मैं अगर स्त्री होता तो पुरुषों के लिए श्रृंगार नहीं करता - महात्मा गांधी
गांधी ने कहा था- मैं अगर स्त्री होता तो पुरुषों के लिए श्रृंगार नहीं करता
2 अक्टूबर 2018 ।।
(प्रतिमा शर्मा)
महात्मा गांधी के जीवन के कई पहलू रहे हैं. लेकिन बात जब महिलाओं के साथ गांधी के संबंधों की होती है तो लोगों की सोच का दायरा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' तक ही सीमित रह जाता है. स्त्री के प्रति गांधी के जो विचार उस वक्त थे, उसे मौजूदा वक्त के हिसाब से 'फेमिनिस्ट' कहा जा सकता है ।
महात्मा गांधी के जीवन के कई पहलू रहे हैं. लेकिन बात जब महिलाओं के साथ गांधी के संबंधों की होती है तो लोगों की सोच का दायरा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' तक ही सीमित रह जाता है. स्त्री के प्रति गांधी के जो विचार उस वक्त थे, उसे मौजूदा वक्त के हिसाब से 'फेमिनिस्ट' कहा जा सकता है ।
फेमिनिज्म के आज जो भी पैमाने हैं, गांधी उन सब पर खरे उतरते हैं. स्त्री और पुरुष की बराबरी के जो मायने गांधी ने तब पेश किया था, वह आज भी मौजूं है. यंग इंडिया के 15 सितंबर 1921 के संस्करण के पेज नंबर 292 में महात्मा गांधी ने समाज में स्त्रियों की स्थिति और भूमिका पर अपने विचार रखे थे ।
गांधी ने तब लिखा था, 'आदमी जितनी बुराइयों के लिए ज़िम्मेदार है. उनमें सबसे घटिया नारी जाति का दुरुपयोग है. वह अबला नहीं, नारी है.' उन्होंने आगे लिखा था, 'स्त्री को चाहिए कि वह खुद को पुरुष के भोग की वस्तु मानना बंद
कर दे. इसका इलाज पुरुषों के बजाय स्त्री के हाथ में ज्यादा
है. उसे पुरुष की खातिर- जिसमें पति भी शामिल है, सजने
से इनकार कर देना चाहिए. तभी वह पुरुष के साथ बराबर
की साझीदार बनेगी.'।
विजनरी गांधी के विचार
यंग इंडिया के 21 जुलाई 1921 के संस्करण में पेज नंबर
229 में गांधी ने यह भी लिखा था, 'मैं इसकी कल्पना नहीं
कर सकता कि सीता ने राम को अपने रूप-सौंदर्य से
रिझाने पर एक पल भी नष्ट किया होगा.' गांधी की नजर
में स्त्री की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता
है कि उन्होंने तब लिखा था, 'यदि मैंने स्त्री के रूप में जन्म
लिया होता तो पुरुषों के इस दावे के खिलाफ विरोध कर
देता कि स्त्री उसका मन बहलाने के लिए ही पैदा हुई है.'।
कोई भी स्त्री पुरुषों को रिझाने या खुश करने के लिए न
श्रृंगार करे, न खुद को बदले. उनका कहना था कि श्रृंगार
करना छोड़ो. इत्र का इस्तेमाल करना छोड़ो. असली खुशबू
वही है जो तुम्हारे दिल से आती है. यह खुशबू पुरुष ही नहीं बल्कि पूरी मानवता को मोहित करने वाली है ।
आज फेमिनिज्म के नाम पर कुछ ऐसी ही बातें की जाती हैं.
इस विचारधारा में महिलाओं को अपनी बात रखने, अपने हिसाब से चीजों को समझने और बोलने के अधिकार की
बात होती है. आज भी महिलाओं की स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं आया है. गांधी की तब की बातें आज भी
उतनी ही काम की लगती है ।
हरिजन के 25 जनवरी 1936 के पेज नंबर 396 पर गांधी
की कही बात से यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि यह बात उन्होंने आजादी से पहले कही थी. उन्होंने तब लिखा था कि पुरुष ने स्त्री को अपनी कठपुतली समझ लिया है. स्त्री
को भी इसकी आदत पड़ गई है. धीरे-धीरे स्त्री को अपनी
इसकी भूमिका में मजा आने लगा है क्योंकि पतन के गर्त में गिरने वाला व्यक्ति किसी दूसरे को भी अपने साथ खींच
लेता है तो गिरने की क्रिया और सरल लगने लगती है ।
जरूरी है सीखना 'न' कहने की कला
अभिताभ बच्चन की फिल्म 'पिंक' में जब यह समझाया गया कि 'NO का मतलब NO' होता है तो कई लोगों को यह बात
नई लगी । लेकिन गांधी को जानने के बाद पता चलता है कि उन्होंने यह बात वर्षों पहले कह दी थी ।
हरिजन के 2 मई 1936 के संस्करण में पेज नंबर 93 पर
गांधी ने बड़े ही साफ लब्जों में कहा था कि मेरा दृढ मत है
कि इस देश की सही शिक्षा यही होगी कि स्त्री को अपने पति
से भी 'न' कहने की कला सिखाई जाए. उसे यह बताया जाए कि अपने पति की कठपुतली या उसके हाथों की गुड़िया
बनकर रहना उसके कर्तव्य का अंग नहीं है. उसके अपने अधिकार हैं और अपने कर्तव्य हैं ।
सुप्रीम कोर्ट ने अब जाकर 158 साल पुराने सेक्शन 497
को खत्म करके स्त्री और पुरुष को बराबरी का हक दिया है. लेकिन गांधी इस बात के पैरोकार उस वक्त रहे हैं जब कोई
इस बारे में सोचने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था. कहना
ना होगा कि विजनरी गांधी के अलावा शायद ही किसी ने भारत को इतने बेहतर ढंग से समझा होगा ।
मैं अगर स्त्री होता तो पुरुषों के लिए श्रृंगार नहीं करता - महात्मा गांधी
Reviewed by बलिया एक्सप्रेस
on
October 02, 2018
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