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भूकम्प , जानवरो और कोलम्बस का क्या है चंद्र ग्रहण से कनेक्शन



    26 जुलाई 2018 ।।
    27 जुलाई की रात 11.55 बजे से लग कर 28 जुलाई की  सुबह 3.48 बजे तक लगने वाला चंद्र ग्रहण सदी का सबसे लंबा ग्रहण होगा ।यह ग्रहण  करीब 3 घंटा 43 मिनट लंबा होगा । यह चंद्र ग्रहण विशेष इसलिए भी है क्योंकि ये ब्लड मून होगा । इसका मतलब कि ये ग्रहण अपने चरम पर लाल, जंग खाया हुआ जैसा दिखाई देगा ।

    दुनिया में ग्रहण का इतिहास इतना ही पुराना है जितना हमारे ग्रह पुराने हैं. ग्रहण से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि बाकि दुनिया में भी इसको लेकर काफी कथाएं और लोकोक्तियां कहीं गई हैं. पढ़िए कि कैसे एक ग्रहण हमारी जिंदगी पर प्रभाव डालता है और इससी जुड़ी 4 अजीबो-गरीब कहानियां ----


    रात के जानवरों पर प्रभाव
    ग्रहण के चलते रात में रोशनी में बदलाव आ जाता है. ग्रहण अस्थाई रूप से पूरे चक्र को प्रभावित कर देता है ।एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ दिन-रात के चक्र में नहीं रात्रिकालीन जीवों पर भी इसका असर देखने को मिलता है ।

    उदाहरण के तौर पर चंद्र ग्रहण के दौरान बंदर कुछ एक्टिविटी नहीं करते हैं । जबकि दूसरी ओर चमगादड़ों की एक्टिविटी इसके पहले और बाद में काफी बढ़ जाती है. ग्रहण के बाद वो शिकार पर चलते हैं । मच्छरों की बात करें तो वो इस दौरान अपनी गतिविधियों को कम कर देते हैं ।ऐसा जांच में पाया गया है ।



    कुत्तों का भौंकना और बेचैनी
    इंसानों के सबसे अच्छे दोस्तों में कुत्ते शुमार होते हैं. मौसम को लेकर वो सबसे ज्यादा संवेदनशील भी होते हैं. लेकिन उन पर खराब मौसम के अलावा ग्रहण का भी असर पड़ता है.

    इस दौरान वो परेशानी में आ जाते हैं. 2007 में 11940 कुत्ते-बिल्लियों पर एक रिसर्च की गई , तो उसमें सामने आया कि वो घबराकर छिप जाते हैं. जबकि कुछ लोगो ने शिकायत की उनके कुत्ते इस दौरान ज्यादा भौंकते हैं ।

    कोलंबस और ग्रहण की कहानी
    इंसान और जानवरों के अलावा इतिहास पर भी ग्रहणों का व्यापक असर देखने को मिलता है ।आज के जैसे शुक्रवार के दिन पूर्ण चंद्र ग्रहण ने महान यात्री क्रिस्टोफर कोलंबस की मदद की थी ।

    कहानी की शुरुआत होती है साल 1504 से, जब कोलंबस और उसके सहयात्री एक आइलैंड पर फंस गए थे, जिसे आज जमैका के नाम से पहचाना जाता है ।जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, स्थानीय लोगों की उदारता और मेहमान नवाजी में कमी आने लगी. उन लोगों ने कोलंबस और उसके साथियों को खाना खिलाना बंद कर दिया ।

    तब कोलंबस ने आने वाले पूर्ण चंद्रग्रहण का फायदा उठाया. उसके पास जर्मन खगोलविद जोहान्स मूलर का एक कैलेंडर था जिससे उसे पहले ही पता चल गया था कि 29 फरवरी 1504 को पूर्ण चंद्रग्रहण पड़ने वाला है.



    कोलंबस ने स्थानीय लोगों से कहा कि उनका भगवान बहुत नाराज है क्योंकि वे उन्हें खाना नहीं खिला रहे हैं. कोलंबस ने उन लोगों के मुखिया से कहा कि इसलिए अब उनका भगवान चंद्रमा को गायब कर देगा और 3 दिनों के भीतर चंद्रमा गुस्से से लाल हो जाएगा ।

    रात को जब वाकई ब्लड मून आसमान में दिखा तो स्थानीय लोग सन्न रह गए ।भयभीत होकर वे कोलंबस और उसके साथियों को उनकी जरूरत का सारा सामान उपलब्ध कारने के लिए राजी हो गए. उन्होंने कोलंबस से कहा कि वह अपने भगवान से कहें कि वह आसमान में रोज निकलने वाला चंद्रमा लौटा दें. हालांकि अब इसमें कितनी सच्चाई है, इसके बारे में बहुत कुछ नहीं कहा जा सकता है ।

    ग्रहण की कॉन्सपिरेसी थ्योरी
      चंद्र ग्रहण से जुड़ी थ्योरी को लेकर कोलंबस के दौर तक पीछे जाने की जरूरत नहीं है । आज भी ग्रहण को लेकर कितनी कहानियां दुनिया में सुनी-सुनाई जाती हैं । एक थ्योरी है कि चंद्र ग्रहण भूकंप आने की भविष्यवाणी करता है ।

    हालांकि ये सच है कि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल ज्वारों को प्रभावित करता है ।जो भूकंप के आने में अपनी भूमिका अदा करती है ।सीधे तौर पर भूकंप का ग्रहण से कोई लिंक नहीं है ।

    हवाई इंस्टिट्यूट ऑफ जियो फिज़िक्स एंड प्लेनेटोलॉजी के रिसर्चर जेरार्ड फ्रायर के मुताबिक धरती हर दिन कई भूकंपों से गुजरती है । इसका मतलब ये आशंकाएं बाय चांस होती है ।