सावधान! यदि वन्य जीव का होगा विनाश, तो मानव का भी होगा विनाश- डा०गणेश
1--7 अक्टूबर, वन्य जीव संरक्षण सप्ताह पर विशेष
सावधान! यदि वन्य जीव का होगा विनाश, तो मानव का भी होगा विनाश- डा०गणेश
बलिया एक्सप्रेस के उपसंपादक डॉ सुनील कुमार ओझा द्वारा की गयी विशेष भेंट वार्ता
बलिया 6 अक्टूबर 2018 ।।
वन्य जीव संरक्षण सप्ताह के विशेष अवसर पर
पर्यावरणविद् डा० गणेशकुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति एवं विकास का इतिहास लगभग 3.7 अरब वर्ष पुराना है। तब से लेकर अब तक निरन्तर बदलती हुई पर्यावरणीय दशाओं की आवश्यकताओं के अनुसार अनेक जीव - जन्तुओं का विनाश होता रहा है और अनेक नये- नये जीव उत्पन्न भी होते रहे हैं।किन्तु जैसे - जैसे हमारा विकास होता गया , अपनी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति हेतु हमने वनों का विनाश करना प्रारम्भ किया और इसी के साथ प्रारम्भ हुआ वन्य जीवों का विनाश। आज वनस्पतिओं में से प्रत्येक आठ में से एक प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। पूरे विश्व में लगभग 2 लाख 40 हजार किस्म के पौधे हैं, जबकि 10 लाख 50 हजार किस्म के प्रजातियों के प्राणी हैं। इंटरनेशनल यूनियन फार कन्जरवेशन की एक आख्या के अनुसार विश्व में प्राप्त जीव जंतुओं की 476677 विशेष प्रजातियों में से 15890 प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। आई यू सी एन की रेड चेतावनी सूची के अनुसार स्तनधारियों, उभयचरों एवं पक्षियां की क्रमशः 21प्रतिशत, 30 प्रतिशत एवं 12 प्रतिशत प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं।
एक अध्ययन के अनुसार वनस्पतिओं की 70 प्रतिशत प्रजातियों के साथ - साथ ताजा पानी में रहने वालेसरुसृपों की 37 प्रतिशत प्रजातियाँ एवं 1147 प्रकार की मछलियों पर विलुप्ति का खतरा बना हुआ है। एक अन्य अध्ययन के अनुसार यदि वनस्पतिओं एवं जीव - जंतुओं के विनाश की यही गति बरकरार रही तो सन् 2050 तक एक तिहाई से अधिक जैव विविधता सदैव के लिए समाप्त हो जायेगी।
वैज्ञानिकों द्वारा किए गये अध्ययन के अनुसार अपने देश में 724 जीव - जंतु विलुप्त हो चुके हैं एवं 22530 विलुप्त होने के कगार पर है। विलुप्त हो चुकी प्रजातियों में पेड़- पौधों, मछलियों, उभयचर, सरीसृप, बिना रीढ़ वाले जन्तु, पक्षी एवं स्तनधारी की संख्या क्रमशः 383, 23, 02, 21, 98, 113एवं 83 है जबकि विलुप्त होने के कगार पर इनकी संख्या क्रमशः 19079, 343, 50, 170, 1355, 1037 एवं497 है।भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण विभाग एवं भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग द्वारा किए गये सर्वेक्षण के अनुसार भारत में कुल 49000 वनस्पति प्रजातियाँ एवं 89000 प्राणी प्रजातियां हैं।जिनमें से 450 प्राणी प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार पर माना गया है।
यदि देखा जाए तो सामाजिक , आर्थिक एवं वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर मानव ने प्रक.ति का इस कदर दोहन एवं शोषण किया है कि पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी असंतुलन की स्थिति पैदा हो गयी है। अन्धाधुन्ध वन विनाश एवं अनियंत्रित शिकार के चलते इस शताब्दी में वन्य जीवो का विनाश तीव्र गति से हुआ है। अगर वन्य प्राणियों के विनाश को नहीं रोका गया तो निश्चित है कि वन्यजीवों के विनाश के साथ ही साथ मानव जाति का भी विनाश अवश्यंभावी है। कारण कि प्रकृति के नियमों के अनुसार सभी जीवधारी एक दूसरे कर निर्भर हैं।
सावधान! यदि वन्य जीव का होगा विनाश, तो मानव का भी होगा विनाश- डा०गणेश
बलिया एक्सप्रेस के उपसंपादक डॉ सुनील कुमार ओझा द्वारा की गयी विशेष भेंट वार्ता
बलिया 6 अक्टूबर 2018 ।।
वन्य जीव संरक्षण सप्ताह के विशेष अवसर पर
पर्यावरणविद् डा० गणेशकुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति एवं विकास का इतिहास लगभग 3.7 अरब वर्ष पुराना है। तब से लेकर अब तक निरन्तर बदलती हुई पर्यावरणीय दशाओं की आवश्यकताओं के अनुसार अनेक जीव - जन्तुओं का विनाश होता रहा है और अनेक नये- नये जीव उत्पन्न भी होते रहे हैं।किन्तु जैसे - जैसे हमारा विकास होता गया , अपनी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति हेतु हमने वनों का विनाश करना प्रारम्भ किया और इसी के साथ प्रारम्भ हुआ वन्य जीवों का विनाश। आज वनस्पतिओं में से प्रत्येक आठ में से एक प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। पूरे विश्व में लगभग 2 लाख 40 हजार किस्म के पौधे हैं, जबकि 10 लाख 50 हजार किस्म के प्रजातियों के प्राणी हैं। इंटरनेशनल यूनियन फार कन्जरवेशन की एक आख्या के अनुसार विश्व में प्राप्त जीव जंतुओं की 476677 विशेष प्रजातियों में से 15890 प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। आई यू सी एन की रेड चेतावनी सूची के अनुसार स्तनधारियों, उभयचरों एवं पक्षियां की क्रमशः 21प्रतिशत, 30 प्रतिशत एवं 12 प्रतिशत प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं।
एक अध्ययन के अनुसार वनस्पतिओं की 70 प्रतिशत प्रजातियों के साथ - साथ ताजा पानी में रहने वालेसरुसृपों की 37 प्रतिशत प्रजातियाँ एवं 1147 प्रकार की मछलियों पर विलुप्ति का खतरा बना हुआ है। एक अन्य अध्ययन के अनुसार यदि वनस्पतिओं एवं जीव - जंतुओं के विनाश की यही गति बरकरार रही तो सन् 2050 तक एक तिहाई से अधिक जैव विविधता सदैव के लिए समाप्त हो जायेगी।
वैज्ञानिकों द्वारा किए गये अध्ययन के अनुसार अपने देश में 724 जीव - जंतु विलुप्त हो चुके हैं एवं 22530 विलुप्त होने के कगार पर है। विलुप्त हो चुकी प्रजातियों में पेड़- पौधों, मछलियों, उभयचर, सरीसृप, बिना रीढ़ वाले जन्तु, पक्षी एवं स्तनधारी की संख्या क्रमशः 383, 23, 02, 21, 98, 113एवं 83 है जबकि विलुप्त होने के कगार पर इनकी संख्या क्रमशः 19079, 343, 50, 170, 1355, 1037 एवं497 है।भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण विभाग एवं भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग द्वारा किए गये सर्वेक्षण के अनुसार भारत में कुल 49000 वनस्पति प्रजातियाँ एवं 89000 प्राणी प्रजातियां हैं।जिनमें से 450 प्राणी प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार पर माना गया है।
यदि देखा जाए तो सामाजिक , आर्थिक एवं वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर मानव ने प्रक.ति का इस कदर दोहन एवं शोषण किया है कि पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी असंतुलन की स्थिति पैदा हो गयी है। अन्धाधुन्ध वन विनाश एवं अनियंत्रित शिकार के चलते इस शताब्दी में वन्य जीवो का विनाश तीव्र गति से हुआ है। अगर वन्य प्राणियों के विनाश को नहीं रोका गया तो निश्चित है कि वन्यजीवों के विनाश के साथ ही साथ मानव जाति का भी विनाश अवश्यंभावी है। कारण कि प्रकृति के नियमों के अनुसार सभी जीवधारी एक दूसरे कर निर्भर हैं।