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सुप्रीम कोर्ट ने कहा - दूसरे देशों में मृत्यु दंड खत्म होना , भारत मे भी खत्म करने का आधार नही



नईदिल्ली 9 जुलाई 2018 ।।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि ब्रिटेन, कई लैटिन अमेरिकी देशों और ऑस्ट्रेलियाई राज्यों से मृत्युदंड खत्म किया जाना भारत के कानून से इसे खत्म किए जाने का कोई आधार नहीं है. निर्भया मामले में मौत की सज़ा पाए चार दोषियों में से तीन की पुनर्विचार याचिका खारिज करने वाली शीर्ष अदालत ने कहा कि जब तक दंड संहिता में मृत्युदंड का प्रावधान है, तब तक ‘‘उचित मामलों’’ में मौत की सजा देने के कारण अदालतों को गैर कानूनी काम करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता ।चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस आर भानुमति तथा जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दंड-संहिता में मृत्युदंड की मौजूदगी, संवैधानिक प्रावधानों और अंतरराष्ट्रीय नियमों पर अच्छी तरह से विचार करने के बाद यह पाया गया कि मृत्युदंड ‘‘संवैधानिक रूप से वैध’’ है ।
शीर्ष अदालत ने यह बात तब कही जब दोषियों - विनय शर्मा और पवन कुमार गुप्ता की ओर से पेश एडवोकेट एपी सिंह ने भारत में मृत्युदंड खत्म किए जाने को लेकर चर्चा की. पीठ ने विनय और पवन की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘(ए पी) सिंह का यह कहना कि ब्रिटिश संसद ने 1966 में मौत की सजा खत्म कर दी थी और कई लैटिन अमेरिकी देशों और ऑस्ट्रेलियाई राज्यों ने भी मृत्युदंड खत्म कर दिया है, यह हमारे देश के कानून की किताब से मृत्युदंड खत्म करने का कोई आधार नहीं है.’’। शीर्ष अदालत ने इन दो दोषियों के अलावा एक अन्य दोषी मुकेश की पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी ।