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कैसे थे गांधीजी के अपने बेटों से रिश्ते ?

 कैसे थे गांधीजी के अपने बेटों से रिश्ते
Sanjay Srivastava



25 सितम्बर 2018 ।।

महात्मा गांधी देश के तो राष्ट्रपिता थे लेकिन अपने परिवार पर उन्होंने हमेशा कम ध्यान दिया. उनके चार बेटे थे. अपने बेटों से उनके रिश्ते मिलेजुले थे लेकिन बड़े बेटे हरिलाल से रिश्तों में अच्छी खासी तल्खीयत थी. हरिलाल को उन्होंने अपना सबसे नालायक बेटा मानते थे ।गांधीजी के चार बेटे थे. दो बेटे भारत में पैदा हुए और दो दक्षिण अफ्रीका में. चारों बेटे अलग अलग मिजाज के थे. लेकिन हरिलाल को छोड़कर कोई उस तरह उनके खिलाफ नहीं गया. हरिलाल ने लगातार अपने पिता के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया. उसके चलते वो किसी भी स्थिति तक चले गए. हालांकि हरिलाल का जीवन काफी कष्टपूर्ण रहा ।
हरिलाल का जन्म 1888 में तभी हो गया था जबकि गांधी जी इस के लिए इंग्लैंड गए थे । वो भी पिता की तरह बैरिस्टर बनना चाहते थे. लंदन में जाकर शिक्षा हासिल करना चाहते थे. ऐसा कर पाना गांधीजी के लिए संभव भी था. लेकिन गांधी जी ने ये तर्क दिया कि स्कूली और पाश्चात्य शिक्षा से ज्यादा बेहतर व्यवहारिक और अपनी संस्कृति का ज्ञान. इसके चलते उन्होंने अपने बच्चों को दक्षिण अफ्रीका में स्कूली शिक्षा तक के लिए नहीं भेजा. क्योंकि उन्हें गवारा नहीं था कि उनके बेटे मिशन स्कूलों में जाएं ।

हरिलाल पढाई नहीं होने से नाराज रहते थे
हरिलाल अपने भाइयों में सबसे पतले, लंबे और सुंदर थे. 1910 में दक्षिण अफ्रीका में जब गांधी परिवार स्थायी रूप से टालस्टाय फार्म में आ गया, तब हरि 23 साल के थे, मणिलाल, 18, रामदास 18 और देवदास 10 साल के. हरिलाल और मणिलाल दोनों ही अपनी सुचारु स्कूली शिक्षा नहीं होने से खासे क्षुब्ध रहते थे ।

हरिलाल गांधी हमेशा अपने पिता से नाराज रहे. रिश्ता भी खत्म कर लिया था
उच्च शिक्षा के प्रति गांधी में एक विचित्र सा खौफ था. वो सभी स्कूलों को दासत्व का गढ़ कहते थे. उनके अनुसार बच्चों की शिक्षा दीक्षा घर पर ही होनी चाहिए. अनुशासित घरेलू वातावरण और माता-पिता का नियंत्रण ही बच्चों को बेहतर इंसान के रूप में विकसित कर सकता है. गांधी जी इस बात पर देर तक बहस कर सकते थे कि बच्चों को क्यों स्कूल और यूनिवर्सिटी नहीं भेजना चाहिए ।

पिता से तोड़ लिये संबंध
हरिलाल शुरू में दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी के साथ आंदोलनों में हिस्सा भी लेते थे. कई बार वहां जेल भी गए. लेकिन बाद में गांधीजी से उनके लगातार तर्क वितर्क होने लगे. वह ये महसूस करने लगे कि पिता की निरंकुशता को वो और बर्दाश्त नहीं कर सकते ।

बाद में वो पिता को छोड़कर भारत लौट आए. अहमदाबाद में उन्होंने स्कूल में पढाई की कोशिश की लेकिन ऐसा कर नहीं पाए. लेकिन धीरे धीरे पिता से बेसाख्ता घृणा करने लगे । संबंध भी टूट गए ।

वो इतने विद्रोही हो गए कि उन्होंने पिता को ठेस पहुंचाने के लिए 1936 में मुस्लिम धर्म स्वीकार करके अब्दुल्ला गांधी हो गए. हालांकि अपनी मां के अनुरोध पर दोबारा हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया. जब गांधीजी का अंतिम संस्कार हुआ तो हरिलाल भी वहां पहुंचे लेकिन वो इतनी फटेहाल थे कि कोई उनको पहचान भी नहीं पाया. पांच माह बाद उन्होंने एक सरकारी अस्पताल में अकेले दम तोड़ दिया ।


मणिलाल दक्षिण अफ्रीका में ही बस गए और अपने निधन तक डरबन के फीनिक्स आश्रम को संभालते रहे


दूसरे बेटे की भी पिता से खास नहीं बनती थी
गांधीजी के दूसरे बेटे मणिलाल से भी गांधीजी की कोई खास नहीं बनती थी. लेकिन वो उस तरह कभी विद्रोही नहीं हुए, जिस तरह हरिलाल. जब गांधीजी 1915 में हमेशा के भारत आ गए तो मणि भी उनके साथ यहां आएं ।

हालात कुछ ऐसे बने कि उन्हें महसूस होने लगा कि वो पिता के साथ रह नहीं पाएंगे । उन्हें अपनी स्वतंत्रता चाहिए थी. वो दो साल बाद ही वापस दक्षिण अफ्रीका चले गए.

वहां उन्होंने डरबन में गांधीजी के फिनिक्स आश्रम को संभालने के साथ वहां के प्रकाशित होने वाली साप्ताहिक समाचार पत्र इंडियन ओपिनियन का संपादन शुरू किया. 1956 में अपने निधन तक वो यही करते रहे. उन्होंने पिता से दूर दक्षिण अफ्रीका में ही बसने का फैसला कर लिया.


रामदास गांधी अपने पिता के सबसे प्रिय बेटे थे, जिन्हें उन्होंने मुखाग्नि का अधिकार दिया था


रामदास थे सबसे प्रिय बेटे
गांधी के सबसे प्रिय बेटे नंबर तीन रामदास थे. जिन्हें गांधीजी ने अपने निधन पर मुखाग्नि का अधिकार दिया. रामदास आमतौर पर चुप रहने वाले खुशमिजाज बेटे थे. पिता के आज्ञापालक. कई बार जेल गए. भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी कूदे. बाद में वो परिवार के साथ पुणे में बस गए.

सबसे ज्यादा पैनी बुद्धि पाई थी देवदास ने
चौथे नंबर के देवदास सही मायनों में सबसे पैने और बुद्धिमान बेटे थे. बेशक उन्होंने गांधीजी का विरोध कभी नहीं किया लेकिन उन्होंने इतनी शिक्षा जरूर हासिल की कि अपनी समझबूझ को आगे तक ले जा सकें.


गांधीजी के सबसे छोटे बेटे देवदास अपने ससुर सी राजगोपालाचारी के साथ


वो पिता से अपनी बात मनवा लेते थे. लिखने पढने में उनका कोई जवाब नहीं था. उन्हें जानने वाले लोग उन्हें उम्दा पत्रकार मानते थे. वो हिंदुस्तान टाइम्स में लंबे समय तक संपादक रहे. गांधीजी हमेशा अपने बेटों को शादी के लिए हतोत्साहित करते थे लेकिन देवदास अकेले ऐसे बेटे थे, जिनकी विवाह पर गांधीजी ने कोई बखेडा़ खड़ा नहीं किया बल्कि वो खुशी खुशी मान गए.

देवदास ने की थी लवमैरिज
देवदास 28 साल के थे और वो सी राजगोपालाचारी की बेटी लक्ष्मी से प्यार करते थे. लेकिन लक्ष्मी केवल 15 साल की थीं. जब उन्होंने पिता से अपनी पसंद का जिक्र किया तो पिता ने केवल इतनी शर्त लगाई कि अगर ये शादी तुम पांच साल बाद करो तो मेरी सहमति रहेगी. उन्होंने ऐसा ही किया. बाद में देवदास के तीनों बेटे राजमोहन, गोपालकृष्ण और रामचंद्र बेहतर स्थितियों में रहे. बेटी तारा गांधी ने अपनी अलग पहचान बनाई.

तीसरी पीढ़ी ने इसलिए हासिल की उच्च तालीम
हालांकि गांधीजी की तीसरी पीढ़ी खुद को पढ़ने लिखने के प्रति ज्यादा फोकस किया. शायद इसलिए उनके पिताओं को ये बात लगातार सालती रही कि शिक्षा बहुत जरूरी चीज है और उच्च शिक्षा जरूर हासिल की जानी चाहिए ।
(साभार न्यूज 18)