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हैप्पी बर्थडे माही: महेंद्र सिंह धोनी का तो बस नाम ही काफी है !


    7 जुलाई 2018 ।।
    भारतीय क्रिकेट में शायद ही किसी ने सोचा हो कि सचिन तेंदुलकर के बाद भी टीम इंडिया में कोई ऐसा खिलाड़ी आएगा जिसकी लोकप्रियता उम्र, जाति, धर्म और राज्य की सीमाओं से परे होगी... लेकिन ऐसा हुआ... क्रिकेट इतिहास में धोनी को एक धुरंधर बल्लेबाज़ या विकेटकीपर की बजाए एक महान कप्तान या यूं कहें कि एक लाजवाब लीडर के तौर पर जाना जाएगा.

    आईसीसी ट्रॉफी के इतिहास में धोनी इकलौते ऐसे कप्तान रहे हैं, जिन्होंने टी20 वर्ल्ड कप, वनडे वर्ल्ड कप और अब चैंपियंस ट्रॉफी में भी अपनी कप्तानी का लोहा मनवाया. वो ऐसे भी कप्तान हैं जिनकी टीम ने आईसीसी की वनडे और टेस्ट रैंकिंग में नंबर-1 पोजिशन हासिल की है. यानि अगर टेनिस जगत के जुमले का इस्तेमाल किया जाए तो धोनी ने क्रिकेट का हर ग्रैंड स्लैम अपने नाम किया है ।
    अपने साथी खिलाड़ियों की काबिलियित पर असाधारण भरोसा दिखाने की बात धोनी को मौजूदा दौर में बाकी कप्तानों की तुलना में अलग करती है. 2007 टी20 वर्ल्ड कप में जोगिंदर शर्मा हों या 2013 चैंपिंयस ट्रॉफी के फाइनल में ईशांत शर्मा- जब धोनी ने आखिरी लम्हों में गेंद थमायी तो लगभग हर किसी ने अपना सर पकड़ लिया. उफ, माही आपने ये क्यों किया? आपकी ज़ुबां से भी शायद यही निकला हो, दरअसल, धोनी की इसी ज़िद ने उन्हें कामयाबी की बुलंदी को छूने का मौका दिया है.

    धोनी ने ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में अपनी लीडरशीप और कप्तानी से हर किसी को कायल बनाया. धोनी की कप्तानी में दिग्गजों को स्टीव वॉ से लेकर इमरान खान जैसे कप्तानों की झलक देखने को मिली. कुछ साल पहले पाकिस्तान के पूर्व दिग्गज लेग स्पिनर और पूर्व बॉलिंग कोच ( इंग्लैंड क्रिकेट टीम) मुश्ताक अहमद ने बात-चीत में धोनी के बारे में ये कहा-



    क्रिकेट को लेकर धोनी की सोच थोड़ी जुदा है जो इस खेल की पारंपारिक भाषा में पूरी तरह से फिट नहीं बैठती है. वैसे, धोनी कभी भी पारंपरिक क्रिकेट के लिए नहीं जाने जाते हैं. धोनी की सोच में झारखंड की कबीलाई संस्कृति की स्वच्छंदता साफ देखने को मिलती है. धोनी हमेशा बेफिक्र अंदाज़ में जीते हैं. हमेशा खुश रहना और आलोचकों की तमाम बातों को सुनना लेकिन प्रतिक्रिया नहीं देने की बेजोड़ कला.

    पूर्व साथी खिलाड़ी आकाश चोपड़ा ने बताया कि-



    धोनी की एक और ख़ासियत है कि वो बुरे वक्त में सारी आलोचनाओं को खुद सहते हैं और कामयाबी के दौर में सेहरा शिखर धवन और विराट कोहली समेत हर युवा खिलाड़ी के सर बांध देते थे. अब कोहली भी कप्तान के तौर पर धोनी की इसी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. वेस्टइंडीज़ में जब देर रात टीम इंडिया ने सीरीज़ जीती तो कोहली ने ये ट्रॉफी कुलदीप यादव को थमा दी.

    लेकिन, क्रिकेट के मैदान में असाधारण कामयाबी के लिए धोनी को सिर्फ मुकद्दर का सिकंदर कहना जायज़ नहीं है. धोनी को सिर्फ भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान की बजाए एक लीडर कहा जाए तो ज़्यादा सही होगा. दुनिया में अगर 10 सबसे उम्दा टेस्ट कप्तानों की बात की जाए जिन्होंने 50 से ज़्यादा टेस्ट मैचों में अपने देश की कप्तानी की है तो महेंद्र सिंह धोनी भारत की तरफ से इकलौते ऐसे खिलाड़ी है.

    लेकिन धोनी इस लिस्ट में सिर्फ संख्या के लिहाज़ से ही नहीं बल्कि कामयाबी के लिहाज़ से भी शुमार हैं. इस सूची में ऑस्ट्रेलिया के तीन महान कप्तान स्टीव वॉ, रिकी पोटिंग और मार्क टेलर हैं तो वेस्टइंडीज़ से
    क्लाइव लॉयड और विवियन रिचर्ड्स जबकि साउथ अफ्रीका से हैंसी क्रोन्ये और ग्रेम स्मिथ हैं. धोनी का इस लिस्ट में शामिल होना अपने आप में एक बड़ी बात है.

    धोनी अपने साथी खिलाड़ियों को वैसी चुनौती देते रहैं जिसका सामना उन्होंने कभी नहीं किया है. ये चुनौती ज़रूरी नहीं है कि हर बार उन्हें कामयाब बनाए लेकिन ये अनुभव उनकी भविष्य के बेहतरी के काम ज़रूर आता है.

    विराट कोहली ने भी एक बार ये कहा था-



    टीम इंडिया के पूर्व कोच और हमेशा विवादों से घिरे रहने वाले ग्रेग चैपल भी धोनी के मुरीद थे और यही हाल गैरी कर्स्टन का रहा. पूर्व कोच डंकन फ्लेचर भी धोनी के कायल हैं. धोनी की ईमानदारी और निष्पक्षता उन्हें ऐसे लोगों से भी बेहतर रिश्ते बनाए रखने में कामयाबी दिलाती हैं जहां अक्सर टकराव की गुंजाईश रहती है. धोनी अपने साथी खिलाड़ियों की शख़्सियत से कभी भी असुरक्षित महसूस नहीं करते हैं. 2012 में ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर गंभीर-सहवाग-तेंदुलकर को एक साथ प्लेइंग इलेवन में ना खिलाने की विवशता की बात सार्वजनिक तौर पर कोई असुरक्षित कप्तान कर ही नहीं सकता था. आलम ये कि अपने समकालीन युवराज सिंह जैसे खिलाड़ी भी जब संकट के दौर से गुज़रते हैं तो सार्वजिनक तौर पर धोनी उनका बचाव करते थे.

    कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि झारखंड के इस खिलाड़ी ने पूरी दुनिया के सामने लीडरशीप का एक नया मॉडल भी पेश किया है. अहम बात ये है कि धोनी में एक लीडर के तौर पर ना तो कभी स्वार्थ भाव दिखता है और ना ही विजयी लम्हों में खुद को डुबोये रखने का जूनून. शायद इसी सोच ने उन्हें एक अदभुत लीडर भी बनाया है ।
    (साभार विमल कुमार न्यूज 18)