राजस्थान में आज से स्कूलों में अन्नपूर्णा योजना लागू , प्रार्थना सभा के बाद तीन दिन बच्चे पियेंगे पहले दूध फिर होगी पढ़ाई
पहली घंटी में पढ़ेेंगे बच्चे दूध का पाठ
बिना ट्रेनिंग के शुरू की गयी योजना
एकल व दो शिक्षकों वाले स्कूलों में होगी योजना अन्नपूर्णा की असली परीक्षा
चित्तौडग़ढ़ राजस्थान 2 जुलाई 2018 ।।
सरकारी प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में दो जुलाई यानी आज से बच्चों को दूध पिलाने के लिए कागजी तैयारियां पूरी हो गई है,लेकिन हकीकत के धरातल पर कई सवाल घूम रहे है जिनका जवाब देने से अधिकारी भी बच रहे है। शिक्षक भी कई सवालों के जवाब अभी तलाश नहीं पाए है लेकिन मान रहे है कि योजना पर अमल शुरू होते ही समस्याएं उजागर होगी तो समाधान निकलेगा। बता दे कि सरकारी स्कूलों में अन्नपूर्णा दूध योजना के तहत कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों बच्चियों को सप्ताह में तीन दिन प्रार्थना सभा के बाद दूध पिलाया जाएगा। ऐसे में संभावना यह भी है कि बच्चों की पहली घंटी पढऩे की बजाए दूध पीने में ही समाप्त हो जायेगी।प्रमुख समस्या ऐसे स्कूलों में भी आने वाले है जहां पर एकल शिक्षक या दो शिक्षक ही है।जहां पर एक ही शिक्षक है वहां पर शिक्षक पहले दूध लाकर बच्चों को पिलायेगा फिर मिड-डे मिल के भोजन की व्यवस्था में लग जाएगा । ऐसे में सवाल यह है कि वह शिक्षक स्कूल का ताला कब खोलेगा और इसके पास पढ़ाने के लिये कब समय होगा ? जानकारी के अनुसार जिले में ३७ स्कूल ऐसे है वहां पर एक भी शिक्षक नहीं वहीं ३२२ स्कूल ऐसे है जहां पर एक शिक्षक तैनात है। ऐसी ही बड़ी समस्या जहां पर दो शिक्षक लगे हुए वहां पर भी हो सकती है। सबसे बड़ी समस्या दूध के फट जाने के बाद होगी क्योंकि दूध फटा तो जिम्मेदार कौन होगा ? जानकारी के अनुसार यदि दूध फट जाता है तो उस दूध का भुगतान दूध समिति को नहीं किया जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि यह कैसे तय होगा कि दूध वास्तव में खराब था या बर्तन की खराबी के वजह से दूध फटा।यदि दूध उपस्थिति से कम ज्यादा आया तो जिम्मेदार कौन?प्रशिक्षण दिया नहीं, थमा दिए लेक्टोमीटरदूध की गुणवत्ता जांच के लिए स्कूलों में लेक्टोमीटर तो दे दिए है। लेकिन जिले में एक भी शिक्षकों को दूध जांच के लिए किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया गया। लेक्टोमीटर से दूध की गुणवत्ता की जांच होगी लेकिन अन्य पौषक तत्वों की जांच कैसे होगी।
जहां पर एक या दो शिक्षक लगे है वहां पर परेशानी हो सकती है। लेकिन उन्हें ही अपने स्तर पर व्यवस्था करनी होगी। प्रशिक्षण को लेकर हमें कोई निर्देश नहीं मिले है। नंदलाल कुम्हार, जिला शिक्षा अधिकारी, प्रारंभिक चितौड़गढ़ ।
बिना ट्रेनिंग के शुरू की गयी योजना
एकल व दो शिक्षकों वाले स्कूलों में होगी योजना अन्नपूर्णा की असली परीक्षा
चित्तौडग़ढ़ राजस्थान 2 जुलाई 2018 ।।
सरकारी प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में दो जुलाई यानी आज से बच्चों को दूध पिलाने के लिए कागजी तैयारियां पूरी हो गई है,लेकिन हकीकत के धरातल पर कई सवाल घूम रहे है जिनका जवाब देने से अधिकारी भी बच रहे है। शिक्षक भी कई सवालों के जवाब अभी तलाश नहीं पाए है लेकिन मान रहे है कि योजना पर अमल शुरू होते ही समस्याएं उजागर होगी तो समाधान निकलेगा। बता दे कि सरकारी स्कूलों में अन्नपूर्णा दूध योजना के तहत कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों बच्चियों को सप्ताह में तीन दिन प्रार्थना सभा के बाद दूध पिलाया जाएगा। ऐसे में संभावना यह भी है कि बच्चों की पहली घंटी पढऩे की बजाए दूध पीने में ही समाप्त हो जायेगी।प्रमुख समस्या ऐसे स्कूलों में भी आने वाले है जहां पर एकल शिक्षक या दो शिक्षक ही है।जहां पर एक ही शिक्षक है वहां पर शिक्षक पहले दूध लाकर बच्चों को पिलायेगा फिर मिड-डे मिल के भोजन की व्यवस्था में लग जाएगा । ऐसे में सवाल यह है कि वह शिक्षक स्कूल का ताला कब खोलेगा और इसके पास पढ़ाने के लिये कब समय होगा ? जानकारी के अनुसार जिले में ३७ स्कूल ऐसे है वहां पर एक भी शिक्षक नहीं वहीं ३२२ स्कूल ऐसे है जहां पर एक शिक्षक तैनात है। ऐसी ही बड़ी समस्या जहां पर दो शिक्षक लगे हुए वहां पर भी हो सकती है। सबसे बड़ी समस्या दूध के फट जाने के बाद होगी क्योंकि दूध फटा तो जिम्मेदार कौन होगा ? जानकारी के अनुसार यदि दूध फट जाता है तो उस दूध का भुगतान दूध समिति को नहीं किया जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि यह कैसे तय होगा कि दूध वास्तव में खराब था या बर्तन की खराबी के वजह से दूध फटा।यदि दूध उपस्थिति से कम ज्यादा आया तो जिम्मेदार कौन?प्रशिक्षण दिया नहीं, थमा दिए लेक्टोमीटरदूध की गुणवत्ता जांच के लिए स्कूलों में लेक्टोमीटर तो दे दिए है। लेकिन जिले में एक भी शिक्षकों को दूध जांच के लिए किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया गया। लेक्टोमीटर से दूध की गुणवत्ता की जांच होगी लेकिन अन्य पौषक तत्वों की जांच कैसे होगी।
जहां पर एक या दो शिक्षक लगे है वहां पर परेशानी हो सकती है। लेकिन उन्हें ही अपने स्तर पर व्यवस्था करनी होगी। प्रशिक्षण को लेकर हमें कोई निर्देश नहीं मिले है। नंदलाल कुम्हार, जिला शिक्षा अधिकारी, प्रारंभिक चितौड़गढ़ ।