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नही सुलझी बात - फिर SC पहुंचा एलजी VS केजरीवाल विवाद, AAP की याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई




नईदिल्ली 10 जुलाई 2018 ।।

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (LG) के बीच अधिकारों का विवाद फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है. जिसमें राज्य सरकार और एलजी के बीच अधिकारों को फिर से स्पष्ट करने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच अगले हफ्ते इस याचिका पर सुनवाई करेगी.

सरकार ने ट्रांसफर, पोस्टिंग मुद्दों पर एलजी अनिल बैजल के साथ अधिकारों के टकराव को लेकर ये याचिका दायर की है. इससे पहले सोमवार को एलजी अनिल बैजल ने कहा कि सीएम केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के क्रियान्वयन पर गलत बयान दे रहे हैं. अभी कोर्ट की रेग्युलर बेंच इस बारे में सुनवाई करेगी, जिसके बाद ही फैसले पर पूरी स्पष्टता आ पाएगी.
केजरीवाल ने एलजी से कहा था- उलझन हो तो सुप्रीम कोर्ट जाएं
बता दें कि सोमवार को कई अटकी हुई फाइलों को लेकर अरविंद केजरीवाल ने एलजी को लेटर लिखा था. केजरीवाल ने लिखा था, ‘आप सुप्रीम कोर्ट के एक हिस्से को मान रहे हैं, जबकि दूसरे को नहीं. आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर सिलेक्टिव कैसे हो सकते हैं? या तो आप कहें कि पूरा आदेश मानेंगे और उसे लागू करेंगे, या फिर कहें कि पूरा आदेश 9 मुद्दों पर सुनवाई के बाद ही मानेंगे. कृपया सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पूरा मानें और लागू कराएं. गृह मंत्रालय के पास सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या का अधिकार नहीं है. कोई उलझन है तो सुप्रीम कोर्ट जाइए, लेकिन कोर्ट के आदेश का उल्लंघन मत करें.’।

जवाब में एलजी ने भी लिखा था लेटर
जवाब में एलजी ने भी सीएम केजरीवाल को लेटर लिखा था. एलजी ने केजरीवाल से कहा था, 'सीएम कोर्ट के फैसले के क्रियान्वयन का गलत उल्लेख कर रहे हैं । सुप्रीम कोर्ट ने संदर्भ का जवाब देते हुए निर्देश दिया है कि मामलों को रेग्युलर बेंच में रखा जाए ।कोर्ट के फैसले पर पूरी स्पष्टता लंबित मामलों के अंतिम निपटारे के बाद ही आ पाएगी.’

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के विवाद पर 4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल स्वतंत्र फैसले नहीं ले सकते. उनकी भूमिका खलल डालने वाली नहीं होनी चाहिए ।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने ज्यादातर बातें दिल्ली सरकार के पक्ष में कहीं, हालांकि कई बातें उन्होंने एलजी और केंद्र सरकार के पक्ष में कही. कोर्ट ने यह भी कहा कि उपराज्यपाल न तो हर मामला राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं, न ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जा सकता है.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने यह भी कहा कि उपराज्यपाल न तो हर मामला राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं, न ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जा सकता है ।


सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में क्या कहा?
सरकार जनता के प्रति जवाबदेह हो. जनता के लिए सरकार को उपलब्ध होना चाहिए ।
चुनी हुई सरकार ही सर्वोच्च है. मंत्रिमंडल के पास ही असली शक्ति होती है ।
संघीय ढांचों में राज्यों को भी स्वतंत्रता मिली है.
शक्तियों में समन्वय हो. शक्ति एक जगह केंद्रित नहीं हो सकती है ।
एलजी के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं. सरकार के साथ मिलकर काम करें ।अराजकता की जगह नहीं.
एलजी चुनी हुई सरकार की सलाह और सहमति से काम करें. काम में बाधा नहीं डालें ।
एलजी को सीएम का फैसला रोककर रखने का अधिकार नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने एलजी के पक्ष में क्या कहा?
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना मुमकिन नहीं है.
दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है और राज्य सरकार को एक्सक्लूसिव अधिकार नहीं दिए जा सकते हैं.
उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासक हैं. कानून बनाने से पहले और बाद में उसे एलजी को दिखाना होगा.
लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं. संविधान का पालन होना चाहिए.
कैबिनेट-एलजी में मतभेद हो, तो मामला राष्ट्रपति के पास भेजा जाए. केंद्र और राज्य के रिश्ते सौहार्दपूर्ण हों.
तीन मुद्दे लैंड, लॉ एंड ऑर्डर और पुलिस केंद्र के अधीन होगा.
संसद का कानून ही सर्वोच्च होगा ।