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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : दहेज प्रताड़ना केस में अब पुलिस सीधे कर सकती है गिरफ्तारी , अपने ही 2017 के फैसले को पलटा




    नईदिल्ली 14 सितंबर 2018 ।।
    दहेज उत्पीड़न केस में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अहम बदलाव किए हैं. दोनों पक्षों में संतुलन बनाने के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब केस की सच्चाई की जांच कराने के लिए फैमिली वेलफेयर सोसाइटी में जाने की जरूरत नहीं है । इससे पहले आईपीसी की धारा 498-ए के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फैमिली वेलफेयर सोसायटी की रिपोर्ट के आधार पर ही आरोपियों पर कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा ।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन सदस्यीय बेंच ने एक बार फिर से इस केस में किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार पुलिस को दिया है. कोर्ट का कहना है कि आईपीसी की धारा 498-ए के तहत किसी को गिरफ्तार किया जाए या नहीं ये फैसला पुलिस को ही करना है ।


    बेंच ने कहा, "हर राज्य के पुलिस महानिदेशक को ये सुनिश्चित करना होगा कि धारा 498-ए के तहत अपराधों के मामलों की जांच करने वाले अधिकारी को पूरी ट्रेनिंग दी जाए.''

    सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि धारा 498 ए के तहत गिरफ्तारी के मामले में जमानत याचिका पर तेजी से सुनवाई की जाए. हालांकि कोर्ट ने कहा कि वो एफआईआर को लेकर पुलिस को कोई दिशा-निर्देश नहीं दे सकते ।

    क्या था पिछला फैसला?
    पिछले साल यानी जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने कहा था कि दहेज के केस का गलत इस्तेमाल किया जाता है. प्रताड़ना का कोई भी मामला आते ही पति या ससुराल पक्ष के लोगों की एकदम से गिरफ्तारी नहीं होगी. दहेज प्रताड़ना यानी आईपीसी की धारा 498-ए के गलत इस्तेमाल को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन जारी किया था ।

    कोर्ट ने निर्देश दिया कि हर जिले में कम से एक फैमिली वेलफेयर सोसाइटी बनाई जाए. धारा 498-ए के तहत पुलिस या मजिस्ट्रेट के पास पहुंचने वाली शिकायतों को कमिटी के पास भेजना चाहिए. रिपोर्ट आने तक किसी को अरेस्ट नहीं किया जाना चाहिए. कमिटी की रिपोर्ट पर इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर या मजिस्ट्रेट मेरिट के आधार पर विचार करेंगे ।