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बड़ा सवाल :- क्या ओवैसी है भारतीय राजनीति के एक नया जिन्ना अवतार

क्या ओवैसी इस देश की मौजूदा राजनीति के 'नए जिन्ना' हैं ?

    1 जुलाई 2018 ।। स्पेशल रिपोर्ट
असदुद्दीन ओवैसी के बारे में एक बड़े तबके का मानना है कि वो देश की सियासत में मुसलमानों की हिस्सेदारी की आवाज़ हैं. लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि ओवैसी की राजनीति कट्टरपंथ पर टिकी है. उनकी राजनीति का केंद्र है सिर्फ़ एक मज़हब है और वो मज़हब है इस्लाम. हाल ही में एक रैली में ओवैसी ने जब सेक्युलरिज्म को ही छल करार देते हुए मुसलमानों की ज़मात से एकजुट होने की अपील की तो आरोप लगा कि देश में एक नया जिन्नाह खड़ा हो रहा है. सवाल है क्या वाकई ओवैसी की सियासत में जिन्ना की झलक है ?



असदुद्दीन ओवैसी को नया जिन्नाह कहे जाने के पीछें हैं असदुद्दीन ओवैसी की तक़रीरें. पुराने हैदराबाद की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत ऑल इंडिया मुस्लिमीन. ओवैसी के बारे में कहा जाता है कि वो मुस्लिमों के जज़्बात उभारने में माहिर हैं. देश की मुस्लिम सियासत का विकल्प सेक्यूलरिज्म की धुरी पर घूमता रहा है. ऐसे वक्त ओवैसी मुस्लिमों के लिए अलग ही राजनीति की लकीर खींचते हैं. वो मुसलमान एकजुट होकर मुस्लिम उम्मीदवारों को ही वोट देने की अपील करते हैं. यही बात उन्हें नया जिन्ना होने का आरोप लगाती है ।
एमआईएम पार्टी का इतिहास भी ओवैसी का पीछा नहीं छोड़ता

असदुद्दीन ओवैसी 80 साल पुरानी पार्टी की नुमाइंदगी करते हैं. नवाब महमूद नवाज ने 1927 में मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लमीन की नींव रखी थी.
आज़ादी से 3 महीने पहले यानी मई 1947 जब भारत की आज़ादी की तारीख़ तय हो चुकी थी. सरदार पटेल बड़ी-बड़ी रियासतों का विलय भारत में कराने में जुटे हुए थे.
उस समय 562 रजवाड़ों में से सिर्फ़ तीन को छोड़कर सभी ने भारत में विलय का फ़ैसला किया. ये तीन रजवाड़े थे कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद.

7 सितम्बर, 1948 को हैदराबाद के निज़ाम ने भारतीय सेना के आगे आत्म-समर्पण किया
MIM उस वक्त कासिम राज़वी की अगुआई में हैदराबाद निज़ाम की निजी सेना थी. MIM के पास उस वक़्त 2 लाख रजाकार थे. आज़ादी के लिए कट्टरपंथी क़ासिम राज़वी के नेतृत्व में रज़ाकार जन सभाएं कर रहे थे और ग़ैर-मुस्लिमों पर हमले कर रहे थे. सरदार पटेल चाहते थे कि भारत के बीचों बीच पड़ने वाली रियासत हैदराबाद का निज़ाम किसी भी कीमत पर पाकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहिए.

उस समय सरदार पटेल की प्राथमिकता थी हैदराबाद का भारत में विलय. 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने निज़ाम के महल पर हमला बोल दिया. निज़ाम के MIM वाले रजाकारो ने भारतीय सेना के साथ लड़ाई शुरू कर दी. ये संघर्ष 4 दिन तक चला. 17 सितम्बर, 1948 को हैदराबाद के निज़ाम ने आत्म-समर्पण कर दिया. रज़ाकारों ने हार मानकर हथियार डाल दिए.

असदुद्दीन के दादा मौलाना अब्दुल वहीद ओवैसी को भी नफरत फैलाने के लिए 11 महीने तक जेल हुई

1948 में MIM पर सरकार ने पाबंदी लगा दी. 1957 में रज़ाकार कासिम राज़वी पाकिस्तान चला गया और MIM की कमान असदुद्दीन ओवैसी के दादा अब्दुल वहीद ओवैसी को सौंप गया. यही वो साल था जब नेहरू सरकार ने MIM पर लगी पाबंदी को हटाया था और इसी साल से असदुद्दीन ओवैसी के दादा ने नफ़रत की सियासत फिर छेड़ दी थी. असदुद्दीन के दादा मौलाना अब्दुल वहीद ओवैसी को भी नफरत फैलाने के लिए 11 महीने तक जेल में रखा गया था.

अब्दुल वहीद ओवैसी को 14 मार्च 1958 को गिरफ़्तार किया गया था. वहीद पर हैदराबाद पुलिस ने सांप्रदायिक सद्भावना को भंग करने, मज़हबी नफरत फैलाने देश के ख़िलाफ़ मुसलमानों को भड़काने के आरोप लगाए थे.

MIM ने अपनी पहली चुनावी जीत 1960 में दर्ज की. तब असदुद्दीन ओवैसी के पिता सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद नगर पालिका के लिए चुने गए. फिर 2 साल बाद वह विधान सभा के सदस्य बने तब से मजलिस की ताकत लगातार बढती गई.

  जबसे असदुद्दीन ने पार्टी की कमान संभाली तबसे देशभर में उसको पहचान दिलाई
सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद से लगातार 6 बार सांसद रहे. 1984 से हैदराबाद लोकसभा सीट पर MIM का कब्ज़ा बरकरार है. 1984 वही दौर था जब असदुद्दीन ओवैसी सेंट मैरी जूनियर कॉलेज में पढ़ रहे थे. राजनीति से ज्यादा वास्ता नहीं था. 1989-1994 में उन्होंने लंदन के लिंकन कॉलेज से बैरिस्टर की डिग्री हासिल की, लेकिन 1994 से ही असदुद्दीन का नाता राजनीति से जुड़ गया.
1994 और 1999 में अदुद्दीन हैदराबाद की चारमीनार विधानसभा सीट से विधायक रहे. 2004, 2009 और 2015 में हैदराबाद लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. असदुद्दीन 2008 से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष हैं.

ओवैसी खानदान की पार्टी AIMIM की पहचान उनके पिता के ज़माने तक हैदराबाद और आस-पास के इलाकों में ही थी लेकिन जबसे असदुद्दीन ने पार्टी की कमान संभाली तबसे देशभर में उसको पहचान दिलाई और उसकी वज़ह है उनका हमलावर अंदाज़ और कड़क तेवर.

उनके छोटे भाई के भड़काऊ बयान के बाद ये धारणा और बढ़ी

असदुद्दीन ओवैसी की राजनीतिक शैली और आक्रामक है. यही उन्हें दूसरे अल्पसंख्यक नेताओं से अलग खड़ा करती है. उनकी ताकत है मुद्दों पर पकड़, बातचीत का हमलावर लहज़ा. लेकिन उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी की राजनीति बिल्कुल रज़ाकारों के कट्टरपंथ पर चलती है. अकबरुद्दीन के एक बयान की वजह से देश भर में उनकी पहचान नफरत और बांटने वाली राजनीति की होने लगी. असदुद्दीन तर्कपूर्ण तरीके से मुसलमानों के हक की बात करके उन्हें लामबंद करते हैं, लेकिन अकबरुद्दीन की राजनीति एकदम कट्टर है फिर भी असदुद्दीन ने उन्हें कभी नहीं रोका. इसको तो असदुद्दीन की राजनीति की कुटिल चाल ही माना जाना चाहिए.

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि असदुद्दीन बांटने वाली राजनीति तो करते हैं लेकिन चालाकी भरे अंदाज़ में. वो इसी देश में रहने, जीने मरने की कसमें भी खाते हैं और इसी देश में मुसलमानों को बाकी समाज से अलग सिर्फ मुसलमानों के लिए जीने की कसमें भी दिलाते हैं. इसीलिए असदुद्दीन को बाकी मुस्लिम नेताओं की कतार में नहीं खड़ा किया जाता. उनकी हर बात अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिम युवाओं पर अलग प्रभाव छोड़ती है।(साभार न्यूज 18)