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आज आ सकता है सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक सम्बन्धी मामले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला !

आखिर किस कानून के तहत सबरीमाला में नहीं प्रवेश मिलता महिलाओं को?



नईदिल्ली 28 सितम्बर 2018 ।।

बहुचर्चित सबरीमाला मंदिर प्रवेश मामले में आज  सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा । इस मामले में दायर की गई याचिका में 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने की मांग की गई है । सुप्रीम कोर्ट ने मामले में प्रवेश वर्जित करने संबंधी व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अगस्त में सुनवाई पूरी करके फैसले को सुरक्षित रख लिया था. जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाने वाली है 


ये हैं सबरीमाला मंदिर से जुड़ी खास बातें-


कहां है ये मंदिर है और यह किस बात पर रोक लगाती है

इससे जुड़ा क्या कोई कानून है या यह मंदिर का अपना नियम है?

सबरीमाल मंदिर प्रशासन का कानूनी अधिकार 'त्रावणकोर देवस्वम' को है. बोर्ड मंदिर से जुड़े नियमों को तय करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 26 से मिला हुआ है जो कि किसी भी धार्मिक संस्थान को आंतरिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है. लेकिन सबरीमाल में महिलाओं के प्रवेश पर रोक 'केरल हिंदू प्लेसेज़ ऑफ पब्लिक वर्शिप रूल्स 1965' के तहत किया जाता है. इसी नियम के तहत परंपरा के आधार पर किसी को पूजा के स्थान पर जाने से रोका जा सकता है ।

महिलाओं के प्रवेश पर रोक के खिलाफ कब शुरू हुई लड़ाई

मंदिर मे महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को पहली बार 1991 में केरल हाईकोर्ट में चैलेंज किया गया. लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि यह एक लंबी परंपरा पर आधारित है इसलिए यह संवैधानिक है ।

दूसरी बार 2006 में इंडियन यंग लॉयर एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल किया. उनका कहना था कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से रोकना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए गए समानता के अधिकार का हनन करता है. 7 मार्च 2008 को मामले मे फैसले के लिए तीन जजों की बेंच को भेज दिया गया. सात साल बाद 11 जनवरी 2016 को इस मामले में सुनवाई हुई. बाद में 20 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस संवैधानिक पीठ को भेज दिया ।

क्या हैं मूल मुद्दे?

पहला ये कि क्या परंपरा के नाम पर लिंग को आधार बनाकर समानता के अधिकार का उल्लंघन किया जा सकता है. दूसरा क्या यह संविधान के अनुच्छेद 25 के अतर्गत किसी धर्म की मूलभूत भावना या प्रेक्टिस के अंतर्गत आता है. तीसरा, बायोलॉजिकल आधार पर मंदिर में घुसने से रोकना क्या 'भेदभाव' के अंतर्गत आता है ।

क्या हैं याचिकाकर्ताओं के तर्क?

याचिका में कहा गया है कि मंदिर में प्रवेश पर रोक किसी परंपरा के तहत नहीं बल्कि महिलाओं के 'मासिक धर्म' को आधार बनाकर लगाई गई है. जो कि किसी को अछूत मानने जैसा है. दूसरा तर्क दिया गया कि सबरीमलाल मंदिर अलग धार्मिक संस्थान नहीं है क्योंकि मंदिर में पूजा-पाठ की पद्धतियां बिल्कुल हिंदू धर्म जैसी ही है ।

क्या है देवस्वम बोर्ड का तर्क

देवस्वम बोर्ड की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी है. महिलाएं लगातार 41 दिनों का तप नहीं कर सकतीं. सबरीमाला तीर्थ में जाने के लिए 41 दिनों का तप ज़रूरी है. यह अनिवार्य धार्मिक कार्य है. लेकिन महिला के लिए लगातार 41 दिनों का यह तप कर पाना मासिक धर्म के चलते शारीरिक रूप से संभव नहीं है. साथ ही यह भी दलील दिया कि केरल में महिलाएं काफी पढ़ी-लिखी हैं इसके बावजूद वो खुद भी इसका विरोध नहीं कर रही हैं. फिर केरल का समाज काफी कुछ ऐसी परंपराओं को भी मानता है जिसमें महिलाओं की प्रमुखता होती है. इसलिए यह कहना कि उन्हें दबाया जा रहा है, ठीक नहीं है ।