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गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया रोहिंग्याओं को बड़ा खतरा, घुसपैठ रोकने के लिए राज्यों को दिए ये निर्देश

गृह मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी ने कहा, "सभी राज्य रोहिंग्या मुस्लिमों समेत गैर कानूनी तरीके से एंट्री लेने वाले लोगों के खिलाफ जरूरी कदम उठाए. इस मामले की समीक्षा करें और इसे रोकने के लिए जल्द से जल्द रिपोर्ट दें"      नई दिल्ली एक दिन पहले म्यांमार ने बांग्लादेश से 7 लाख रोहिंग्या मुसलमानों को वापस बुलाने की इच्छा जाहिर की है. वहीं, अब भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर समेत सभी राज्य सरकारों से गैर कानूनी ढंग से राज्य में एंट्री करने वालों के खिलाफ कदम उठाने को कहा है. गृह मंत्रालय ने इस संबंध में जम्मू-कश्मीर के चीफ सेक्रेटरी समेत अन्य राज्यों को चिट्ठी लिखी है. गृह मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी ने कहा, "सभी राज्य रोहिंग्या मुस्लिमों समेत गैर कानूनी तरीके से एंट्री लेने वाले लोगों के खिलाफ जरूरी कदम उठाए. इस मामले की समीक्षा करें और इसे रोकने के लिए जल्द से जल्द रिपोर्ट दें" गृह मंत्रालय ने कहा, "गैर कानूनी ढंग से देश में रह रहे लोग देश की सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती हो सकते हैं. इन लोगों के देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की खबर भी कई बार मिल चुकी है." गृह मंत्रालय ने यह भी कहा, "इस बारे में जानकारी मिली है कि रोहिंग्या और ऐसे कुछ विदेशी अपराध, देश विरोधी गतिविधि, मनी लॉन्ड्रिंग, फर्जी दस्तावेज बनाने के काम में शामिल हैं. इनमें कई फर्जी पैन कार्ड और वोटर कार्ड के साथ देश में रह रहे हैं. इनमें ज्यादातर लोगों ने गैर-कानूनी ढंग से देश में प्रवेश किया है. इसलिए हमें पहले से कहीं ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है." गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर जरूरी निर्देश भी दिए हैं: गृह मंत्रालय ने राज्यों के लिए कुछ निर्देश जारी किए हैं. पहला निर्देश ये है कि इन शरणार्थियों को चिन्हित जगहों पर रखा जाए. राज्य की पुलिस और सुरक्षा एजेंसी इनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे. गृह मंत्रालय ने निर्देश दिया कि इन रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों की पहचान होनी चाहिए. उसका नाम, जन्म की तारीख, जन्म स्थान, माता-पिता का नाम, किस देश से हैं सबकी जानकारी इकट्ठा होनी चाहिए. गृह मंत्रालय ने यह भी कहा कि गैर कानूनी रूप से देश में घुसे शरणार्थी की बायोमैट्रिक पहचान लेनी चाहिए, जिससे ये लोग आगे अपनी पहचान न बदल सकें.मंत्रालय के निर्देश के मुताबिक, इन लोगों से ली गई जानकारी को विदेश मंत्रालय के जरिये म्यांमार सरकार के साथ साझा किया जाए, जिससे इनकी नागरिकता का सही पता चल सके. ताकि बाद में इन्हें उनके देश वापस भेजने में दिक्कत न हो. क्या है विवाद? रोहिंग्या मुसलमान और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच विवाद 1948 में म्यांमार के आजाद होने के बाद से ही चला आ रहा है. बताया जाता है कि रखाइन राज्य में जिसे अराकान के नाम से भी जाता है, 16वीं शताब्दी से ही मुसलमान रहते हैं. ये वो दौर था जब म्यांमार में ब्रिटिश शासन था. 1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद अराकान पर ब्रिटिश राज कायम हो गया. इस दौरान ब्रिटश शासकों ने बांग्लादेश से लेबर को अराकान लाना शुरू किया. इस तरह म्यांमार के रखाइन में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई.बांग्लादेश से जाकर रखाइन में बसे ये वही लोग थे, जिन्हें आज रोहिंग्या मुसलमानों के तौर पर जाना जाता है. रोहिंग्या की संख्या बढ़ती देख म्यांमार के जनरल ने विन की सरकार ने 1982 में बर्मा का राष्ट्रीय कानून लागू कर दिया. इस कानून के तहत रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता खत्म कर दी गई. जिसके बाद ये लोग दूसरे राज्यों में शरण ले रहे हैं.