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पटाखा बैन: 5 साल के तीन बच्चों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

पटाखा बैन: 5 साल के तीन बच्चों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला



23 अक्टूबर 2018 ।।

दिवाली से ठीक पहले देशभर में पटाखा बैन पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुना दिया है । सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों के इस्तेमाल पर 'पूरी तरह' बैन लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि क्रिसमस, न्यू ईयर पर रात 11.45 से 12.45 बजे तक पटाखे छुड़ाए जा सकेंगे. इसके अलावा दीवाली पर रात 8 से 10 बजे के बीच ही पटाखे छुड़ाने की इजाजत होगी. बता दें कि देशभर में पटाखों के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगाने की मांग से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के बाद जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने 28 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रखा था ।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि प्रतिबंध से जुड़ी याचिका पर विचार करते समय पटाखा उत्पादकों के आजीविका के मौलिक अधिकार और देश के 1.3 अरब लोगों के स्वास्थ्य अधिकार समेत विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखना होगा. कोर्ट ने यह भी कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) सभी वर्ग के लोगों पर लागू होता है और पटाखों पर देशव्यापी प्रतिबंध पर विचार करते समय संतुलन बरकरार रखने की जरूरत है ।

बता दें कि सर्दियों की दस्तक होते ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने लगा है. यहां हवा की गुणवत्ता खराब स्तर पर पहुंच गई है. देश के अन्य बड़े शहरों में भी सर्दी का मौसम शुरू होते ही प्रदूषण बढ़ने लगता है. दीवाली के मौके पर पटाखों के धुएं से प्रदूषण और अधिक बढ़ने की आशंका होती है. हालांकि पटाखों पर बैन को लेकर यह बहस भी चल रही है कि त्योहार से ठीक पहले पटाखों पर बैन कैसे लगाया जा सकता है?

दिल्ली और एनसीआर के इलाके में हर साल दीवाली के आस-पास जबरदस्त वायु प्रदूषण होने के कई कारण हैं. हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का पराली जलाना, हवा का स्थिर होना और दीवाली पर पटाखों से होने वाला प्रदूषण इनमें प्रमुख हैं. ऐसे में तीन बच्चों ने प्रदूषण के खिलाफ जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी, उसी पर यह सुनवाई चली. इस याचिका में बताया गया था कि कैसे बच्चे इस प्रदूषण का सबसे ज्यादा शिकार बनते हैं ।

बैन हो गए थे पटाखे लेकिन बाद में हटा दिया गया था बैन
नवंबर, 2016 में पटाखों को सुप्रीम कोर्ट ने बैन कर दिया था हालांकि बाद में यह बैन प्रभावी नहीं रह गया. ऐसे ही पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर के इलाकों में पटाखे की बिक्री पर बैन लगा दिया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण के सही आंकड़े न पेश किए जाने और पटाखा विक्रेताओं के लाइसेंस का सही विवरण न दिए जाने के आधार पर कहा था कि यह साबित नहीं हो सका है कि पटाखे प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण हैं. ऐसे में इन्हें बैन नहीं किया जा सकता ।

साथ ही सरकार ने भी सीधे पटाखा बैन की बजाए, प्रदूषण नियंत्रण के दूसरे उपाय अपनाने की बात कही थी. न्यायालय ने केंद्र से प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिये उपाय सुझाने के लिए कहा था. कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा था कि पटाखे पर प्रतिबंध लगाने से जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा? वैसे इस मामले में पटाखा कारोबारियों ने कहा था कि पटाखों पर पूरी तरह बैन लगाने की बजाए इसके निर्माण, बिक्री और इस्तेमाल को लेकर कड़े नियम बनाए जाने चाहिए ।

बच्चों ने की थी पटाखों पर बैन की मांग
जिन बच्चों ने पटाखा बैन के लिए PIL दाखिल की थी उनकी उम्र 2 से 4 साल के बीच थी. इस याचिका में बताया गया है कि कैसे प्रदूषण से सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित होते हैं. सुप्रीम कोर्ट में पटाखा बैन को लेकर याचिका दायर करने वाले ये बच्चे हैं, अर्जुन गोपाल, आरव भंडारी और ज़ोया राव भसीन.

इन 5 साल की उम्र तक के बच्चों में से एक याचिकाकर्ता अर्जुन गोपाल हैं. उनके पिता गोपाल सुब्रह्मण्यम ही उनका पक्ष पेश कर रहे हैं. उन्होंने पिछले साल सुनवाई के दौरान यह तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के बैन को दीवाली से ठीक पहले उठा लिया गया था. जिससे इस फैसले का कोई खास फायदा नहीं हो सका क्योंकि साल के बाकी 10 महीनों में बड़े स्तर पर पटाखे नहीं फोड़े जाते.

इन बच्चों ने अपनी याचिका में कहा गया था, "बच्चों के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं. जिससे उनका श्वसनतंत्र जल्दी प्रभावित होता है और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां जल्दी हो सकती हैं. ऐसी बीमारियों में अस्थमा, खांसी, ब्रोंकाइटिस और नर्वस सिस्टम खराब होने और यहां तक कि मूक-बधिर तक होने की संभावना होती है."।