OPINION: ‘शांति के प्रयासों के लिए झटका है शुजात बुखारी और औरंगजेब की हत्या’
जम्मू काश्मीर 15 जून 2018 । मैं शुजात बुखारी को बहुत करीब से नहीं जानता था, लेकिन कुछ मौकों पर हम दोनों की बातचीत हुई थी. हमारे रिश्ते को पारस्परिक सम्मान के रूप में वर्णित किया जा सकता है. मैं उनकी ईमानदारी एवं जम्मू-कश्मीर की स्थिति की बारिकियों और जटिलताओं के बारे में उनकी गहरी समझ की प्रशंसा करता हूं. वह एक ऐसे व्यक्ति थे जो ढृढ़ता और स्पष्ट रूप से अपने विचारों को व्यक्त करते थे और धैर्यपूर्वक सुनने के लिए आपको श्रेय भी देते थे. वह शांति के प्रति उत्साहित कश्मीर की परिपक्व और समझदार आवाज थे. संभवत: इन्हीं गुणों के कारण उन्हें मार दिया गया.।औरंगजेब जम्मू-कश्मीर का रहने वाले थे और शोपियां में 44 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे. मैं व्यक्तिगत रूप से उन्हें नहीं जानता, लेकिन वह एक पारंपरिक भारतीय सिपाही- बहादूर और निडर कर्तव्यपरायण होंगे. इन विशेषताओं के बाद भी उनमें मानवीय भावनाओं की कमी नहीं होगी. छुट्टी के लिए अपनी यात्रा शुरू करते समय जिस वक्त कार से खींचकर उनका अपहरण किया गया तब वे उत्साहित होकर अपने परिवार के साथ ईद मनाने के बारे में सोच रहे होंगे. मुझे नहीं लगता कि सेना की वर्दी में कहीं से उनकी मुस्लिम पहचान दिखती होगी, लेकिन संभवत: उन्हें इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह एक मुस्लिम सैनिक थे, जिन्होंने स्थानीय आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन में हिस्सा लिया था.
हिंसा और मौत कश्मीर में कोई नई बात नहीं है, लेकिन कुछ मामले दूसरों की तुलना में अधिक दुखद होते हैं. इसलिए नहीं कि उनमें अधिक खून बहा, बल्कि इसलिए कि वो उस वक्त घटित हुई जब शांति और आशा को लगातार हो रहे संघर्ष और निराशा का स्थान लेने का मौका मिल रहा हो. शुजात और औरंगजेब की हत्या शांति के लिए किए जा रहे मौजूदा प्रयासों के लिए झटका हैं.
रमजान के दौरान सेना की ओर किया गया युद्धविराम खत्म होने की कगार पर है. जब जम्मू-कश्मीर में रमजान के दौरान युद्धविराम की घोषणा की गई थी तब उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. मुझे नहीं लगता कि इसकी तैयारी के लिए पर्याप्त समय लिया गया था और इससे संबंधित अन्य पक्षों से इस बारे में बात की गई थी. यहां तक कि रक्षामंत्री भी स्पष्ट रुप से इस फैसले से आश्चर्यचकित थीं. आतंकवादियों ने तुरंत युद्धविराम को खारिज कर दिया और हत्याओं और हिंसाओं का सहारा लेना शुरू कर दिया. पाकिस्तानी आतंकवादियों ने घुसपैठ की कोशिश शुरू कर दी और सीमा पर फायरिंग शुरू हो गई. अलगाववादियों से बातचीत की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने अपने हठ की वजह से इस अवसर को गंवा दिया. निश्चित तौर पर इस फैसले ने सैनिकों को निराश किया क्योंकि इसने उनके हाथ बांध दिए जबकि उनके ऊपर हमले हो रहे हैं.
हालांकि इस फैसले का एक सकारात्मक पहलू भी था. युद्धविराम की घोषणा से घाटी में शांति लौटने की उम्मीद पैदा हुई थी. युद्धविराम के पहले दो हफ्ते सजग आशावाद के थे क्योंकि प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच संघर्ष में काफी कमी आई थी. नागरिकों की मौत, जिसके बाद अन्य संघर्ष प्रारम्भ होते हैं और यह क्रम निरंतर चलता रहता है, में नाटकीय कमी नजर आई. केंद्र सरकार को इस बात का श्रेय जाना चाहिए कि उसने अपने पिछले दृष्टिकोण के उलट सीजफायर का एकतरफा और कुछ हद तक जोखिम भरा कदम उठाया.
अब हम यहां से कहां जाएंगे? निश्चित तौर पर ऑपरेशन फिर शुरू होंगे. पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ और आतंकवादी समूहों की हठधर्मिता के कारण कोई दूसरा विकल्प बचा भी नहीं है. आतंकवादियों को रेखांकित किया जाना चाहिए, खासतौर पर अमरनाथ की यात्रा करीब है और कोई भी जिम्मेदार सरकार यात्रियों की जान को जोखिम में डालने का प्रयास नहीं करेगी. इसकी बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है.
हालांकि आंतकवादियों के खिलाफ लड़ाई में सैनिक आक्रमक रुप से चारों तरफ फैल गए थे, लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पिछले एक महीने में मिडिल ग्राउंड की चमक दिखाई दी, जो पिछले कुछ वर्षों से गायब थी. इसका मतलब यह है कि समाधान इसी तरफ है. जम्मू कश्मीर में संघर्ष के कई जटिल आयाम हैं. आतंकवादी मारे जाते हैं तब भी संवाद, लोगों तक पहुंचने का प्रयास, युवाओं से बातचीत और कट्टरपंथियों के विरोध का प्रयास जारी रहना चाहिए.
रमजान में युद्धविराम सरकार द्वारा पिछले कुछ सालों में लिया गया सबसे अहम फैसला था. हमें इस अवधि को विफलता अथवा निराशा के भाव से नहीं देखना चाहिए, बल्कि यह संघर्ष को समाप्त करने के लिए संकेत प्रदान करता है. इसमें स्थानीय आबादी की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे अभियान की समाप्ति से सबसे अधिक लाभ भी उन्हीं को मिलेगा. आतंकवादी अपना अभियान जारी रखेंगे क्योंकि वो साबित करना चाहते हैं कि वे हिंसा से अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं. अब यह लोगों के ऊपर है कि वे इस मार्ग को ढृढ़ता के साथ अस्वीकार कर दें. जाहिर है ऐसा करने के लिए सरकार को लोगों का विश्वास जीतना होगा.
शुजात बुखारी और औरंगजेब दोनों ने अलग-अलग व्यवसायों को अपना हथियार बनाया, एक ने कलम से तो दूसरे ने बंदूक से अपनी लड़ाई लड़ी.
(लेखक भारतीय सेना की नॉर्दन कमान के पूर्व चीफ हैं, जिनके नेतृत्व में भारत ने 2016 में पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था)
रमजान के दौरान सेना की ओर किया गया युद्धविराम खत्म होने की कगार पर है. जब जम्मू-कश्मीर में रमजान के दौरान युद्धविराम की घोषणा की गई थी तब उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. मुझे नहीं लगता कि इसकी तैयारी के लिए पर्याप्त समय लिया गया था और इससे संबंधित अन्य पक्षों से इस बारे में बात की गई थी. यहां तक कि रक्षामंत्री भी स्पष्ट रुप से इस फैसले से आश्चर्यचकित थीं. आतंकवादियों ने तुरंत युद्धविराम को खारिज कर दिया और हत्याओं और हिंसाओं का सहारा लेना शुरू कर दिया. पाकिस्तानी आतंकवादियों ने घुसपैठ की कोशिश शुरू कर दी और सीमा पर फायरिंग शुरू हो गई. अलगाववादियों से बातचीत की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने अपने हठ की वजह से इस अवसर को गंवा दिया. निश्चित तौर पर इस फैसले ने सैनिकों को निराश किया क्योंकि इसने उनके हाथ बांध दिए जबकि उनके ऊपर हमले हो रहे हैं.
हालांकि इस फैसले का एक सकारात्मक पहलू भी था. युद्धविराम की घोषणा से घाटी में शांति लौटने की उम्मीद पैदा हुई थी. युद्धविराम के पहले दो हफ्ते सजग आशावाद के थे क्योंकि प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच संघर्ष में काफी कमी आई थी. नागरिकों की मौत, जिसके बाद अन्य संघर्ष प्रारम्भ होते हैं और यह क्रम निरंतर चलता रहता है, में नाटकीय कमी नजर आई. केंद्र सरकार को इस बात का श्रेय जाना चाहिए कि उसने अपने पिछले दृष्टिकोण के उलट सीजफायर का एकतरफा और कुछ हद तक जोखिम भरा कदम उठाया.
अब हम यहां से कहां जाएंगे? निश्चित तौर पर ऑपरेशन फिर शुरू होंगे. पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ और आतंकवादी समूहों की हठधर्मिता के कारण कोई दूसरा विकल्प बचा भी नहीं है. आतंकवादियों को रेखांकित किया जाना चाहिए, खासतौर पर अमरनाथ की यात्रा करीब है और कोई भी जिम्मेदार सरकार यात्रियों की जान को जोखिम में डालने का प्रयास नहीं करेगी. इसकी बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है.
हालांकि आंतकवादियों के खिलाफ लड़ाई में सैनिक आक्रमक रुप से चारों तरफ फैल गए थे, लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पिछले एक महीने में मिडिल ग्राउंड की चमक दिखाई दी, जो पिछले कुछ वर्षों से गायब थी. इसका मतलब यह है कि समाधान इसी तरफ है. जम्मू कश्मीर में संघर्ष के कई जटिल आयाम हैं. आतंकवादी मारे जाते हैं तब भी संवाद, लोगों तक पहुंचने का प्रयास, युवाओं से बातचीत और कट्टरपंथियों के विरोध का प्रयास जारी रहना चाहिए.
रमजान में युद्धविराम सरकार द्वारा पिछले कुछ सालों में लिया गया सबसे अहम फैसला था. हमें इस अवधि को विफलता अथवा निराशा के भाव से नहीं देखना चाहिए, बल्कि यह संघर्ष को समाप्त करने के लिए संकेत प्रदान करता है. इसमें स्थानीय आबादी की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे अभियान की समाप्ति से सबसे अधिक लाभ भी उन्हीं को मिलेगा. आतंकवादी अपना अभियान जारी रखेंगे क्योंकि वो साबित करना चाहते हैं कि वे हिंसा से अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं. अब यह लोगों के ऊपर है कि वे इस मार्ग को ढृढ़ता के साथ अस्वीकार कर दें. जाहिर है ऐसा करने के लिए सरकार को लोगों का विश्वास जीतना होगा.
शुजात बुखारी और औरंगजेब दोनों ने अलग-अलग व्यवसायों को अपना हथियार बनाया, एक ने कलम से तो दूसरे ने बंदूक से अपनी लड़ाई लड़ी.
(लेखक भारतीय सेना की नॉर्दन कमान के पूर्व चीफ हैं, जिनके नेतृत्व में भारत ने 2016 में पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था)