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दुबेछपरा बलिया : वर्तमान संदर्भ में गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता नामक संगोष्ठी सम्पन्न

वर्तमान संदर्भ में गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता नमम संगोष्ठी सम्पन्न
डॉ सुनील कुमार ओझा की रिपोर्ट
दुबेछपरा बलिया 2 अक्टूबर 2018 ।।






आज 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी एवं पूर्व प्रधान मंत्री स्व० लाल बहादुर शास्त्री जी की जयन्ती पर झण्डोतोलन कार्यक्रम सम्पन्न होने के उपरान्त गांधी जी एवं शास्त्री जी की प्रतिमा माल्यार्पण  पुष्पार्जन किया गया तत्पश्चात महाविद्यालय के संस्थापक एवं स्वतंत्रता सेनानी पं० अमरनाथ मिश्र जी की प्रतिमा पर भी माल्यार्पण किया गया।
    उक्त कार्यक्रम सम्पन्न होने के पश्चात महाविद्यालय में एक गोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसका विषय था "वर्तमान संदर्भ में गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता"। इस गोष्ठी के मुख्य अतिथि "जिला विधिक सेवा प्राधिकरण" हरदोई के सचिव श्री वायुनन्दन मिश्र जी रहे, जो इससे पूर्व कानपूर में सी० जे० एम० के पद पर कार्यरत थे।
     मुख्य अतिथि के रूप में गोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री वायुनन्दन मिश्र ने कहा कि गांधी जी के जो भी विचार थे , वे सत्य पर आधारित हैं। सत्य एवं अहिंसा उनके दर्शन के मूल मंत्र हैं। गांधी जी के विचार उस समय भी प्रासंगिक थे और आज तो उनके विचारों की प्रासंगिकता और बढ़ गयी है। यदि आज हम गांधी जी के विचारों पर अमल नहीं किए तो वह दिन दूर नहीं , जब हमें प्रत्येक क्षेत्र में ही कष्ट, असमानता एवं असहजता का सामना करना पड़ेगा।
      राजनीति शास्त्र के असिस्टेण्ट प्रोफेसर संजय कुमार मिश्र ने कहा कि गांधी जी का सम्पूर्ण जीवन ही दर्शन है । वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, समाजसेवी, शिक्षाविद् थे और सबसे जुड़े विषयों पर जो उनके विचार थे , वही उनके दर्शन थे। हिन्दी विभागाध्यक्ष विवेक कुमार मिश्र ने कहा कि गांधी जी के विचारों को यदि प्रत्येक क्षेत्र में स्वतंत्रता के बाद से ही अपनाया गया होता तो आज अपने देश की यह दुर्दशा नहीं होती। बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में हम आत्मनिर्भर होकर समरसता पूर्वक सामाजिक सद्भाव के रूप में जीवन व्यतीत करते। डा० सनील कुमार ओझा ने कहा कि यदि गांधी जी के आर्थिक विचारों को ध्यान में रखकर विकास नीतियों एवं आर्थिक नीतियों को लागू किया गया होता तो आज भारत आर्थिक रूपसे सशक्त होता एवं देश में बेरोजगारी नहीं होती।
       अपने अध्यक्षीय  उद्बोधन में पूर्व प्राचार्य डा० गणेशकुमार पाठक ने कहा कि गांधी जी ने जिस रूपमें जिया और जो किया वही उनके दार्शनिक विचार हो गये। अगर समवेत रूप में देखा जाए तो गांधीजी के तीन मुख्य दार्शनिक विचार हैं--
  1. आध्यात्मिक एवं नैतिक विचार
2. सामाजिक विचार
3. आर्थिक विचार
       डा० पाठक ने बताया कि आज हमारा आध्यात्मिक एवं नैतिक पतन होता जा रहा है। यदि देश को पतन से बचाना है तो हमें उनके आध्यात्मिक एवं नैतिक विचारों को अपनाना होगा। इसी तरह समाज में अनेक तरह की विकृतियां पनपती जा रही हैं और समाज का पतध होता जा रहा है, जिससे सामाजिक अव्यवस्था उत्पन्न हो रही है ।इससे बचने हेतु हमें गांधी जी के सामाजिक विचारों को अपनाना होगा। आज स्वतंत्रता के 70 पूरे हो जाने के पश्चा भी अपना देश आर्थिक रूप से सशक्त नहीं हो पाया है। उनके अनुसार यदि हिन्दुस्तान को आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनाना है और देश से बेरोजगारी भगानी है तो लघु एवं कुटीर उद्योग को बढ़ाना होगा।
     अंत में महाविद्यालय के प्राचार्य डा० गौरीशंकर द्विवेदी ने सभी वक्ताओं की समीक्षा करते हुए मुख्य अतिथि एवं सभी आगंतुकों के प्रति आभार प्रकट किया। उक्त अवसर पर संतोष कुमार मिश्र, ओम प्रकाश सिंह, अक्षयलाल ठाकुर, परमानन्द पाण्डेय सहित महाविद्यालय के सभी प्राध्यापक, कर्मचारी तथा छात्र एवं छात्राएं उपस्थित रहे।