कैग ने अखिलेश सरकार पर 97 हजार करोड़ रुपये की धोखा घड़ी का लगाया आरोप
अमित कुमार की रिपोर्ट
लखनऊ 21 सितम्बर 2018 ।।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक बार फिर मुश्किलों मे फंसते नजर आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश में सरकारी धन के इस्तेमाल में भारी घपले का खुलासा हुआ है. सपा सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. ऑडिट एजेंसी नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि अखिलेश सरकार में 97 हजार करोड़ की राशि का बंदरबांट किया गया .सरकारी योजनाओं के लिए दी गई मोटी धनराशि का कोई हिसाब-किताब सरकार के पास नहीं है और सरकार इस व्यय के कोई भी दस्तावेज नहीं दिखा पाई है. सबसे ज्यादा घपला समाज कल्याण, शिक्षा और पंचायतीराज विभाग में हुआ है. सिर्फ इन तीन विभागों में 25 से 26 हजार करोड़ रुपये कहां खर्च हुए, विभागीय अफसरों ने हिसाब-किताब की रिपोर्ट ही नहीं दी.
अगस्त 2018 की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार इस राशि का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट जमा नहीं कर पाई है. इससे इतनी बड़ी सरकारी राशि के गलत इस्तेमाल का शक पैदा हुआ है. यूपी सरकार अब इस मामले की जांच कराने की बात कर रही है, वहीं समाजवादी पार्टी ने इस मुद्दे को राजनीति से प्रेरित बताया है. सपा के प्रवक्ता सुनील यादव ने कहा कि कैग की रिपोर्ट से भ्रष्टाचार की बात साबित नहीं हो जाती. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक अनुमान है. ऐसी ही रिपोर्ट महाराष्ट्र और गुजरात में आ चुकी हैं लेकिन राज्य सरकार ने तब भी किसी भ्रष्टाचार की बात नहीं मानी थी. यादव ने कहा कि कैग की रिपोर्ट ने तो 2 जी में भी घोटले की बात कही थी लेकिन कोर्ट से सभी आरोप खारिज हो चुके हैं.
यूपी सरकार की समाज कल्याण विभाग से लेकर शिक्षा समेत कई विभागों में पैसे के लेन-देन में हेराफेरी का शक जताया जा रहा है. एक ही प्राप्तकर्ता को एक ही विभागों से एक समान राशि आबंटित की गई लेकिन आजतक किसी भी विभाग की ओर से यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट नहीं मुहैया कराया गया. नियम के मुताबिक राशि आबंटित होने के बाद यह सर्टिफिकेट जमा करना जरूरी होता है और ऐसा न होने पर बकाया राशि का भुगतान रोक दिया जाता है.कैग ने जिस अवधि में बजट की जांच की है, उस वक्त यूपी में अखिलेश यादव की सरकार थी. यूपी में 2014 से 31 मार्च 2017 के बीच हुए करीब ढाई लाख से ज्यादा कार्यों के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट उपलब्ध नहीं कराए गए हैं.
आपको बता दें कि बजट जारी करने वाले विभाग पर यह सर्टिफिकेट लेने की जिम्मेदारी है. जब तक विभाग सर्टिफिकेट नहीं देते तब तक उन्हें बजट की दूसरी किश्त नहीं जारी की जा सकती. यह व्यवस्था इसलिए है, ताकि पता चल सके कि बजट का इस्तेमाल संबंधित कार्यों के लिए ही हुआ है. उपयोगिता प्रमाणपत्र से पता चलता है कि बजट का कितना हिस्सा कहां और किस तरह खर्च हुआ. इस प्रमाणपत्र की जांच से बजट के दुरुपयोग की गड़बड़ी पकड़ में आ जाती है. यह सख्त निर्देश है कि बिना उपयोगिता प्रमाणपत्र जारी किए दोबारा बजट जारी नहीं हो सकता.
2014-15 के बीच कुल 66861.14 करोड़ धनराशि 2.25 लाख उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं जमा हुए, इसी तरह 2015-16 में 10223.77 करोड़ के 11335, 2016-17 में 20821.37 करोड़ के 18071 प्रमाणपत्र विभागों ने जमा ही नहीं किए. सबसे ज्यादा गड़बड़ी समाज कल्याण विभाग में देखने को मिली. समाज कल्याण विभाग ने 26 हजार 927 करोड़ रुपये के उपयोगिता प्रमाणपत्र ही नहीं दिए.