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बलिया : समग्र विकास के पुरोधा थे पं० अमरनाथ मिश्र , 92वी जयंती कल


       डॉ सुनील कुमार ओझा(उप संपादक) बलिया एक्सप्रेस
बलिया 26 जुलाई 2018 ।।

   अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के प्राचार्य डा० गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि पं० अमरनाथ मिश्र समग्र विकास के पुरोधा थे, जिनकी 92 वीं जयन्ती कल 27 जुलाई को महाविद्यालय में धूम- धाम से मनायी जायेगी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिध्द साहित्यकार एवं शिक्षाविद् डा० जनार्दन राय होंगे।
     डा० पाठक ने बताया कि प्रायः महापुरुषों का व्यक्तित्व बहते हुए जल की तरह होता है, उनमें किसी तरह का विकार नहीं होता और वे दीपक की लौ की तरह होते हैं, जो स्वयं तो जलता है किन्तु दूसरों प्रकाशित करता है। ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी एवं स्मरणीय मनीषियों में स्व० पं० अमरनाथ मिश्र का नाम अत्यन्त श्रद्धा से लिया जाता है।
   सव० पं० अमरनाथ मिश्र जी का जन्म गंगा एवं सरयू से आच्छादित द्वाबा के बलिहार गांव में अवसान एवं अच्छाईयों के कल्पवृक्ष एवं गुणों के रूप में हुआ। इनके पिता का नाम पं० जगदीश नारायण मिश्र था।
    पं० अमरनाथ मिश्र ऐसी आत्माओं मे से हैं, जिनका आविर्भाव एवं तिरोभाव  आषाढ़ मास की पूर्णिमा अर्थात गुरू पूर्णिमा को हुआ था। जन्म एवं मृत्यु दोनों की तिथि का संयोग होना मात्र संत एवं महात्माओं को ही मिलता है।
    पं० अमरनाथ मिश्र ने स्वतंत्रता आन्दोलन में अपना विशेष योगदान दिया एवं अपनी तरूणाई देश को स्वतंत्र करने में समर्पित कर दिया।स्वतंत्रता आन्दोलन में बैरिया थाने पर हुई घटना में मिश्र जी ने अहम् भूमिका निभाई। वे क्रांतिवीर साथियों के साथ गांव- गांव घूमकर क्रांति का अलख जगाया करते थे।
   पं० मिश्र की प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय बलिहार एवं जू० हा० स्कूल रामगढ़ में हुई। इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा की व्यवस्था न होने की कसक उनके मन में सदैव कचोटती रहती थी और उन्होंने तब तक चैन की सांस नही लिया , जब तक इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा की अलख नहीं जगा लिए और अन्ततः वर्ष 1973 में उनके द्वारा महाविद्यालय दूबेछपरा की स्थापना की गयी, जिसमें आज स्नातकोत्तर एवं रिसर्च की शिक्षा प्राप्त हो रही है। इसके अलावा भी वे अनेक शिक्षा संस्थाओं के विकास एवं प्रबंधन से जुड़े रहे।
    स्वतंत्रता पश्चात पं० मिश्र जी जन सेवा के लिए एवं समाज सेवा के लिए अपने को समर्पित कर दिया। वे अनेक धार्मिक - आध्यात्मिक  संस्थाओं से भी जुड़े रहे और हरिद्वार एवं बद्रीनाथ सहित अनेक स्थानों पर अतिथि गृह एवं सेवाश्रम का भी निर्माण कराया । आज पं० मिश्र जी भले ही सदेह हमारे बीच नहीं हैं ,किन्तु अपने किए गये कार्यों द्वारा सदैव हमारे बीच विद्यमान रहते हैं और उनकी कृतियां अविस्मरणीय हैं। ऐसे महान विभूति को शत - शत नमन।