स्व गोपाल दास नीरज को विनम्र श्रद्धांजली --- करजा जो मिटटी का पटना था, पट गया जीवन कटना था कट गया ....
स्मृति शेष गोपाल दास नीरज: लगेंगी सदियां तुम्हें भुलाने में...
हिंदी के प्रसिद्ध गीतकार-कवि गोपाल दास नीरज का गुरुवार को निधन हो गया । गोपाल दास नीरज की बेटी कुंदिका ने कहा कि पापा तो चले गये पर हम लोग अनाथ हो गये ।
नीरज जी की तबीयत मंगलवार को खराब हो गई थी जिसके बाद उन्हें आगरा के लोटस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था ।. तबीयत अधिक बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली के एम्स लाया गया था जहां शाम साढ़े सात बजे निधन हो गया । गोपाल दास नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरवली गांव में हुआ था ।वह हिंदी मंचो के प्रसिद्ध कवि थे ।
गोपाल दास नीरज नहीं रहे । वे देह त्यागकर गीत छोड़ गये , गीत जीवन के और गान जीवन की नश्वरता के । नीरज के गीत पीढ़ियों के दिलों की आवाज बनें । उनका जाना हिंदी साहित्य में गीत की उस बेल का मुरझा जाना है, जो उनके रहते जीवंत थी,हरी-भरी थी ।
एक गीतकार का जाना समय के भीतर स्मृति के गान का मौन हो जाना होता है । नीरज, जीवन के दर्शन के रचनाकार थे , उजाले के भीतर अंधकार को सहेजते और शून्य के भीतर सृजन तलाशते । उनकी रचनात्मकता में जीवन मूल्य धड़कते रहे । समाज और राष्ट्र हर समय के साथ दर्ज होते रहे ।
नीरज जी की तबीयत मंगलवार को खराब हो गई थी जिसके बाद उन्हें आगरा के लोटस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था ।. तबीयत अधिक बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली के एम्स लाया गया था जहां शाम साढ़े सात बजे निधन हो गया । गोपाल दास नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरवली गांव में हुआ था ।वह हिंदी मंचो के प्रसिद्ध कवि थे ।
गोपाल दास नीरज नहीं रहे । वे देह त्यागकर गीत छोड़ गये , गीत जीवन के और गान जीवन की नश्वरता के । नीरज के गीत पीढ़ियों के दिलों की आवाज बनें । उनका जाना हिंदी साहित्य में गीत की उस बेल का मुरझा जाना है, जो उनके रहते जीवंत थी,हरी-भरी थी ।
एक गीतकार का जाना समय के भीतर स्मृति के गान का मौन हो जाना होता है । नीरज, जीवन के दर्शन के रचनाकार थे , उजाले के भीतर अंधकार को सहेजते और शून्य के भीतर सृजन तलाशते । उनकी रचनात्मकता में जीवन मूल्य धड़कते रहे । समाज और राष्ट्र हर समय के साथ दर्ज होते रहे ।
नीरज हिंदी साहित्य का वो चेहरा रहे जिसे जनता ने सराहा और उनके गीतों को गुनगुनाया । मंचीय कविता के कवि के रूप में नीरज को जितनी लोकप्रियता मिली, उतनी शायद ही किसी कवि को मिली ।वे गीत गाते और जनता उन्हें गुनगुनाती, वे जितने मंच पर लोकप्रिय हुए उतने ही मुख्यधारा में स्थापित हुए ।
पीढ़ियों के अंतराल में, मेरी स्मृतियों में नीरज आज भी हैं । सालों पहले अपने कस्बे हरदा के एक कवि सम्मेलन में नीरज के सुनाए शब्द आज भी गूंजते हैं ।उस दिन पहली बार बहुत करीब से जीवन के गीतकार को देखा ।
मुझे गुनगुनाहट सुनाई दे रही है..!
स्वप्न झरे फूल से
मीत चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे !
प्यार अगर थामता न पथ में उंगली इस बीमार उमर की
हर पीड़ा वैश्या बन जाती, हर आँसू आवारा होता ।
नीरज को पढ़ना यानी एक शिक्षक को रचनात्मक होते देखना. नीरज को गुनगुनाना यानी की गीतकार को भीतर उतरते देखना. नीरज को सुनना यानी गागर के भीतर सागर उंलीचते देखना ।
आपने नीरज के गीत गुनगुनाएं होंगे और कविता सुनी होगी ।
कभी नीरज के दोहे और शेर सुने हैं
रुके नहीं कोई यहां नामी हो कि अनाम
कोई जाए सुबह को कोई जाए शाम,
जरा शेर देखिए
'ख़ुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की
खिड़की खुली है फिर कोई उन के मकान की!'
नीरज साहित्य की एक लंबी यात्रा के पथिक रहे । गीत, कविता, दोहे और शेर, उनकी कलम हर जगह चली. वे हर विधा में अपने समय को दर्ज करते और जीवन को गुनते रहे । मृत्यु का विराट यथार्थ उनके सृजन के भीतर तैरता रहा । जीवन के गान में उन्होंने इसकी नश्वरता को सहेजा, वे जीवन को उसके समग्र आयाम में देखने वाले कवि थे ।गीत में वे उतरते थे और कविता में आकार लेते थे ।
फिल्मों में जीवन में रास नहीं आया, लेकिन जितना वहां जिये अलग तरह से जिए. मुंबई रास नहीं आई तो लौट आए । लेकिन गीतों के लिए तीन फिल्म फेयर पुरस्कार अपने नाम कर लिए । फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी कई चर्चित फिल्मों में सालों तक जारी रहा ।फिल्मी दुनिया को अपनी तरह से जिया, रचा और भोगा । कहानियां कई हैं, लेकिन गीतकार केवल एक ।
नीरज उम्र के लंबे पड़ाव में वे मंचों पर जब-तब कविताएं पढ़ते रहे,उम्र 80 वर्ष हो या 90, वे देह से पार जीते थे और सृजन में विश्राम करते थे । जिन्होंने नीरज को परवान चढ़ते सुना वे आज भी गुनगुनाते हैं और जो उन्हें ढलते हुए देख रहे थे वे उनकी रचनाओं से उन्हें रौशन होता देखते रहे ।
नीरज के सृजन में जीवन से लौटने के चिह्न हर मोड़ पर दिखाई देते हैं, लौटना नियति है और जीवन प्रारब्ध ।
दुनिया को हरे-भरे गीतों की पोटली देने वाले कवि तुम इस मिट्टी का कर्जा पटाकर गए, लेकिन तुम्हारा जीवन कटा नहीं, वह यादगार बन गया, मिसाल बन गया ।
अलविदा गीतों को जीवन से भर देने वाले गीतकार
जीवन कटना था, कट गया
अच्छा कटा, बुरा कटा
यह तुम जानो
मैं तो यह समझता हूँ
कपड़ा पुराना एक फटना था, फट गया
जीवन कटना था कट गया।
रीता है क्या कुछ
बीता है क्या कुछ
यह हिसाब तुम करो
मैं तो यह कहता हूं
परदा भरम का जो हटना था, हट गया
जीवन कटना था कट गया।
क्या होगा चुकने के बाद
बूँद-बूँद रिसने के बाद
यह चिंता तुम करो
मैं तो यह कहता हूँ
करजा जो मिटटी का पटना था, पट गया
जीवन कटना था कट गया।
बंधा हूं कि खुला हूं
मैला हूँ कि धुला हूँ
यह विचार तुम करो
मैं तो यह सुनता हूं
घट-घट का अंतर जो घटना था, घट गया
जीवन कटना था कट गया
एसडी बर्मन ने नीरज को फेल
करना चाहा था पर खुद फेल हो गये थे!
करना चाहा था पर खुद फेल हो गये थे!