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रक्षाबंधन पर एक मर्मस्पर्शी लघु कथा --रिश्ते


मर्मस्पर्शी लघुकथा....
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रक्षा बंधन पर विशेष

"रिश्ते"
डॉ सुनील कुमार ओझा

प्रिंस।  ??????????

_पिताजी जोर से चिल्लाते हैं ।_
प्रिंस दौड़कर आता है पूछता है...
क्या बात है पिताजी?

पिताजी- तूझे पता नहीं है आज तेरी बहन रश्मि आ रही है?  वह इस बार हम सभी के साथ रक्षा बंधन मनायेगी..अब जल्दी से जा और अपनी बहन को लेके आ।

हाँ और सुन...तू अपनी नई गाड़ी लेके जा जो तूने कल खरीदी है..उसे अच्छा लगेगा।

प्रिंस - लेकिन मेरी गाड़ी तो मेरा दोस्त ले गया है सुबह ही...और आपकी गाड़ी भी ड्राइवर ये कहके ले गया की गाड़ी की ब्रेक चेक करवानी है।

पिताजी - ठीक है तो तू स्टेशन तो जा कीसी की गाड़ी या किराया की करके? उसे बहुत खुशी मिलेगी ।

प्रिंस - अरे वह बच्ची है क्या जो आ नहीं सकेगी ?
टैक्सी या आटो लेकर आ जायेगी आप चिंता क्यों करते हो ....

पिताजी - तूझे शर्म नहीं आती ऐसा बोलते हुए ?
घर मे गाडी़यां होते हुए भी घर की बेटी किसी टैक्सी या आटो से आयेगी ?

प्रिंस - ठीक है आप जाओ मुझे बहुत काम है मैं नहीं जा सकता...

पिताजी - तूझे अपनी बहन की थोड़ी भी फिकर नहीं ?
शादी हो गई तो क्या बहन पराया हो गई ....
क्या उसे हम सबका प्यार पाने का हक नहीं ?
तेरा जितना अधिकार है इस घर में उतना ही तेरी बहन का भी है। कोई भी बेटी या बहन मायके छोड़ने के बाद वह पराया नहीं होती।

प्रिंस - मगर मेरे लिए वह पराया हो चुकी है और इस घर पे सिर्फ मेरा अधिकार है।
तडाक ...अचानक पिताजी का हाथ उठ जाता है प्रिंस पर...
और तभी माँ भी आ जाती है ।

मम्मी - आप कुछ शरम तो कीजिये ऐसे जवान बेटे पर हाथ  नहीं उठाते।

पिताजी - तुमने सुना नहीं इसने क्या कहा ? अपनी बहन को पराया कहता है ....
ये वही बहन है जो इससे एक पल भी जुदा नहीं होती थी हर पल इसका ख्याल रखती थी।
पाकेट मनी से भी बचाकर इसके लिए कुछ न कुछ खरीद देती थी। बिदाई के वक्त भी हमसे ज्यादा अपने भाई से गले लगकर रोई थी।
और ये आज उसी बहन को पराया कहता है।

प्रिंस -(मुस्कुराके)  बुआ का भी तो आज ही रक्षा बंधन है पापा...
वह कई बार इस घर मे आई है मगर हर बार आटो से आई है..
आपने कभी भी अपनी गाड़ी लेकर उन्हें लेने नहीं गये...
माना वह आज वह तंगी मे है मगर कल वह भी बहुत अमीर थी आपको मुझको इस घर को उन्होंने दिल खोलकर सहायता और सहयोग किया है।
बुआ भी इसी घर से बिदा हुई थी फिर *रश्मि दी और बुआ मे फर्क कैसा।*
रश्मि मेरी बहन है तो बुआ भी तो आपकी बहन है।

कि तभी बाहर गाड़ी रूकने की आवाज आती है....
तब तक पापा प्रिंस की बातों से पश्चाताप की आग मे जलकर रोने लगे और इधर रश्मि भी दौड़कर  पापा मम्मी से गले मिलती है.. लेकिन उनकी हालत देखकर पूछती है कि क्या हुआ पापा?

पापा - तेरा भाई आज मेरा भी पापा बन गया है ।

रश्मि - भाई की तरफ देखते हुए ऐ पागल...
नई गाड़ी न? बहुत ही अच्छी है... मैंने ड्राइवर को पीछे बिठाकर खुद चलाके आई हूँ और कलर भी मेरी पसंद का है।

प्रिंस - दी...वह गाड़ी आपकी है और हमारे तरफ से आपको  रक्षा बंधन पर उपहार.
बहन सुनते ही खुशी से उछल पड़ती है की तभी बुआ भी अंदर आती है ।

बुआ - क्या भैया आप भी न, ???
न कोई फोन न कोई खबर अचानक भेज दी गाड़ी..... भागकर आई हूँ खुशी से।
ऐसा लगा जैसे पापा आज भी जिंदा हैं...

इधर पिताजी अपनी पलकों मे आंसु लिये प्रिंस की ओर देखते हैं और प्रिंस पापा को चुप रहने को इशारा करता है।
इधर बुआ कहती जाती है कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ कि मुझे पिता जैसा भैया मिला,
ईश्वर करे मुझे हर जन्म मे आप ही भैया मिले...
पापा मम्मी को पता चल गया था कि ...
ये सब प्रिंस की करतूत है मगर आज फिर एक बार रिश्तों को मजबूती से जुड़ते देखकर वह अंदर से खुशी से टूटकर रोने लगे। उन्हें अब पूरा यकीन था कि ..
मेरे जाने के बाद भी मेरा प्रिंस रिश्तों को सदा हिफाजत से रखेगा,.....

_बेटी और बहन दो बेहद अनमोल शब्द हैं..._
_जिनकी उम्र बहुत कम होती है । क्योंकि शादी के बाद एक बेटी और बहन किसी की पत्नी तो किसी की भाभी और किसी की बहू बनकर रह जाती है।_*
शायद लड़कियाँ इसलिए मायके आती होंगी कि....
उन्हें फिर से बेटी और बहन शब्द सुनने को बहुत मन करता होगा ।

कहानी अच्छी लगी हो और अगर दिल को छू गयी हो तो शेयर जरूर करना, शायद किसी और भाई - बहन/बुआ के रिश्ते आपस में जुड़ जाए🙏🏻

एक छोटा सा प्रयास

डॉ0 सुनील कुमार ओझा
(यह कहानी लिखने के प्रति प्रेरित करने का श्रेय भाई डॉ आदित्य कुमार "अंशू")





















डॉ0 सुनील कुमार ओझा


रिश्ते की डोर इसका ना कोई अंत है और ना ही कोई छोर
बंधन है ये एक प्यार का और प्यारी सी उस तकरार का 

इस बंधन का जो है मोल इस दुनिया में है सबसे अनमोल
नोक झोक और लड़ाई, छेड़ा छाड़ी और थोड़ी सी कुटाई


रंग इसके भर देवें खुशियां भाई बहन कि प्यारी सी वो दुनिया
राखी का वो रेशमी धागा, रक्षा का है बहन को वो वादा 
डोर के दो सिरों का वो जोड़, दोनों के बंधन का है अटूट तोड़
छिपना-छिपाना, भाई बहनों का एक दूसरे को खूब सताना

ये बंधन है एक प्यार का और मीठी-मीठी सी तकरार का  
एक बात भूल ना जाना बंधन उन जवानों के संग भी निभाना
सरहद पर है देश के खातिर ताकि आवे ना कोई दुश्मन भीतर

बहन का उस भाई के लिए इंतजार, पर पूरा देश है उसका परिवार
सूनी ना छोड़ो उनकी भी कलाई, जिसने बस रक्षा की शपथ निभाई
कर दे नाम शगुन का कुछ भाग उनके भी नाम, जो हंसते-हंसते हो गए हैं कुर्बान
अंत में एक छोटी सी इल्तज़ा कर्नाटक और केरल का भी कर दो भला।।
प्राची थापन