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कुशीनगर के कलेक्ट्रेट मे महाघोटाले की आशंका, मामला 90 लाख का

कुशीनगर के कलेक्ट्रेट मे महाघोटाले की आशंका,
मामला 90 लाख का

जिम्मेदारो ने खुद को बचाने की कोशिश में  मातहतो को बनाया बलि का बकरा
अमित कुमार की रिपोर्ट
कुशीनगर 16 सितम्बर 2018 ।।  बीते दिनो साढे तैत्तीस लाख रूपये के घोटाले के प्रयास मे जिला प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई  ने तमाम सवाल खड़े कर दिये है ? कलेक्ट्रेट के गलियारों मे चर्चा-ए-सरेआम है कि जिला प्रशासन ने "खेत खाये गदहा मार खाये जोलहा" के तर्ज पर बेगुनाहो पर चाबुक चलाकर  खुद का दामन बडी ही सफाई से बचा लिया है। चर्चा यह भी है कि इस कूटरचित खेल को अंजाम देने वाले उस लिपिक को ओसी बिल प्रभारी ने सीधे तौर पर बचाने का प्रयास किया है। जिसके आइडी से नब्बे लाख रूपये का बिल ट्रेजरी से स्वीकृत होकर बैंक मे पहुँचा। इधर प्रशासन ने सूखा राहत के चेक लेप्स होने के आरोप मे उस लिपिक (ओसी बिल सहायक)के खिलाफ कार्रवाई कर किसान दुर्घटना के पटल से संबंधित पूरे मामलें को घूमा दिया है। अब सवाल यह उठता है कि भूलेख पटल से किसान दुर्घटना वीमा योजना के तहत किसानों मे वितरण की जाने वाली नब्बे लाख रुपये मे से दस लाख रुपये का घोटला और साढे तैत्तीस लाख रूपये के घोटाले के प्रयास का  मामला तो सार्वजनिक हो गया लेकिन शेष धनराशि साढे छियालिस लाख रूपये कहा गये ? किन लाभार्थियो मे यह धनराशि वितरित किया गया इसकी जांच अब तक क्यों नहीं शुरु किया गया । यह अपने आप मे यक्ष प्रश्न बना हुआ है। कही ऐसा तो नहीं कि किसान दुर्घटना वीमा योजना मे घोटाले का कोई बडा खेल खेला गया है और प्रशासन के जिम्मेदार लोग इस पर्दा डालने के लिए सूखा राहत के लेप्स चेक (जिसमें कोई घोटाला नहीं हुआ है) का मुद्दा उठाकर घोटाले के असली मामले को पचाना चाहते  है?
       गौरतलब है कि बीते सप्ताह किसान वीमा योजना के तहत किसानों के परिवार को दी जाने वाली धनराशि के रकम मे से साढे तैतालिस लाख रुपये घोटले के प्रयास का मामला प्रकाश मे आया था। हो-हल्ला के बाद हरकत मे आये जिला प्रशासन ने तीन चेक जिसकी कुल धनराशि  साढे तैत्तीस लाख रूपये की थी उसके भुगतान पर रोक लगा दिया जबकि पांच-पांच लाख रूपये जो पंजाब नेशनल बैक पडरौना के खाताधारक सुरसती देवी एव किशोरीदेवी के नाम से जारी हुआ था उसे खाताधारको के खाते मे जाने और उस धनराशि को निकालने से नहीं रोक पाया। सूत्र बताते है कि इन खाताधारको की पहचान करने मे जिला प्रशासन अब तक नाकाम रही है। चूकी यह दस लाख रूपये का घोटाला उजागर हो गया तो प्रशासन ने आनन-फानन मे आपदा लिपिक रुपेश कुमार, उद्यान लिपिक रामेश्वर सिंह, रामपति मिश्र,प्रद्युम्न विश्वकर्मा सहित कुल आधा दर्जन लोगों पर मुकदमा दर्ज कराकर अपने दायित्वो का इतिश्री कर दिया।

ट्रेजरी से स्वीकृत हुआ नब्बे लाख

कहना न होगा कि ओसी बिल लिपिक अशोक पाठक द्वारा अपने आईडी से ट्रेजरी के टोकन नम्बर 731751898एन के जरिये कुल नम्बे लाख रूपये का बिल 21मार्च-2017 को ट्रेजरी विभाग को भेजा गया था । बताया जाता है कि 24 मार्च-2017 को ट्रेजरी ने नब्बे लाख रूपये की स्वीकृति कर कुल 20 खाताधारको के खाते मे धन भेज दिया गया। इसमें पांच लाख रूपये के पन्द्रह, दस लाख रूपये के एक एवं एक लाख पच्चीस हजार रुपये के चार खाताधारको के नाम शामिल था। जानकारो की माने तो किसान दुर्घटना वीमा योजना के तहत दुर्घटना मे किसानों के मृत्योपरान्त पांच लाख एवं दुर्घटनाग्रस्त किसानों के इलाज के लिए सवा लाख रुपये देने का प्राविधान है। ऐसे मे दस लाख रुपये की धनराशि किस खातेधारक को दी गई। अपने आप मे सवाल है?

बैक ने लौटाया विभाग को साढे तैत्तीस लाख रुपये

गौरतलब है कि ओसी बिल लिपिक अशोक पाठक द्वारा कुल बीस खाताधारको के खाते मे नब्बे लाख रूपये अपने आईडी से लोड किया गया। उसके बाद  ओसी बिल प्रभारी विपिन कुमार एंव ट्रेजरी विभाग की स्वीकृति पर धन भेजा गया। सूत्रो की माने तो कुछ खाताधारको के खाता संख्या मे त्रुटि होने के कारण स्टेट बैंक आफ इण्डिया पडरौना के मुख्य शाखा ने खाते मे त्रुटि होने के वजह से धन स्थानातरित न होने का कारण बताते हुए तैत्तीस लाख रूपये ओसी बिल प्रभारी के नाम वापस कर दिया।

छह माह बाद ओसी बिल प्रभारी ने बैकर्स चेक बनाने के लिए बैंक को भेजा पत्र

बताया जाता है कि बैंक द्वारा तकरीबन साढे तैत्तीस लाख रुपये की धनराशि ओसी बिल प्रभारी के खाते मे वापस करने के छह माह बाद जिलाधिकारी कार्यालय से दिनांक- 20 अगस्त-2018 को पत्र संख्या-1278/वे०लि०-2018  प्रभारी अधिकारी वेतन/ ओसी बिल प्रभारी के हस्ताक्षर से प्रद्युमन विश्वकर्मा के नाम दो लाख, रमापति मिश्रा के नाम बारह लाख एवं ओसी बिल फार डीएम कुशीनगर के नाम बैंकर्स चेक निर्गत करने का आग्रह किया गया। सूत्रो की माने तो पत्र क्रम मे स्टेट बैंक आफ इण्डिया पडरौना मुख्य ब्रांच द्वारा प्रद्युम्न विश्वकर्मा के नाम  दो लाख रुपये,रमापति मिश्रा बारह लाख बीस हजार चार सौ छप्पन रुपये,ओसी बिल प्रभारी के नाम उन्नीस लाख इक्कीस हजार आठ सौ तीन रुपये का अलग-अलग चेक निर्गत किया गया।

रमापति के नाम के चेक ने बिगाडा खेल

बताते चले कि 20 अगस्त-2018  को प्रभारी अधिकारी वेतन/ओसी बिल प्रभारी के हस्ताक्षर से जारी पत्र संख्या- 1278/वे०लि० के क्रम मे स्टेट बैंक आफ इन्डिया पडरौना मुख्य शाखा द्वारा निर्गत दो लाख रुपये की धनराशि प्रद्युमन विश्वकर्मा, रमापति मिश्रा 12 लाख 20 हजार 456 रुपये का चेक को कलेक्ट्रेट मे प्राइवेट मुंशी के तौर पर कार्यरत एक व्यक्ति  ने रिसीब किया। सूत्र बताते  है कि सेवानिवृत कानूनगो रमापति मिश्रा के पुत्र सुबोध मिश्रा निवासी ग्राम बेलवा मिश्र ने अपने पिता के नाम से जारी  चेक का भुगतान प्राप्त करने के लिए पडरौना नगर के छावनी मुहल्ले मे स्थित बंधन बैंक मे उक्त चेक को जमा कर उसके भुगतान के लिए दबाव बनाने लगा, जबकि की दो लाख का चेक प्रद्युम्न ने क्लीयरेंस कराकर अपने किसान क्रेडिट खाते मे जमा कर लिया। सूत्र बताते  है कि बन्धन बैंक मे अपने पिता रमापति के चेक का भुगतान कराने के लिए बार-बार दबाब बनाने के कारण बैंककर्मियों को कुछ सन्देह हुआ। बताया जाता है कि जब बन्धन बैंक के कर्मचारियों  ने अपने स्तर से जांच शुरु  किया तो भ्रस्टाचार की गठरी परत-दर-परत खुलने लगी।

एडीएम ने किया मामले की जांच

विश्वस्त सूत्रो की माने तो रमापति मिश्र के चेक के भुगतान के लिए सुबोध मिश्र द्वारा लगातार दबाव बनाने के बाद सन्देह के आधार पर बन्धन बैंक ने स्टेट बैंक से चेक का सत्यापन कराया। बताया जाता है कि दाल मे कुछ काला देख स्टेट बैंक ने  एडीएम को इसकी सूचना दी। एडीएम कृष्ण लाल तिवारी स्टेट बैंक पहुचकर पूरे मामले की बरीकी से जांच करते हुए  कलेक्टेट से जारी वेतन अधिकारी/ ओसी बिल प्रभारी के हस्ताक्षर वाले पत्र को फर्जी करार देते हुए स्टेट बैंक के लिपिक हिदातुल्लाह, आपदा लिपिक रुपेश कुमार,उद्यान लिपिक रामेश्वर सिंह, रमापति मिश्र, प्रद्युम्न  विश्वकर्मा, बन्धन बैंक के शाखा प्रबन्धक सर्वेश पाठक, सुबोध मिश्रा आदि को दोषी करार देते हुए इन लोगों के खिलाफ मुकदमा कराने के लिए ओसी बिल प्रभारी विपीन कुमार को निर्देशित किया। सूत्र बताते है  कि इस खेल के सबसे बडे खिलाड़ी ओसी बिल पटल के जिम्मेदारो को सीधे बचा लिया गया ।

..... तो क्या फर्जी पत्र पर बैंक ने निर्गत किया था चेक

घोटाले का परत खुलने के बाद जांच कर रहे प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों  का कहना है कि 20 अगस्त -2018 को जिलाधिकारी  कार्यालय से जारी पत्र 1278 /वे०ले०-2018  का वह पत्र फर्जी है जिस पर प्रभारी अधिकारी वेतन कृते जिलाधिकार कुशीनगर हस्ताक्षर है ।पत्र में तीन लोगों के नाम से बैंकर्स चेक निर्गत करने  के लिए स्टेट बैंक पडरौना सुभाष चौक शाखा के प्रबन्धक से आग्रह किया गया है। ओसी बिल प्रभारी विपिन कुमार की बातों पर यकीन कर उनके हस्ताक्षर वाला पत्र को फर्जी मान लिया जाय तो क्या बैंक ने फर्जी पत्र पर तीन चेक निर्गत कर दिया ? क्या बैंक ने उस पत्र पर किए गए हस्ताक्षर का मिलान नहीं किया? ।  चलिए मान लेते है कि प्रशासन के जिम्मेदार लोग जो कह रहे है सही है और वह पत्र फर्जी है तो क्या फर्जी पत्र जारी करने वाला नटवरलाल 19 लाख 21 हजार 803 रूपये का चेक ओसी बिल्स फार डीएम कुशीनगर  के नाम से निर्गत क्यों  कराया ? यह ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसका जबाब ओसी बिल प्रभारी भी  तर्क के साथ नहीं दे सकते है।

क्यों नही हुई ओसी बिल लिपिक पर कार्रवाई

 जगजाहिर है कि ओसी बिल लिपिक अशोक पाठक द्वारा अपने आईडी से ट्रेजरी के टोकन नम्बर 731751898 एन के जरिये कुल नब्बे लाख रुपये बीस खाताधारको के खाते मे धन भेजा गया। अगर कुछ खातेधारको के खाता संख्या मे कोई त्रुटि हुई तो इसके जिम्मेदार भी ओसी बिल प्रभारी है । बैंक ने जब साढे तैत्तीस लाख वापस किया तो फिर  ओसी बिल लिपिक ने खाताधारको का खाता संख्या सुधार कर दुबरा धन खाते मे क्यों नही भेजा। ऐसे मे यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि मामलें की जांच करने वाले अधिकारी किस आधार पर ओसी बिल लिपिक अशोक पाठक को इस मामले से दोषमुक्त कर उन कर्मचारियों को बलि का बकरा बना दिया जिनका इस मामलें से कोई लेना- देना ही नहीं है

कौन है सुबोध मिश्रा ?

सुबोध मिश्रा पुत्र रामपति मिश्रा ( सेवानिवृत कानूनगो) निवासी बेलवा मिश्रा के बारे मे ऐसी चर्चा है कि वर्ष 2012 से कलेक्ट्रेट मे प्राईवेट मुंशी के तौर पर ओसी बिल लिपिक अशोक पाठक के पटल से संबंधित कार्यों  को संपादित करता है। सूत्रो की माने तो वर्ष 2016 मे जिलाधिकारी के हस्ताक्षर से सुबोध मिश्रा का प्राईवेट कलेक्ट्रेट कर्मचारी का परिचय पत्र भी  जारी हुआ है। बैंक के सूत्रो की माने तो विगत तीन वर्षों  से ओसी बिल एवं बैंक संबन्धित सभी  कार्य सुबोध मिश्रा ही देखता था। इतना ही नहीं स्टेट बैंक से बैंकर्स चेक रिसीब करने वाला कोई और नहीं सुबोध मिश्रा ही है। सुबोध के बारे पूरे कलेक्ट्रेट मे इस बात की चर्चा है कि बतौर प्राइवेट मुंशी सुबोध बहुत ही कम समय मे अपनी हैसियत और संपति करोडो रुपये का बना लिया है।

▶ *बैंक मे सुबोध के साथ दिखे थे जिले के एक आला अधिकारी*

घोटाले का मामला जगजाहिर होने के बाद प्रशासनिक तंत्र सुबोध मिश्रा से पल्ला झाड लिया है। तंत्र के  जिम्मेदार लोग यह कहते नहीं थक रहे है कि वह सुबोध मिश्रा नहीं जानते है। जबकि ओसी बिल से लगायत कलेक्ट्रेट का एक अदना सा कर्मचारी सुबोध को बहुत अच्छी तरह से जानता है। बैंक सूत्रो की माने तो इस घटना के उजागर होने से पूर्व इस माह के प्रथम सप्ताह मे ही जिले के एक आला अफसर सुबोध मिश्रा के साथ स्टेट बैंक मे देखे गये थे। इस बात की पुष्टि  के लिए बैंक मे लगे शीशी टीवी  कैमरा को खंगाला जाये तो दूध का दूध और पानी का पानी  साफ हो जायेगा।

एडीएम भी  मानते है कार्य कर रहे है प्राइवेट मुंशी

मामला के उजागर होने के बाद अपर जिलाधिकारी  कृष्ण लाल तिवारी  के हस्ताक्षर से जारी  पत्र संख्या -158/अ०लि०-2018 दिनाक 01-09-2018 मे स्वीकार किया गया  है कि कलेक्ट्रेट एवं तहसील कार्यालय के कुछ पटलो पर सहायक कर्मचारियों द्वारा अनाधिकृत प्राइवेट व्यक्तियो को रखकर कार्य कराया जा रहा है जो आचरण नियमावली के विपरीत है। एडीएम ने सभी  प्राइवेट व्यक्तियो को हटाने का निर्देश दिया है।

साढे छियालीस लाख रुपये की जांच क्यों नही ?
ओसी बिल लिपिक अशोक पाठक द्वारा ओसी बिल प्रभारी व ट्रेजरी के स्वीकृति पर बीस खातो मे भेजे गये नब्बे लाख रूपये मे से साढे तैत्तीस लाख रूपये खाताधारको के खाता नम्बर मे त्रुटि के कारण स्थानांतरित नहीं होने के कारण बैंक ने कलेक्ट्रेट के खाते मे वापस भेज दिया जिससे बाद मे घपला करने का प्रयास किया गया। लेकिन यह क्या गारन्टी है कि बाकी के साढे छियालिस लाख रुपये पात्र एंव सही व्यक्ति के खाते मे गया है? इसकी जांच अब तक क्यों नही की गई जबकि सुरसती देवी और किशोरी देवी के नाम से फर्जी खाता खोलकर पांच-पांच लाख रुपये घोटाले का मामला उजागर हो चुका है। ऐसे मे अन्य खातो मे भेजे गए धनराशि की गहनता से जांच न होना भी अपने आप मे एक सवाल है ?