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सन 1885 से चल रहे अयोध्या विवाद का क्या 2018 में हो पायेगा पटाक्षेप , जाने विवाद का पूरा इतिहास

अयोध्या विवादः 1885 में पहली बार कोर्ट पहुंचा था केस, पढ़ें पूरा घटनाक्रम


नईदिल्ली 27 सितम्बर 2018 ।।

अयोध्या के राम जन्मभूमि विवाद और बाबरी मस्जिद 
मामले में आज यानी गुरुवार का दिन काफी अहम है ।
सर्वोच्च न्यायालय आज इस विषय पर फैसला सुना 
सकता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं । इस फैसले का लंबे वक्त से इंतजार है. माना जा रहा है कि आज के फैसले से राम मंदिर बाबरी मस्जिद विवाद में मालिकाना हक पर जल्द फैसला आने की उम्मीद है. 25 साल पहले यानी 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहादी गई थी, लेकिन मंदिर ढहाने के कई साल 
पहले से यह विवाद जारी है ।

आइए जानते हैं बाबरी मस्जिद के निर्माण से लेकर अब तक का पूरा घटनाक्रमः
1528: अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं. समझा जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर ने ये मस्जिद बनवाई थी जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था ।

1853: हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ. इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई ।

1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी 
करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में 
मुस्लिमों और हिंदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत
 दे दी ।

1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा. महंत 
रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से
 लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की ।

23 दिसंबर, 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी. इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे ।मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया ।


16 जनवरी, 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद 
अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना 
की विशेष इजाजत मांगी. उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की भी मांग की.

5 दिसम्बर, 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास
 ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में 
राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया. 
मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया.

17 दिसम्बर, 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित
 स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया ।

18 दिसम्बर, 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया.

1984: विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने बाबरी मस्जिद के
 ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व
 एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान 
शुरू किया ।

1 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने 
विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत 
दी. ताले दोबारा खोले गए. नाराज मुस्लिमों ने 
विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का
 गठन किया.

जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विहिप
 को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर 
आंदोलन को नया जीवन दे दिया.

1 जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से 
पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया ।

9 नवम्बर, 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की 
इजाजत दी.

25 सितम्बर, 1990: भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद 
साम्प्रदायिक दंगे हुए.

नवम्बर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया. भाजपा ने तत्कालीन 
प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया ।
 सिंह ने वाम दलों और भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी. बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया ।

6 दिसम्बर, 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने 
अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक
 दंगे हुए. जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया. प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया.

16 दिसम्बर, 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की 
जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. 
लिब्रहान आयोग का गठन हुआ.

जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं 
और मुसलमानों से बातचीत करना था.

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना
 हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने 
सुनवाई शुरू की.

मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं. मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे.

सितम्बर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए.

अक्टूबर 2004: आडवाणी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की भाजपा की प्रतिबद्धता दोहराई.

जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटकों
 से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर
 हमला किया. सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया.

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी.

28 सितम्बर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद 
उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया.

30 सितम्बर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने फैसला दिया था कि विवादित जमीन निर्मोही अखाड़े, हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड
के बीच बराबर बांट दी जाए. इस फैसले के खिलाफ 
हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई.

2011: हाईकोर्ट के फैसले को विचित्र बताते हुए सुप्रीम 
कोर्ट ने कहा कि किसी भी पक्ष ने जमीन का बंटवारा नहीं
 मांगा था.

2015: वीएचपी ने पूरे देश से राम मंदिर के निर्माण के
 लिए ईंट एकत्रित करने का आह्वान किया.

2016: सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा उम्मीद जताई की
 साल के अंत तक मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा.

6 मार्च, 2017: सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिए कि बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में 13 बीजेपी और अन्य राइट
 विंग नेताओं को क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी का आरोपी बनाया जा सकता है. हालांकि लखनऊ की स्पेशल 
ट्राइल कोर्ट नें तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए
 आरोप वापस ले लिए.

21 मार्च, 2017: चीफ जस्टिस खेहर ने इस विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थ बनने की पेशकश की और 
सुब्रमण्यम स्वामी को सलाह दी कि इस संवेदनशील
 मुद्दे को आपसी समझौते से ही सुलझाया जा सकता है.

19 अप्रैल, 2017: सुप्रीम कोर्ट ने एलके आडवाणी,
 मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे नेताओं के
 खिलाफ कॉन्स्पिरेसी के आरोपों को रीस्टोर किया.

31 मई, 2017: स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने तीनों 
नेताओं को क्रिमिनल कॉन्स्पिरेसी का आरोपी
 बनाया.

21 जुलाई, 2017: सुब्रमण्यम स्वामी ने इस मामले 
की जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट से निवेदन
 किया. कोर्ट ने जल्द फैसला देने का आश्वासन दिया.

8 अगस्त, 2017: शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने 30 पन्नों का शपथपत्र सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया. इस शपथ पत्र में
 बोर्ड ने विवादित जमीन से अपना दावा वापस लेने की
 बात कही और कहा कि पास के मुस्लिम बहुल इलाके
 में वे मस्जिद का निर्माण करना चाहते हैं.

11 अगस्त, 2017: नए सीजेआई दीपक मिश्रा की
 बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की.

5 दिसंबर, 2017: सुप्रीम कोर्ट में मामले की अंतिम सुनवाई शुरू ।
(साभार न्यूज18)