधन में आने के बावजूद सीटों का फ़ॉर्मूला क्या रहेगा ये स्पष्ट नहीं है. बीते तीन चुनावों पर नज़र डालें तो आरजेडी के वोट शेयर में लगातार गिरावट देखी गई है. 2004 के चुनावों में 30% से ज्यादा वोट के साथ 22 सीटें जीतने वाली आरजेडी 2009 में 19% वोट के साथ 4 और 2014 में भी 20% वोट के साथ 4 सीटों पर सिमटी रही. उधर कांग्रेस की बात करें तो 2004 में 4.5% वोट शेयर के साथ 3 सीट जीतने के बाद 2009 में भले ही वो 2 सीटों पर सिमट गई हो लेकिन उसका वोट शेयर बढ़कर 10% हो गया. साल 2014 में भी ये वोट शेयर घटकर 8.57% तो हुआ लेकिन 2 सीटें जीतने में कांग्रेस कामयाब रही.
16% दलित आबादी वाले बिहार में मायावती की बीएसपी का प्रभाव सिर्फ तीन सीटों सासाराम, कैमूर और भोजपुर पर ही माना जाता है. इसकी एक वजह ये भी है कि राज्य के पास रामविलास पासवान और जीतन राम मांझी जैसे अपने दलित नेता मौजूद हैं. बिहार में बसपा ने बीते तीन लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीती लेकिन 2004, 2009 और 2014 में उसे 3.58, 4.4 और 2.7% वोट मिलता रहा है. लेफ्ट की बात करें तो सीपीआई और सीपीआई-एमएल के प्रभाव वाली कुल पांच सीटें मानी जाती हैं. इनमें बेगुसराय, आरा, उजियारपुर, आरा और सिवान शामिल हैं. इन दोनों पार्टियों को संयुक्त रूप से बीते तीन लोकसभा चुनावों में क्रमशः 3.1, 3.4 और 2.4 वोट मिले, हालांकि सीट एक भी नहीं जीत पाए. बहरहाल ये चारों पार्टियां साथ भी आ जाएं तो आरजेडी गठबंधन के पास औसत 38% के आस-पास वोट शेयर नज़र आता है. हालांकि जीतन राम मांझी के लालू के साथ आने से 16% दलित वोटों में मौजूद 8% महादलित भी इस गठबंधन के पास लौट सकते हैं.
NDA भी कमज़ोर नहीं
भले ही कांग्रेस, आरजेडी, बीएसपी और लेफ्ट के साथ आने से बिहार में नया महागठबंधन बनता नज़र आ रहा हो लेकिन जेडीयू, बीजेपी और एलजेपी के साथ होने से एनडीए भी कमज़ोर नज़र नहीं आता है. 2015 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू के हिस्से 16.8, बीजेपी के पास 24.4 जबकि एलजेपी के हिस्से 4.8% वोट शेयर था. बीते तीन लोकसभा चुनावों की बात करें तो जेडीयू के वोट शेयर में लगातार गिरावट देखी गई है 2004 में 22.3% से बढ़ते हुए हुए ये 2009 में 24.1 तक गया लेकिन 2014 में 16% पर आ गया.
उधर बीजेपी ने राज्य में अप्रत्याशित तरक्की की है 2004, 2009 में 14.57 और 13% वोट शेयर वाली पार्टी 2014 में 29.89% के साथ वोट शेयर के मामले में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. 2015 में लालू और नीतीश के साथ आने के बावजूद उसके वोट शेयर में सिर्फ 5% की ही कमी देखी गई. एलजेपी भले ही विधानसभा चुनावों में 2 सीटों पर सिमट गई हो लेकिन पिछले तीन लोकसभा चुनावों में उसने 8.2, 6.5 और 6.5% वोट शेयर हासिल किया है. ऐसे औसतन इस गठबंधन के पास करीब 45% वोट शेयर नज़र आता है, हालांकि मांझी के न होने से वोट शेयर में कमी देखे जाना तय माना जा रहा है.
क्या कह रही है राजद और बीएसपी
राजद के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र का कहना है कि महागठबंधन का दयारा बढ़ाने के लिए लगातार बात चल रही है. बीएसपी, एसपी, लेफ्ट, कांग्रेस, टीएमसी समेत सभी एनडीए विरोधी पार्टियों से बातचीत हो रही है. राजद प्रवक्ता ने कहा कि ईडी और सीबीआई का डर दिखाकर राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को डराया धमकाया जा रहा है जबकि नीरव मोदी, माल्या जैसे लोगों के खिलाफ सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है. जो लोग सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं उन्हें अलग अलग केसों में फंसाया जा रहा है. इस सवाल पर कि किस स्तर और कब तक महागठबंधन का खुलासा होगा तो उनका कहना है कि अभी बातचीत चल रही है और समय आने पर खुलासा किया जाएगा. उधर बीएसपी के बिहार-झारखंड प्रभारी तिलक चंद अहिरवार ने भी माना कि बातचीत चल रही है और सभी पार्टियां चाहती हैं कि बीजेपी से देश को मुक्त कराया जाए. अहिरवार ने कहा कि फिलहाल बहनजी ने बिहार में संगठन को मजबूत करने के लिए काम करने को कहा है और इसी दिशा में काम किया जा रहा है.
आरजेडी के निशाने पर दलित-मुस्लिम और गैर यादव
बिहार के जातीय समीकरण पर नज़र डालें तो 51% ओबीसी आबादी है जिनमें 14% यादव, 8% कुशवाहा, 4% कुर्मी और 26% में ईबीसी जातियां मौजूद हैं. इसके आलावा 16% दलित हैं जिनमें 8% के आस-पास महादलित मौजूद हैं. इसके आलावा 17% मुस्लिम और 15% अगड़ी जातियां शामिल हैं. इनमें से यादव और मुस्लिमों का बड़ा हिस्सा आरजेडी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है जबकि अगड़ी जातियां बीजेपी और कुर्मी+ईबीसी नीतीश का समर्थन करती हैं. RLSP के पास भी 3% वोट बैंक है जिसमें कुशवाहा का बड़ा हिस्सा शामिल है. जानकारों के मुताबिक आरजेडी से गैर यादव ओबीसी जातियां नाराज़ रहती हैं और उन्हीं के चलते बीजेपी सबसे बड़े वोट शेयर वाली पार्टी बनकर उभरी है.
बता दें कि आपको बता दें कि 2014 के आम चुनाव में बसपा अकेले चुनाव लड़ी थी और 7.65 लाख वोट हासिल की थी, जो कि 2015 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 7.88 लाख हो गया था. लालू यादव ने अगस्त 2017 में पटना में आयोजित 'भाजपा भगाओ देश बचाओ' रैली के जरिए गैर एनडीए दलों को साथ लाने का प्रयास किया था लेकिन उस वक्त बसपा सुप्रीमो मायावती ने लालू के निमंत्रण को ठुकराते हुए कहा था कि जब तक आगामी आम चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे और महागठबंधन का प्रारुप तय नहीं हो जाता है, तब तक बसपा किसी के साथ मंच साझा नहीं करेगी.
मायावती ने जोर देते हुए कहा था कि बसपा किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन तभी करेगी जब उसे सम्मानित संख्या में सीटें दी जाएगी, अन्यथा वह चुनाव अकेले लड़ेगी. राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन पर बात यहीं अटकी हुई हैं. हालांकि कर्नाटक में लालू समेत विपक्ष के नेताओं के साथ स्टेज शेयर कर मायावती ने नरमी के संकेत भी दिए हैं और आरजेडी के मुताबिक सीट शेयर के फ़ॉर्मूले पर बीएसपी से बातचीत जारी है. मिल रही जानकारी के मुताबिक फिलहाल आरजेडी यादव, मुस्लिम और दलित के कॉम्बिनेशन पर काम कर रही है और गैर-यादव जातियों को भी वापस लाने के लिए काम किया जा रहा है ।(साभार न्यूज 18)
बिहार 2019: लालू-माया-लेफ्ट साथ आए तो नीतीश-बीजेपी का क्या होगा?
Reviewed by बलिया एक्सप्रेस
on
June 26, 2018
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