रमज़ान के बाद ही क्यों मनाई जाती है ईद? कब हुई इसकी शुरुआत
इस्लामी कैलेण्डर के नौंवे महीने रमज़ान के पूरे होने के बाद दसवां महीना शुरू होता है. इस महीने का नाम शव्वाल है, इसकी पहली तारीख को ही ईद उल-फ़ित्र मनाई जाती है. सभी इस्लामी महीनों की तरह इस महीने की शुरुआत भी चांद दिखने पर होती है. रमज़ान का चांद डूबने और ईद का चांद नज़र आने के अगले दिन यानि चांद की पहली तारीख़ को 'ईद' मनाई जाती है.
ईद इस्लाम के मानने वालों का सबसे बड़ा त्यौहार है. इस्लाम के इतिहास में पहली दफ़ा ईद उल-फ़ित्र का त्यौहार पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में मनाया था. कहा जाता है उस समय पैगम्बर ने 'जंग-ए-बदर' नाम की जंग में फतह हासिल भी की थी ।
ईद इस्लाम के मानने वालों का सबसे बड़ा त्यौहार है. इस्लाम के इतिहास में पहली दफ़ा ईद उल-फ़ित्र का त्यौहार पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में मनाया था. कहा जाता है उस समय पैगम्बर ने 'जंग-ए-बदर' नाम की जंग में फतह हासिल भी की थी ।
ईद मनाने की एक और वजह पूरे एक महीने तक रोज़े रख, फर्ज काम को पूरा करने की खुशी भी है. ईद, खुदा का शुक्रिया अदा करने के लिए मनाई जाती है कि अल्लाह ने उन्हें महीने भर रोज़ा रखने की हिम्मत दी. ईद के दिन की शुरुआत ईद की नमाज़ से होती है. ये नमाज़ मस्जिद/ईदगाह में अदा की जाती है.
ईद का चांद दिखने के बाद, हर घर से ज़कात निकाली जाती है. जिसे ज़कात उल-फ़ितर या फितरा कहते हैं. इसमें कुछ रुपये तय किये जाते हैं, माना जाता है वे पैसे पूरे साल खाए गए खाने के एक दिन के खर्च के बराबर होंगे. परिवार में जितने सदस्य हैं, उता फितरा निकाला जाता है. मसलन एक दिन के खाने के 250 रुपए तय किए गए हैं और परिवार में 4 सदस्य हैं तो उस घर से फितरे के 1000 रुपए निकाले जाएंगे.
कुछ समुदायों में जक़ात के पैसे प्रतिदिन खाए जाने वाली चीज़ों की कीमत को किलोग्राम के हिसाब से तय किया जाता है. जैसे आटा, चावल के दो या ढाई किलो के हिसाब की कीमत का हिसाब लगाकर जक़ात दी जाती है. जकात के पैसे ज़रुरतमंद या मस्जिद में दिए जाते हैं. हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो नमाज़ के बाद जकात उल-फ़ित्र दे.
शव्वाल के महीने में ईद का जश्न शुरुआती तीन दिन तक मनाया जाता है. माना जात है ईद पर गले मिलकर हर अजीज से गिले शिकवों दूर कर देंगे. त्यौहार की खुशी में घर में मीठे पकवान बनते हैं, जिसमें सेवई ख़ास है. ईद पर नए कपड़े भी पहने जाते हैं और सबसे खास होती है, घर-परिवार के बड़े, छोटो को ईदी देते हैं. ईदी के तौर पर पैसे या तोहफे दिए जाते हैं ।(साभार न्यूज 18)
ईद का चांद दिखने के बाद, हर घर से ज़कात निकाली जाती है. जिसे ज़कात उल-फ़ितर या फितरा कहते हैं. इसमें कुछ रुपये तय किये जाते हैं, माना जाता है वे पैसे पूरे साल खाए गए खाने के एक दिन के खर्च के बराबर होंगे. परिवार में जितने सदस्य हैं, उता फितरा निकाला जाता है. मसलन एक दिन के खाने के 250 रुपए तय किए गए हैं और परिवार में 4 सदस्य हैं तो उस घर से फितरे के 1000 रुपए निकाले जाएंगे.
कुछ समुदायों में जक़ात के पैसे प्रतिदिन खाए जाने वाली चीज़ों की कीमत को किलोग्राम के हिसाब से तय किया जाता है. जैसे आटा, चावल के दो या ढाई किलो के हिसाब की कीमत का हिसाब लगाकर जक़ात दी जाती है. जकात के पैसे ज़रुरतमंद या मस्जिद में दिए जाते हैं. हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो नमाज़ के बाद जकात उल-फ़ित्र दे.
शव्वाल के महीने में ईद का जश्न शुरुआती तीन दिन तक मनाया जाता है. माना जात है ईद पर गले मिलकर हर अजीज से गिले शिकवों दूर कर देंगे. त्यौहार की खुशी में घर में मीठे पकवान बनते हैं, जिसमें सेवई ख़ास है. ईद पर नए कपड़े भी पहने जाते हैं और सबसे खास होती है, घर-परिवार के बड़े, छोटो को ईदी देते हैं. ईदी के तौर पर पैसे या तोहफे दिए जाते हैं ।(साभार न्यूज 18)