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सुप्रीम कोर्ट का फैसला : समलैंगिगता अब अपराध की श्रेणी में नही, आर्टिकल 377 रद्द करने का दिया संकेत

सुप्रीम कोर्ट का फैसला, समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में नहीं

    मधुसूदन सिंह
    नईदिल्ली 6 सितंबर 2018 ।।
    समलैंगिक संबंधों को लेकर पिछले कई सालों से चले आ रहे विवाद पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए इसे अपराध मानने से इंकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा है कि दो वयस्‍क लोगों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए संबंध को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता ।

    चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय बेंच ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखने से इंकार कर दिया है । चीफ जस्‍टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि समलैंगिकों को समान अधिकार मिलना चाहिए. उन्‍होंने कहा कि समलैंगिकों को सम्‍मान के साथ जीने का अधिकार है. चीफ जस्‍टिस ने कहा कि पुराना आदेश सही नहीं था. समय के साथ कानून को बदलना चाहिए. अल्‍संख्‍यकों के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए ।
    केंद्र सरकार ने इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि दो वयस्क लोगों में आपसी सहमति से बनाए गए संबंध को अपराध की श्रेणी में बनाए रखने या नहीं रखने का फैसला वह कोर्ट के विवेक पर छोड़ती है. हालांकि केंद्र ने कहा था कि इस धारा के अंतर्गत नाबालिगों और जानवरों के साथ अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है और उसे वैसे ही बनाए रखना चाहिए ।

    सुनवाई के दौरान आर्टिकल 377 को रद्द करने के संकेत देते हुए संविधान पीठ में शामिल जस्टिस आरएफ नरीमन ने अपनी टिप्पणी में कहा था, 'अगर कोई कानून मूल अधिकारों के खिलाफ है, तो हम इसका इंतजार नहीं करेंगे कि बहुमत की सरकार इसे रद्द करे. हम जैसे ही आश्वस्त हो जाएंगे कि यह मूल अधिकारों के खिलाफ है तो हम ख़ुद फैसला लेंगे, सरकार पर नहीं छोड़ेंगे.'।

    क्या है आर्टिकल 377?
    आईपीसी की धारा 377 में 'अप्राकृतिक यौन अपराध' का जिक्र है, जिसमें कहा गया है कि जो भी प्रकृति की व्यवस्था के उलट जाकर किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ सेक्स करता है तो उसे उम्र कैद या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है ।