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सबरीमाला मंदिर में महिलाओ के प्रवेश पर प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू



    नईदिल्ली 17 जुलाई 2018 ।।
    सुप्रीम कोर्ट ने केरल के ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी से संबंधित मामले में मंगलवार को सुनवाई शुरू कर दी. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने याचिकाकर्ताओं इंडियन लायर्स एसोसिएशन और अन्य के वकील से कहा कि वे तीन न्यायाधीश की पीठ के पिछले साल उसके पास भेजे गए सवालों तक ही अपनी दलीलें सीमित रखें ।
            संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं । संविधान पीठ याचिकाकर्ताओं के लिये समय सीमा निर्धारित करते हुए उनसे कहा कि वे इस अवधि के भीतर ही अपनी बहस पूरी करने की कोशिश करें ।
    याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील आर पी गुप्ता ने बहस शुरू की और मंदिर के इतिहास का जिक्र किया ।
    पीठ ने कहा, ‘आपको अनावश्यक बातों में जाने की जरूरत नहीं है और वकील को संविधान पीठ के पास भेजे गए मुद्दों तक सीमित रखना चाहिए.’ इन याचिकाओं पर बुधवार को आगे बहस होगी । शीर्ष अदालत ने पिछले साल 13 अक्टूबर को पांच सवाल तैयार करके संविधान पीठ के पास भेजे थे. इनमें यह सवाल भी था कि क्या मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध पक्षपात करने के समान है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 में दिए उनके मौलिक अधिकारों का हनन होता है और उन्हें अनुच्छेद 25 और 26 के अंतर्गत नैतिकता से संरक्षण नहीं मिला है ।
    पत्थनमथिटा जिले के पश्चिमी घाट की पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर के प्रबंधन ने शीर्ष अदालत से पहले कहा था कि मासिक धर्म की वजह से वे शुद्धता नहीं बनाये रख सकती है, इसलिए 10 से 50 साल तक की महिलाओं का मंदिर के अंदर जाना मना है ।
    इस मामले में सात नवंबर, 2016 को केरल सरकार ने न्यायालय को सूचित किया था कि वह ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है ।
    शुरुआत में राज्य की एलडीएफ सरकार ने 2007 में प्रगतिशील रुख अपनाते हुए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की हिमायत की थी जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बदल दिया था । यूडीएफ सरकार का कहना था कि वह 10 से 50 साल तक की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने के पक्ष में है क्योंकि यह परपंरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है ।