सीएम केजरीवाल का आदेश - सरकार की परियोजनाओं में तेजी लाये अधिकारी
सुप्रीम आदेश के बाद केजरीवाल ने अफसरों से कहा, सरकार की परियोजनाओं में लाएं तेजी
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार कोई समय नहीं गंवाना चाहती है. इसी कड़ी में सरकार ने अधिकारियों से कहा है कि वो सरकार की नीतियों पर तेज काम करें. इन नीतियों में राशन की डोरस्टेप वितरण प्रणाली भी शामिल है.
बुधवार दोपहर फैसला आने के बाद सीएम अरविंद केजरीवाल ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि अगर 'अवैध आदेशों' के जरिए चुनी हुई सरकार की शक्तियां न छीनी गई होतीं तो 3 महत्वपूर्ण साल बचाए जा सकते थे ।
बुधवार दोपहर फैसला आने के बाद सीएम अरविंद केजरीवाल ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि अगर 'अवैध आदेशों' के जरिए चुनी हुई सरकार की शक्तियां न छीनी गई होतीं तो 3 महत्वपूर्ण साल बचाए जा सकते थे ।
अदालत के फैसले के बाद अरविंद ने ट्वीट किया, 'दिल्ली की जनता न्यायपालिका के प्रति आभारी है. आज के आदेश ने न्यायपालिक में लोगों का विश्वास बढ़ाया है.' मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कैबिनेट बैठक बुलाई जिसमें उन्होंने अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक निर्देश दिया. उन्होंने ट्वीट किया, ' डोरस्टेप राशन कार्ड डिलीवरी और सीसीटीवी के प्रस्ताव पर भी तेजी लाने का निर्देश दिए हैं.'
सीसीटीवी कैमरे लगाने और डोरस्टेप राशन डिलीवरी, दो ऐसे मुद्दे हैं जिन पर आप सरकार और एलजी के बीच बीते महीने विवाद हो गया था, जिसके चलते 8 दिनों तक राजनिवास में धरना चला. केजरीवाल, एलजी पर लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि वह केंद्र के इशारे पर उनकी सरकार को परेशान कर रहे हैं ।
एक अधिकारी ने कहा कि अदालत के आदेश के बाद राशन, सीसीटीवी कैमरे, ठेका कर्मचारियों के नियमितकरणऔर शिक्षकों की नियुक्ति जैसे लगभग दर्जन प्रस्तावों का तेजी से विस्तार किया जाएगा.चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली के शासन की असली शक्तियां निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास हैं और इनके विचार और निर्णय का सम्मान होना चाहिए ।
इस फैसले ने इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए उस फैसले को पलट दिया जिसमें दिल्ली के उप राज्यपाल को दिल्ली के प्रशासन का मुखिया घोषित किया गया था, इस फैसले के बाद केंद्र और आप में दिल्ली की शक्तियों को लेकर युद्ध छिड़ गया था और आप ने इसके खिलाफ शीर्ष अदालत की शरण ली थी ।
अदालत ने कहा कि उप राज्यपाल भूमि, पुलिस, सार्वजनिक शांति और मतभिन्नता के कारण वह जिन मामलों को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, इन्हें छोड़कर बाकी सभी मामलों में मंत्रिपरिषद से सलाह और सहायता लेने के लिए बाध्य हैं, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, "निर्णय लेने का वास्तविक अधिकार चुनी हुई सरकार को होता है, 'सहायता और सलाह' का यही मतलब होता है, नाममात्र (टिटूलर) के प्रमुख को सहायता और सलाह के अनुसार काम करना होता है,"।
चीफ जस्टिस मिश्रा ने जस्टिस ए.के सीकरी, जस्टिस ए.एम. खानविलकर की तरफ से भी कहा, "उप राज्यपाल में स्वतंत्र निर्णय लेने का कोई भी अधिकार निहित नहीं है और वह सरकार के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए 'बिना दिमाग का प्रयोग किए मशीनी तरीके' से व्यवहार नहीं कर सकते," उन्होंने यह भी कहा, "उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच प्रत्येक बार 'राय में मामूली अंतर होने' पर इसे निर्णय के लिए राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा जा सकता,"
उन्होंने कहा, "इस संदर्भ में, विचार में मतभेद होने की स्थिति में, उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार को एक दूसरे के साथ संवैधानिक नैतिकता और विश्वास के आधार पर एकसाथ काम करना चाहिए," अपनी सरकार के लिए ज्यादा शक्ति हासिल करने के लिए अभियान की अगुवाई करने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस निर्णय को 'दिल्ली और लोकतंत्र के लिए एक बड़ी जीत बताया,' उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसे 'ऐतिहासिक निर्णय' बताया, जो यह सुनिश्चित कर रहा है कि 'दिल्ली सरकार को अनुमोदन के लिए अपनी फाइल को उप राज्यपाल के पास नहीं भेजना पड़ेगा,'
हालांकि, दिल्ली सरकार के साथ काम कर रहे वरिष्ठ नौकरशाहों ने दावा किया कि 'सेवा मामले' अभी भी लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालय के पास है क्योंकि दिल्ली एक संघीय क्षेत्र है, और सेवाओं का मामला समवर्ती और राज्य सूचियों के अंतर्गत नहीं आता है ।
सीसीटीवी कैमरे लगाने और डोरस्टेप राशन डिलीवरी, दो ऐसे मुद्दे हैं जिन पर आप सरकार और एलजी के बीच बीते महीने विवाद हो गया था, जिसके चलते 8 दिनों तक राजनिवास में धरना चला. केजरीवाल, एलजी पर लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि वह केंद्र के इशारे पर उनकी सरकार को परेशान कर रहे हैं ।
एक अधिकारी ने कहा कि अदालत के आदेश के बाद राशन, सीसीटीवी कैमरे, ठेका कर्मचारियों के नियमितकरणऔर शिक्षकों की नियुक्ति जैसे लगभग दर्जन प्रस्तावों का तेजी से विस्तार किया जाएगा.चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली के शासन की असली शक्तियां निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास हैं और इनके विचार और निर्णय का सम्मान होना चाहिए ।
इस फैसले ने इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए उस फैसले को पलट दिया जिसमें दिल्ली के उप राज्यपाल को दिल्ली के प्रशासन का मुखिया घोषित किया गया था, इस फैसले के बाद केंद्र और आप में दिल्ली की शक्तियों को लेकर युद्ध छिड़ गया था और आप ने इसके खिलाफ शीर्ष अदालत की शरण ली थी ।
अदालत ने कहा कि उप राज्यपाल भूमि, पुलिस, सार्वजनिक शांति और मतभिन्नता के कारण वह जिन मामलों को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, इन्हें छोड़कर बाकी सभी मामलों में मंत्रिपरिषद से सलाह और सहायता लेने के लिए बाध्य हैं, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, "निर्णय लेने का वास्तविक अधिकार चुनी हुई सरकार को होता है, 'सहायता और सलाह' का यही मतलब होता है, नाममात्र (टिटूलर) के प्रमुख को सहायता और सलाह के अनुसार काम करना होता है,"।
चीफ जस्टिस मिश्रा ने जस्टिस ए.के सीकरी, जस्टिस ए.एम. खानविलकर की तरफ से भी कहा, "उप राज्यपाल में स्वतंत्र निर्णय लेने का कोई भी अधिकार निहित नहीं है और वह सरकार के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए 'बिना दिमाग का प्रयोग किए मशीनी तरीके' से व्यवहार नहीं कर सकते," उन्होंने यह भी कहा, "उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच प्रत्येक बार 'राय में मामूली अंतर होने' पर इसे निर्णय के लिए राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा जा सकता,"
उन्होंने कहा, "इस संदर्भ में, विचार में मतभेद होने की स्थिति में, उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार को एक दूसरे के साथ संवैधानिक नैतिकता और विश्वास के आधार पर एकसाथ काम करना चाहिए," अपनी सरकार के लिए ज्यादा शक्ति हासिल करने के लिए अभियान की अगुवाई करने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस निर्णय को 'दिल्ली और लोकतंत्र के लिए एक बड़ी जीत बताया,' उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसे 'ऐतिहासिक निर्णय' बताया, जो यह सुनिश्चित कर रहा है कि 'दिल्ली सरकार को अनुमोदन के लिए अपनी फाइल को उप राज्यपाल के पास नहीं भेजना पड़ेगा,'
हालांकि, दिल्ली सरकार के साथ काम कर रहे वरिष्ठ नौकरशाहों ने दावा किया कि 'सेवा मामले' अभी भी लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालय के पास है क्योंकि दिल्ली एक संघीय क्षेत्र है, और सेवाओं का मामला समवर्ती और राज्य सूचियों के अंतर्गत नहीं आता है ।