जम्मू कश्मीर :- आतंकियों ने की वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की गोली मारकर हत्या , निर्भीक पत्रकारिता पर पहले भी कई बार हुआ था हमला
बुखारी को थी हत्या की आशंका! लिखा था- 'कश्मीर में पत्रकारिता के लिए जिंदा रहना पहली चुनौती'
फोटो शुजात बुखारी
(शेख सालिख की जम्मू कश्मीर से रिपोर्ट,)
सीनियर जर्नलिस्ट और 'राइज़िंग कश्मीर' न्यूज़पेपर के एडिटर शुजात बुखारी को क्या अपनी हत्या की आशंका पहले ही हो गई थी? तीन महीने पहले उनके एक आर्टिकल से ऐसा लगता है. तीन महीने पहले 'राइज़िंग कश्मीर' के 10 साल पूरे होने पर शुजात बुखारी ने एक एडिटोरियल लिखा था. इसमें उन्होंने पत्रकारिता की चुनौतियों का जिक्र किया था. बुखारी ने लिखा था, "कश्मीर में किसी भी पत्रकारिता के लिए पहली चुनौती खुद का जिंदा रहना और सुरक्षित रहना है."
सीनियर जर्नलिस्ट और 'राइज़िंग कश्मीर' न्यूज़पेपर के एडिटर शुजात बुखारी को क्या अपनी हत्या की आशंका पहले ही हो गई थी? तीन महीने पहले उनके एक आर्टिकल से ऐसा लगता है. तीन महीने पहले 'राइज़िंग कश्मीर' के 10 साल पूरे होने पर शुजात बुखारी ने एक एडिटोरियल लिखा था. इसमें उन्होंने पत्रकारिता की चुनौतियों का जिक्र किया था. बुखारी ने लिखा था, "कश्मीर में किसी भी पत्रकारिता के लिए पहली चुनौती खुद का जिंदा रहना और सुरक्षित रहना है."
बता दें कि गुरुवार को शुजात बुखारी की गोली मारकर हत्या कर दी गई. अज्ञात हमलावरों ने उनकी कार को निशाना बनाकर ताबड़तोड़ फायरिंग की. बुखारी को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. वारदात के दौरान बुखारी अपने दफ्तर से किसी इफ्तार पार्टी में जा रहे थे. इस हमले में शुजात बुखारी की सुरक्षा में तैनात जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक जवान की भी मौत हो गई.
बुखारी कश्मीर के एक जाने-माने जर्नलिस्ट थे. उन्हें घाटी में अपनी साहसिक और निर्भीक पत्रकारिता के लिए जाना जाता था. इसके पहले उनपर तीन बार हमले हो चुके थे. दो बार उन्हें अगवा भी किया जा चुका था. हालांकि, तीनों बार हुए हमलों में वो बाल-बाल बच गए.
मानवाधिकारों पर ज्यादातर लिखने वाले शुजात बुखारीमहबूबा सरकार में कानून मंत्री सैयद बशरत बुखारी के भाई थे. वह कश्मीर में 'द हिंदू' अखबार के ब्यूरो चीफ भी रहे. कश्मीर में शांति बहाल करने को लेकर शुजात बुखारी सक्रिय लंबे समय से सक्रिय रहे थे. उन्होंने कश्मीर घाटी में शांति के लिए कई कॉन्फ्रेंस आयोजित कराने में अहम भूमिका निभाई थी. वह पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए ट्रेक 2 प्रकिया के भी हिस्सा थे.
बुखारी अपने अखबार में ज्यादातर मानवाधिकार और कश्मीर समस्या पर एडिटोरियल लिखा करते थे. हाल में लिखे एक एडिटोरियल में बुखारी ने रमज़ान सीज़फायर का ज़िक्र किया था. उन्होंने लिखा था, "घाटी में तमाम घटनाओं और आतंकियों के विरोध के बाद भी सीज़फायर का सकारात्मक असर दिखा. इससे आम आदमी को एक उम्मीद जगी कि घाटी में भी अमन-चैन का माहौल लाया जा सकता है. आतंक के रास्ते पर भटके युवाओं और स्थानीय लोगों की मौत से माहौल काफी खराब हो गया था, जो असहनीय है.'
बता दें कि शुजात बुखारी को अपनी साहसिक पत्रकारिता के लिए कई अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं. इसमें वर्ल्ड प्रेस इंस्टीट्यूट यूएसए फेलोशिप भी शामिल है. बुखारी ने एंटिनियो डी मनीला यूनिवर्सिटी से जर्नलिस्म की पढ़ाई की है. बुखारी यूएसए के हवाई में ईस्ट वेस्ट सेंटर के फेलो भी रहे हैं.
(साभार न्यूज 18)