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क्रिकेट के स्विंग शहंशाह से पाकिस्तानी सत्ता के शहंशाह बनने की डगर पर इमरान खान




26 जुलाई 2018 ।।

पाकिस्तान में बुधवार को हुए आम चुनाव के बाद वोट की गिनती जारी है ।इस बार चुनाव में पूर्व क्रिकेटर और 'पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ' के सुप्रीमो इमरान खान का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में है । गिनती के ताजा रुझानों से माना जा रहा है कि इस बार मुल्क की बागडोर क्रिकेटर से सियासतदान बने इमरान खान को मिलने जा रही है । हालांकि इस मुकाम तक पहुंचने में उन्हें 22 साल का वक़्त लग गया ।

 इमरान खान का जीवन परिचय
इमरान ख़ान, शौकत ख़ानम और इकरमुल्लाह खान नियाज़ी के घर पैदा हुए । वालिद इकरमुल्लाह खान  लाहौर में एक सिविल इंजीनियर थे । इमरान ख़ान अपने बचपन के दिनों में एक शांत और शर्मीले लड़के थे । एक मिडिल क्लास परिवार में अपनी चार बहनों के साथ बड़े हुए ।पंजाब में बसा ख़ान परिवार मुख्य रूप से मियांवाली के पश्तून नियाज़ी शेरमनखेल ट्राइब से ताल्लुक रखता है ।उनकी मां के परिवार से जावेद बुर्की और माजिद ख़ान जैसे सफल क्रिकेटर रह चुके हैं ।इमरान ख़ान ने तालीम लाहौर में ऐचीसन कॉलेज, कैथेड्रल स्कूल से हासिल की. इसके बाद वह आगे की पढ़ाई करने इंग्लैंड चले गए, जहां उन्होंने रॉयल ग्रामर स्कूल वर्सेस्टर में आला तालीम हासिल की । यहां भी क्रिकेट में उनका परफ़ॉर्मेंस काबिल-ए-तारीफ थी. 1972 में, उन्होंने केबल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में फिलॉसफी, राजनीति और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की । इसी दौरान इमरान खान ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे ।

जब इमरान बने 'कप्तान खान'

पाकिस्तान नेशनल क्रिकेट टीम ज्वाइन करने से पहले इमरान खान ने क्रिकेट का आग़ाज़ साल 1969 में लाहौर की तरफ से सरवोदा के ख़िलाफ़ मैच खेलकर किया । इसके बाद 3 जून 1971 को वह पाकिस्तान की नेशनल टीम में शामिल हुए और अपना पहला इंटरनेशनल क्रिकेट मैच इंग्लैंड के ख़िलाफ़ खेला । उस वक़्त इमरान खान की उम्र 21 साल थी । इसके बाद इमरान खान ने 1973-75 में 'यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड्स ब्लू' की टीम के लिए खेलते रहे । इमरान मुस्तकिल तौर पर 1976 में पाकिस्तान वापस आ गए और नेशनल टीम के लिए लगातार खेलने लगे । इमरान खान की पहचान एक बेहतरीन स्विंग गेंदबाज के तौर पर होती थी, इसलिए उन्हें 'स्विंग शहंशाह' भी कहा जाता था । इमरान  खान की अगुवाई में पाकिस्तान ने 1992 में पहला वर्ल्ड कप जीता. इस कामयाबी के बाद इमरान के प्रशंसक उन्हें 'कप्तान खान' कहने लगे. वर्ल्ड कप खिताब जीतने के बाद इमरान ने क्रिकेट से संन्‍यास ले लिया । जल्द ही उन्होंने अपने सपने को साकार करते हुए लाहौर में अपनी मां के नाम पर शौकत खान मेमोरियल कैंसर अस्‍पताल और रिसर्च सेंटर खोला ।

इमरान खान का सियासी सफर
इमरान खान ने 25 अप्रैल 1996 को 'पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ' के नाम से एक सियासी जमात कायम कर के सियासत के मैदान में पहला कदम रखा । शुरुआती दौर में उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी । 1997 में उनकी पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा पर उनकी पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई । फिर 2002 के चुनावों में भी उनकी पार्टी की हालत पतली ही रही, हालांकि तहरीक-ए-इंसाफ एक सीट जीतने में कामयाब रही ।इसके बाद 2008 में परवेज़ मुशर्रफ की देख-रेख में कराए गए चुनाव में इनकी पार्टी ने शामिल होने से मना कर दिया । 3 नवंबर 2007 में जब मुशर्रफ ने पाकिस्तान में इमरजेंसी लागू की तब इमरान खान को नज़रबंद करने की कोशिश की गई । उसके बाद 14 नवंबर 2007 को पुलिस ने इमरान खान को गिरफ्तार कर लिया ।जेल में चार दिन रहने के बाद इमरान ने भूख हड़ताल शुरू कर दी । 22 नवंबर को आनन-फानन में इन्हें अचानक रिहा कर दिया गया । 2011 में इमरान ने लाहौर में एक बड़े जलसे का आयोजन किया जिसमें लाखों की संख्या में लोग पहुंचे. ये जलसा हुकूमत की पॉलिसी के खिलाफ था । इस जलसे के बाद से इमरान को पाकिस्तान की सियासत में एक बड़ी ताकत माना जाने लगा । इसके बाद इमरान खान ने लगातार जलसे पर जलसे करते रहे । 2013 में इमरान खान ने 'नया बनेगा पाकिस्तान' का नारा दिया । इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी (पीटीआई) 2013 के आम चुनावों में वोट प्रतिशत के हिसाब से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी । पाकिस्तान के 'खैबर पख्तूनख्वा' प्रांत में PTI की सरकार बनी । लेकिन, इमरान PTI के इस परफॉर्मेंस से खुश नहीं थे, क्योंकि उन्हें इस चुनाव में अपनी सरकार बनने की पूरी उम्मीद थी ।

2014 के बाद की  इमरान खान की सियासत

 2014 में इमरान खान और PTI के कार्यकर्ताओं ने लाहौर से इस्लामाबाद तक एक रैली के तौर पर मार्च किया । ये मार्च आगे बढ़कर इस्लामाबाद के हाई अलर्ट रेड जोन में दाखिल हो गया । पुलिस के साथ हुई भिड़ंत में PTI के तीन कार्यकर्ताओं की मौत हुई और लगभग पांच सौ से ज्यादा लोग जख्मी हुए । उसके बाद से इमरान खान को नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तानी मुस्लिम लीग (नवाज) का मेन अपोजिशन समझा जाने लगा । इमरान लगातार नावाज शरीफ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे ।पानामा पेपर्स में शरीफ परिवार का नाम आने पर इमरान ने उनके खिलाफ पाकिस्तान में एक बड़े देशव्यापी आंदोलन की
बुनियाद रखी ।

2017 में इसी मामले की वजह से शरीफ को वज़ीर-ए-आज़म पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया । इमरान के आंदोलन का ही का नतीजा था कि नवाज़ शरीफ को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा ।  ये वाकया इमरान खान के एंटी करप्शन मूवमेंट की ही बड़ी कामयाबी थी ।  शरीफ परिवार का नाम 'पनामा पेपर्स' में आने के बाद इमरान खान ने उनके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू कर दिया था । नवाज शरीफ के खिलाफ उन्होंने सड़क से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ी । भ्रष्टाचार के केस में नवाज शरीफ को 10 साल की सज़ा सुनाई गई है ।

इस वक़्त पाकिस्तान में महिलाओं और युवाओं का एक बड़ा वर्ग इमरान खान का समर्थक है । सियासत में इमरान खान की किस्मत अब जाकर चमकी है, जब नवाज शरीफ को किसी भी तरह के सार्वजनिक पद के लिए अयोग्य करार दिया जा चुका है । चुनाव में इमरान के लिए एक अच्छी बात है कि निजी जिंदगी को छोड़ दें तो उनके सियासी जिंदगी पर कोई दाग नहीं है । ऐसे में वो अपने विरोधियों से काफी अलग दिखाई देते हैं ।

क्या है इमरान खान की कमजोरी

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फौज पर्दे के पीछे सक्रियता से इमरान के लिए काम कर रही है ताकि नतीजे PTI के पक्ष में आए । पीएमएल-एन की ओर से भी एक ऐसी बात कही जा रही है जिसे साजिश करार दिया जा रहा है लेकिन कई लोग इस बात को मान रहे हैं । नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्‍तान में पिछले कुछ सालों में काफी मजबूत हो चुकी थी । लेकिन जो हालात बने हैं उन्होंने कहीं न कहीं नवाज की पार्टी को कमजोर कर दिया है, जिसका सीधा फायदा इमरान खान और उनकी पार्टी PTI को मिलता हुआ नजर आ रहा है । अगर इमरान फौज की मदद से पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होते हैं तो वो उस आज़ादी से काम नहीं कर पाएंगे जिसकी जरूरत उन्हें 'नया पाकिस्तान' बनाने में होगी ।

इमरान ने जब  वजीरिस्‍तान में आतंकियों के खिलाफ चल रहे ऑपरेशन का विरोध किया था तब से उनके आलोचक ने उन्‍हें 'तालिबान खान' का नाम दे दिया है । पाकिस्तान की आवाम अब एक ऐसा नेता चाहती है जो दहशतगर्दी का डटकर मुकाबला करे । अगर इमरान सत्ता में आने के बाद  दहशतगर्दी को लेकर जरा सा भी सॉफ्ट रहते हैं तो इससे उनकी लोकप्रियता को बड़ा धक्का लग सकता है ।

जिन लोगों ने इमरान खान के सियासी सफ़र को शुरुआत से लेकर अब तक कवर किया है वो इस बात को अच्छे से जानते हैं कि इमरान और PTI के सियासी स्वाभाव में 2013 के चुनाव के बाद  अंतर देखने को मिला है । 2013 के चुनावोंं से पहले इमरान जोर-शोर से सेक्युलरिज्म की बात करते थे, पर अब वो दक्षिणपंथियों के समर्थक हैं । यही वो बात है जिससे पता चलता है कि पाकिस्तान में दक्षिणपंथ के ख़िलाफ़ जाकर सत्ता पाना लगभग नामुमकिन है । इस दोहरे रवैये से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इमरान की 'रिवॉल्युशनरी लीडर' वाली छवि को नुकसान पहुंच सकता है ।

इश्कबाजी से भरी है इमरान खान की निजी जिंदगी

इमरान खान क्रिकेट की दुनिया मे जितने चर्चित रहे उससे कम अपने इश्कबाजी के लिये भी चर्चित नही रहे है । इमरान की पूर्व पत्नी जमायमा ब्रिटेन के एक बड़े अमीर और ताकतवर परिवार से संबंध रखती हैं । जमायमा से इमरान के दो बच्चे हैं, सुलेमान और कासिम । 1995 में इमरान खान की जमायमा गोल्डस्मिथ के साथ शादी हुई । जमायमा ने शादी से पहले इस्लाम कुबूल कर लिया था । पाकिस्तान की जिंदगी से तालमेल नहीं बिठा पाने की वजह से 2004 में उन्होंने इमरान खान से तलाक ले लिया था ।इमरान ने जब जमायमा से शादी की थी, तब वो 42 साल के थे और जमायमा 21 साल की थी । शुरुआती दिनों में जमायमा के यहूदी होने को लेकर अक्सर ये आरोप लगते रहे कि इमरान खान वेस्टर्न कंट्रीज के एजेंट हैं ।

बेनज़ीर भुट्टो के साथ भी इमरान खान का संबंध काफी वक़्त तक चला । वो साल 1975 का था जब दोनों ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे । बेनज़ीर तब 21 साल की थीं. दोनों लगभग हमउम्र थे । कुछ वजहों से ये अफेयर निकाह में तब्दील नहीं हो सका । इमरान खान की बायोग्राफी में भी इस रिश्ते का ज़िक्र है ।

1990 में इमरान का नाम सीता व्हाइट से भी जुड़ा था । सीता ने लोगों को बताया कि उनकी बेटी ताइरिन व्हाइट के पिता इमरान खान हैं पर इमरान इस बात से इनकार करते रहे । कोर्ट में जब ये साबित हो गया तब इमरान ने ताइरिन के पिता होने की बात कुबूली ।

इमरान खान अपने अफेयर्स और रिश्तों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहते हैं । 65 साल के इमरान खान की प्रेमिकाओं की लिस्ट काफी लंबी है । हिंदी फिल्मों की अदाकारा ज़ीनत अमान भी इस लिस्ट में शामिल रही हैं ।
(साभार न्यूज 18)