अविश्वास प्रस्ताव पर कितनी बार गिरी हैं सरकारें ?
तेलुगू देशम पार्टी केंद्र की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई है ,जिस पर शुक्रवार को लोकसभा में शक्ति परीक्षण होगा. हालांकि केंद्र सरकारों के खिलाफ कई बार अविश्वास प्रस्ताव लाये गये है लेकिन सरकार एक बार ही गिरी है ।
भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक बार ही ऐसा मौका आया है जब अविश्वास प्रस्ताव पर केंद्र में सरकार गिरी है लेकिन विश्वास मत पर कई बार सरकारें गिर चुकी है । पहली बार ऐसा मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार के दौरान हुआ था. तब वो बहुमत साबित नहीं कर पाए थे । इसके बाद वीपी सिंह, एचडी देवेगौडा, आईके गुजराल और अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार विश्वास मत पर पर खरी नहीं उतर पाईं ।अब तक 26 बार केंद्र में सरकारों ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया है ।
भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक बार ही ऐसा मौका आया है जब अविश्वास प्रस्ताव पर केंद्र में सरकार गिरी है लेकिन विश्वास मत पर कई बार सरकारें गिर चुकी है । पहली बार ऐसा मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार के दौरान हुआ था. तब वो बहुमत साबित नहीं कर पाए थे । इसके बाद वीपी सिंह, एचडी देवेगौडा, आईके गुजराल और अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार विश्वास मत पर पर खरी नहीं उतर पाईं ।अब तक 26 बार केंद्र में सरकारों ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया है ।
पहली बार गिरी थी मोरारजी देसाई सरकार
मोरारजी भाई देसाई आपातकाल के बाद 1977 के चुनावों में जनता पार्टी की जीत पर देश के प्रधानमंत्री बने । हालांकि उनके प्रधानमंत्री बनने के कुछ महीनों बाद ही जनता पार्टी में उठापटक शुरू हो गई ।चूंकि ये सरकार कई धड़ों से मिलकर बनी थी ।लिहाजा इन धड़ों में असंतोष शुरू हो गया । मोराराजी सरकार के खिलाफ कुल मिलाकर दो बार अविश्वास प्रस्ताव आए ।
पहला अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने में उनकी सरकार को कोई दिक्कत नहीं हुई. लेकिन दूसरे अविश्वास प्रस्ताव पर जनता पार्टी का असंतोष चरम पर था. ये प्रस्ताव कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वाई वी चव्हाण लेकर आए थे. अपनी हार का अंदाज़ा लगते ही मोरारजी देसाई ने मतविभाजन से पहले ही 15 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.उनकी सरकार गिर गई.
मोरारजी भाई देसाई सरकार कुछ ही महीनों में अलग अलग धड़ों में बंटी लगने लगी थी
दूसरी बार गिरी थी वीपी सिंह सरकार
1989 के आम चुनावों में विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चा को 146 सीटें मिलीं । वो बीजेपी (86 सांसद) और वामदलों (52 सांसद) के समर्थन से देश के सातवें प्रधानमंत्री बने । अगले ही साल उन्होंने जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट को आंशिक तौर पर लागू किया तो उनकी सरकार के खिलाफ असंतोष शुरू हो गया ।
वीपी सरकार ने गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद को अपहर्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के बदले आंतकवादियों की रिहाई का फैसला किया. इसकी बहुत आलोचना हुई. हालांकि उनकी सरकार के गिरने की वजह कुछ और थी ।
वीपी सिंह की सरकार 1990 में गिरी. उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद मामले में उन्होंने अपनी सरकार कुर्बान कर दी
तीसरी बार देवेगौडा सरकार नहीं झेल पाई विश्वास प्रस्ताव
वर्ष 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा की सरकार उस वक्त गिर गयी थी जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने संयुक्त मोर्चा सरकार से समर्थन खींच लिया था । इसके बाद यही हश्र आईके गुजराल सरकार का हुआ । ये दोनों सरकारें विश्वास मत पर बहुमत नहीं जुटा पाईं थीं ।
एक मत से गिर गई थी अटल बिहारी सरकार
प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने दो बार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया । दोनों बार वे असफल रहे. हालांकि तीसरी बार उन्होंने पूरे पांच साल राष्ट्रीय गठबंधन की सरकार चलाई । 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया । 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाई तो ये 13 महीने चली । इस बार विश्वास मत पर उनकी सरकार एक वोट से गिरी थी ।
अटलजी की सरकार दो बार गिरी लेकिन तीसरी बार उन्होंने पांच साल तक सप्रंग सरकार चलाई
नरसिंह राव सरकार के खिलाफ तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था । तीसरा प्रस्ताव 1993 में लाया गया. जिसमें नरसिंह राव सरकार बहुत कम अंतर से जीती. बाद में आरोप लगे थे कि सरकार बचाने के लिए शिबू सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्तिमोर्चा (झामुमो) के सदस्यों को धन दिया गया था. बाद में ये कांड झामुमो घूस कांड के तौर पर सामने आया. मामला न्यायालय तक भी पहुंचा ।
पहला अविश्वास प्रस्ताव कब आया था
भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के ख़िलाफ़ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट ।
किस तरह लाया जाता है अविश्वास प्रस्ताव
सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहती हैं ।
इसे किन स्थितियों में लाया जाता है
जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है । तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकती है ।
लोकसभा में अब तक 26 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए जा चुके हैं
अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो. वाईएसआर कांग्रेस के लोकसभा में नौ सदस्य हैं. वहीं टीडीपी के 16 सांसद हैं ।
अविश्वास प्रस्ताव पर मंजूरी मिलने के बाद क्या होता है
अगर लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा जरूरी है । इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है ।
सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आए लेकिन हर बार उनकी सरकार सुरक्षित रही
- सबसे ज़्यादा या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ आए ।
- लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया ।
- सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है ।उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे ।
- स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए । पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के ख़िलाफ़ ।
(साभार न्यूज 18)