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पीएम की रेस में बहन जी ! - जैसे रावण को राम, कंस को कृष्‍ण ने मारा था वैसे ही मोदी को मायावती हराएंगी.' - जय प्रकाश सिंह

PM पद की रेस में 'बहनजी'


लखनऊ 17 जुलाई 2018 ।।

क्‍या 2019 के लोकसभा चुनावों में किसी पार्टी को बहुमत न मिलने पर मायावती बड़ी भूमिका पर नजरें गड़ाए हुए हैं? पिछले कुछ समय से राजनीतिक गलियारों में यह सवाल काफी घूम रहा है । हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती खामोश हैं लेकिन विश्‍वसनीय सूत्रों ने बताया कि पार्टी जमीनी स्‍तर पर 'प्रधानमंत्री के रूप में बहनजी' की रणनीति पर काम करेगी । 2019 के चुनावों से पहले संभावित गठबंधन की दिशा में प्रधानमंत्री के पद की महत्‍वाकांक्षा मायावती और उनकी पार्टी का रुख तय करेगा. यही रणनीति राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों के लिए भी अपनाई जाएगी ।
आलोचकों का कहना है कि जिस पार्टी के पास लोकसभा में अभी एक भी सीट नहीं है उसके लिए प्रधानमंत्री पद की महत्‍वाकांक्षा रखना दूर की कौड़ी है । बसपा नेता इस तर्क को खारिज करते हैं । नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्‍ठ नेता ने बताया कि पार्टी का वोट शेयर उत्‍तर प्रदेश व कई अन्‍य राज्‍यों में बरकरार रहा है और इसे सीटों में बदलने की जरूरत है ।बसपा नेता के अनुसार, '2014 में पार्टी को भले ही लोकसभा सीट नहीं मिली हो लेकिन उसे उत्‍तर प्रदेश में 19.8 प्रतिशत वोट मिले थे ।इसी तरह मध्‍य प्रदेश और उत्‍तराखंड में साढ़े चार फीसदी वोट आए थे. कर्नाटक, पंजाब, दिल्‍ली, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ में भी बसपा को ठीकठाक वोट मिले थे.'।
बसपा नेता ने आगे बताया कि पार्टी को लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ 'बढ़ती नाराजगी' और संयुक्‍त विपक्ष की उभरती संभावनाओं के चलते सीटें जीतना बड़ी चुनौती नहीं है.


कर्नाटक सरकार के शपथग्रहण कार्यक्रम में स्‍टेज पर विपक्ष के दिग्‍गजों और सोनिया गांधी के साथ घनिष्‍ठता दिखाने के बाद मायावती ने 2014 की विफलता को पीछे छोड़कर 2019 में महत्‍वपूर्ण ताकत बनने का इशारा किया है । अब उन्‍हें लगता है कि अगर वह अपनी चालें सही तरह से चलेंगी तो वह राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बड़ी खिलाड़ी बनकर उभर सकती हैं. भारतीय राजनीति में दलितों के सबसे बड़े नेताओं में से एक होना और प्रशासक के रूप में जोरदार तजुर्बा मायावती के पक्ष में जाता है ।

2019 में अपने लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए बसपा ने दो तरह की रणनीति अपनाई है ।इसके तहत बसपा सावधानी से गठबंधन पर काम कर रही है और कांग्रेस व संभावित क्षेत्रीय दलों को खुश रख रही है ।साथ ही खुद को विपक्षी महागठबंधन के शिल्‍पकार के रूप में भी स्‍थापित करना चाहती है ।
जमीन पर 'प्रधानमंत्री के रूप में मायावती' अभियान का मूलमंत्र है । इसके लिए स्‍पष्‍ट वजहें भी दी गई हैं -पहली, 'दलित की बेटी' प्रधानमंत्री बन रही है इस सपने को बेचते हुए पार्टी कैडर और दलितों को एकजुट कर प्रेरित करना. दूसरी, चुपचान राजनीतिक हलकों में इस आइडिया को स्‍थापित करना ।

सोमवार को लखनऊ में पार्टी के बड़े कार्यकर्ताओं की बैठक में बसपा की यह रणनीति साफ नजर आई । इस बैठक में मायावती मौजूद नहीं थी लेकिन उनका संदेश भरोसेमंद नेताओं के जरिए भेज दिया गया । बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष जय प्रकाश सिंह ने कहा, 'पार्टी एक निश्चित रणनीति पर काम कर रही है. पूरा देश बहनजी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है.'।

उन्‍होंने आगे कहा, 'जैसे रावण को राम, कंस को कृष्‍ण ने मारा था वैसे ही मोदी को मायावती हराएंगी.' सिंह ने साथ ही कहा कि विपक्षी एकता मायावती के इर्दगिर्द हो रही है और बेंगलुरु में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण कार्यक्रम की तस्‍वीर इस बात को पूरी तरह से पेश करती है ।
राज्‍य सभा सांसद और राष्‍ट्रीय संयोजक वीर सिंह ने भी अपने भाषण में यही भावना दर्शायी ।
मायावती के एक और विश्‍वस्‍त और एमएलसी भीमराव अंबेडकर ने कहा कि हालात 1993 जैसे ही हैं जब सपा के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष मुलायम सिंह यादव और बसपा प्रमुख कांशी राम ने बीजेपी को यूपी से हटाने के लिए हाथ मिलाया था ।उन्‍होंने कहा कि उस समय 'मिले मुलायम कांशी राम, हवा में उड़ गए जय श्री राम' नारा था. इसे देखते अंदाजा लगाया जा सकता है कि नतीजा क्‍या होने वाला है ।

2019 के चुनावों के लिए बन रहे माहौल को देखते हुए मायावती ने बड़ी ही चतुराई से प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी महत्‍वाकांक्षा को स्‍थापित करना शुरू किया है । यही वजह है कि वह उत्‍तर प्रदेश और इसके बाहर गठबंधन पर गंभीरता से विचार कर रही हैं ।वह न केवल यूपी में अपनी पार्टी के विस्‍तार देना चाहती है बल्कि लोकसभा में भी मजबूत ताकत बनाना चाहती हैं । वह कांग्रेस और गैर एनडीए दलों के साथ भी घनिष्‍ठता बनाए रखना चाहती हैं ।