Breaking News

बलिया : खगोलीय एवं भौगोलिक घटना है चन्द्रग्रहण - डा० गणेश पाठक

बलिया 26 जुलाई 2018 ।।
बलिया एक्सप्रेस के उपसंपादक डॉ सुनील कुमार ओझा  ने भूगोलविद डॉ गणेश कुमार पाठक से जानने का प्रयास किया कि 27 जुलाई को लगने वाले चंद्रग्रहण में विशेष क्या है ? तो


डॉ गणेश कुमार पाठक ने समझाते हुए कहा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है एवं सूर्य से ही प्रकाश प्राप्त करती है , जब कि चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है , किन्तु प्रकाश सूर्य से ही प्राप्त करता है। चन्द्रमा अपने अण्डाकार कक्ष तल पर लगभग एक माह में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है। पृथ्वी एवं चन्द्रमा के कक्ष तल एक दूसरे पर 5 अंश का कोण बनाते हुए दो स्थानों पर काटते हैं। इन स्थानों को " ग्रंथि"कहा जाता है।
  आमतौर पर पृथ्वी एवं चन्द्रमा परिक्रमा करते हुए सूर्य की सीधी रेखा में नहीं आ पाते हैं। यही कारण है कि सामान्यतया पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर नहीं पड़ती है। किन्तु पूर्णिमा की रात को परिक्रमण करता हुआ चन्द्रमा जब पृथ्वी के कक्ष के निकट पहुंच जाता है एवं पृथ्वी की स्थिति सूर्य तथा चन्द्रमा के ठीख मध्य में एक सीधी रेखा में हो जाती है तो पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ने लगती है। चन्द्रमा की ऐसी स्थिति को ही चन्द्रग्रहण कहा जाता है। चन्द्रग्रहण की स्थिति उत्पन्न होने की दो दशाएं आवश्यक होती है- पहला कि चन्द्रमा पूर्णतया गोल चमकता हो एवं दूसरा यह कि यह पृथ्वी के कक्ष के अत्यन्त निकट हो।
    सूर्य आकार में पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोलाकार है। फलतः पृथ्वी की परछाई दो प्रकार के शंकु का निर्माण करती है जिसे क्रमशः प्रच्छाया एवं खंड छाया( उपछाया) कहा जाता है। ध्यातव्य है कि चन्द्रमा पर पृथ्वी की प्रच्छाया पड़ने पर ही चन्द्रग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है। कारण कि यह छाया सघन होती है जिससे चन्द्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति के अनुसार कभी चन्द्रमा को आंशिक रूप से या कभी पूर्ण रूप से ढक लेती है जिसे क्रमशः खण्ड ग्रहण या पूर्ण ग्रहण कहा जाता है। खण्ड ग्रहण कुछ मिनटों के लिए, जबकि पूर्ण ग्रहण कुछ घण्टों के लिए लगता है। ग्रहण की समाप्ति के बाद चन्द्रमा परिक्रमण करते हुए पृथ्वी की छाया से मुक्त हो जाता है और अपने पूर्व स्वरूप में आ जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि चन्द्रग्रहण पूर्णरूपेण खगोलीय एवं भौगोलिक घटना है।
   27 जुलाई, 2018 की रात को लगने वाला चन्द्रग्रहण इस सदी का सबसे लम्बा चन्द्रग्रहण होगा और इस समय चन्द्रमा पृथ्वी के प्रच्छाया में लगभग 1 घण्टा 43 मिनट तक रहेगा और यह समय पूर्ण चन्द्रग्रहण का होगा। वैसे चन्द्रग्रहण का कुल समय 6 घण्टे से भी अधिक का होगा , जो विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में परिलक्षित होगा।
  अपने देश में यह चन्द्रग्रहण रात में 11 बजकर 54 मिनट पर प्रारम्भ होगा और रात 1 बजकर 15 मिनट पर पृथ्वी अपनी छाया से चन्द्रमा को पूरी तरह ढक लेगी और यह दशा प्रातः 2 बजकर 43 मिनट तक कायम रहेगी। वैसे चन्द्रग्रहण प्रातः 4 बजकर 48 मिनट तक लगा रहेगा
    27 जुलाई को लगने वाला यह चन्द्रग्रहण इस सदी का सबसे लम्बा चन्द्रग्रहण होगा, क्योंकि अपनी - अपनी परिधि में चन्द्रमा एवं पृथ्वी एक दूसरे से सबसे दूर होंगे, जिससे चन्द्रमा आमतौर पर छोटा परिलक्षित होगा। खगोलीय गणना के अनुसार इस तरह का ग्रहण पुनः 9 जून , 2123 में दिखाई देगा।
     27 जुलाई को लगने वाला चन्द्रग्रहण "ब्लड मून" अर्थात् "रक्त चन्द्रमा" कहा जायेगा ,क्योंकि इस ग्रहण के दौरान कुछ समय चन्द्रमा लाल रंग का दिखाई देगा। कारण कि इस चन्द्रग्रहण में चन्द्रमा कुछ समय के लिए अंतरिक्ष में पृथ्वी की छाया से होकर गुजरेगा, जिससे इस समय सूर्य का प्रकाव पृथ्वी के वायुमंडल से गुजरते समय फैल जाता है, फलतः चन्द्रमा हमें लाल रंग का दिखाई देने लगता है।
  ज्योतिषियों के गणनानुसार यह चन्द्रग्रहण कुछ राशियों के लिए हानिकारक प्रभाव डालेगा, जबकि कुछ राशि वाले लोगों पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा। यह भी सत्य है कि प्राकृतिक रूप से भी चन्द्रग्रहण के समय वायुमंडल में कुछ ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं कि उसका आंशिक दुष्प्रभाव जीव- जंतुओं पर पड़ता है, वातावरण भी कुछ समय के लिए दूषित हो सकता है । किन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि हम चन्द्रग्रहण से भयभीत हो जाएं, क्यों कि भयभीत होने का मानसिक दुष्प्रभाव पड़ेगा जो स्वास्थ्य के लिए ठीकनहीं होगा। अतः चन्द्रग्रहण के समय थोड़ी सी सावधानी बरत कर इसके दुष्प्रभावों से भी बचा जा सकता है।