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सलेमपुर लोक सभा सीट : बहुत कठिन है डगर संसद की

 सलेमपुर लोक सभा सीट : बहुत कठिन है डगर संसद की
मधुसूदन सिंह /संतोष शर्मा

बलिया 22 मार्च 2019 ।।
2019 के लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है.सभी दल अपने आप को मजबूत स्थिति मे लाने के लिए और चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. देश की एक एक  लोकसभा सीटों पर किसको उम्मीदवार घोषित किया जाए, इसको लेकर के पर्याप्त माथापच्ची देश की राजधानी दिल्ली या पार्टियों के मुख्यालयो में हो रही है. जहां एक तरफ भाजपा नरेंद्र मोदी की अगुवाई में पुनः सरकार बनाने की हुंकार भर रही है, वहीं कांग्रेस भी इस बार राहुल गांधी के नेतृत्व में लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद में है. देवरिया और बलिया के कुछ हिस्सों को मिलाकर बने सलेमपुर लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा के लिए चुनौतियां कम नहीं है । सबसे पहली चुनौती भाजपा की तो यह है के यहां गठबंधन के खिलाफ़ मैदान में किस को प्रत्याशी के रूप में उतारा जाए. आपको ज्ञात हो कि सलेमपुर लोकसभा से वर्तमान में भाजपा के रविंद्र कुशवाहा सांसद है. लेकिन कई दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल खबर की मानें तो इस बार सांसद महोदय का टिकट कट सकता है. सलेमपुर लोकसभा सीट कुशवाहा बाहुल्य मानी जाती है, और शायद यही कारण रहा कि सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र  के लिए गठबंधन ने इस बार प्रत्याशी के रूप में आर एस कुशवाहा को मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने अभी तक इस सीट पर अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान का कहना है कि भाजपा प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही हम अपने प्रत्याशी के नाम का ऐलान करेंगे।
 एक नजर सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र के इतिहास पर
इसका गठन देवरिया और बलिया जिले के कुछ हिस्सों को मिलाकर किया गया है। इस लोकसभा में बलिया जिला के तीन विधानसभा क्षेत्र बांसडीह, बेल्थरा रोड,सिकंदरपुर और देवरिया जिला का सलेमपुर तथा भाटपाररानी विधानसभा क्षेत्र आता है। सलेमपुर का इतिहास बहुत पुराना है, आजादी से पहले सलेमपुर भारत की सबसे बड़ी तहसील हुआ करती थी। आजादी के बाद इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी विश्वनाथ राय ने 1952 में जीत दर्ज किया। विश्वनाथ राय लगातार दो बार इस सीट से सांसद चुने गए । उन्होंने 1957 में हुए आम चुनाव में भी जीत दर्ज की। इनके बाद कांग्रेस के ही विश्वनाथ पांडेय  लगातार दो बार 1967 और 1971 में इस क्षेत्र से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1971 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस के ही तारकेश्वर पांडेय ने इस क्षेत्र से जीत दर्ज किया। आजादी के बाद लगातार 1977 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। 1977 में हुए आम चुनाव में पहली बार भारतीय लोक दल के राम नरेश कुशवाहा ने इस सीट पर कांग्रेस को मात दिया, और इस क्षेत्र से सांसद चुनकर संसद में गए. लेकिन पुनः 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस  के राम नगीना मिश्रा ने यहां जीत दर्ज किया और वह लगातार दो बार क्षेत्र से सांसद चुने गए। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार हरि केवल प्रसाद ने यहां जीत दर्ज की। 1996 में पहली बार समाजवादी पार्टी के हरिवंश सहाय ने लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल की। इनके बाद क्रमशः
1998= हरि केवल प्रसाद (समता पार्टी)
1999=बब्बन राजभर (बहुजन समाज पार्टी)
2004=हरि केवल प्रसाद (समाजवादी पार्टी)
2009=रमाशंकर राजभर (बहुजन समाज पार्टी)
2014=रविंद्र कुशवाहा (भारतीय जनता पार्टी)
इस लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुनकर संसद पहुंचे।

2019 ने कौन बनेगा सलेमपुर का सुल्तान

इस बार इस सीट पर बेहद कड़ा मुकाबला होने जा रहा है। जहां एक तरफ सपा बसपा गठबंधन ने आर एस कुशवाहा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा की ओर से अब तक किसी भी नाम की अधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। आपको बता दें कि 2014 में हुए आम चुनावों मे भाजपा को 45.83% बहुजन समाज पार्टी को 18.68% और समाजवादी पार्टी को 18.66% वोट मिले थे. अगर इस समीकरण पर ध्यान दिया जाए 2019 का आम चुनाव सपा बसपा गठबंधन के लिए सलेमपुर की सीट पर मुश्किलें आ सकती हैं. पिछले आम चुनाव में सपा और बसपा के कुल मतो को मिलाने पर भी भाजपा प्रत्याशी को मिले मतों से कम होता है। आपको बता दें कि 2014 में पहली बार भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल किया था और उस जीत का एक बड़ा कारण मोदी लहर मानी जाती है । अब देखना यह होगा क्या भाजपा अपने पुराने प्रदर्शन को फिर दोहरा पाएगी या सपा बसपा गठबंधन इस सीट पर अपने उम्मीदवार  को जीत दिलाने में सफल हो जाएंगे।
क्या है पेंच
इस बार भाजपा के सामने कई पेंच खड़े हो गये है । पिछले चुनाव में तो मोदी लहर और सपा के बुजुर्ग प्रत्याशी (जो सभा मे ही अचेत हो गये थे ) को सेहत को लेकर प्रचार के सहारे भाजपा उम्मीदवार रविन्द्र कुशवाहा एकतरफा जीत हासिल किये थे ,इस जीत में इनको अपने पिता पूर्व सांसद हरिकेवल प्रसाद की मौत के कारण और सपा द्वारा टिकट न देने के कारण उपजी सहानुभूति का भी कम योगदान नही था। बता दे कि हरिकेवल प्रसाद का मुलायम सिंह यादव के साथ बहुत घनिष्ठ रिश्ता था , रविन्द्र कुशवाहा को उम्मीद थी कि पिता की मृत्यु के बाद सपा उनको ही टिकट देगी । लेकिन जब टिकट सपा ने नही दिया तो तुरंत भाजपा में शामिल हो गये और भजपा उम्मीदवार के रूप में खड़े होकर सपा के हरिवंश सहाय को हराकर सांसद बन गये । पिछले चुनाव में विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ था , जबकि इस बार फेविकोल के जोड़ की तरह एक हुआ है ।वर्तमान परिवेश में इस सीट कुशवाहा बाहुल्य वाली मानी जाती है । बसपा सपा गठबंधन ने इसी को ध्यान में रखकर बसपा प्रत्याशी के रूप में आरएस कुशवाहा को उतार दिया है । श्री कुशवाहा , बसपा के प्रदेश अध्यक्ष और स्टार प्रचारक है । इनकी उपस्थिति से गठबंधन ताकतवर दिख रहा है । वही सिटिंग सांसद होते हुए भी रविन्द्र कुशवाहा की दावेदारी पर अगर संशय खड़ा हो रहा है तो वो सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर द्वारा इस सीट पर की गयी दावेदारी से है । श्री राजभर इस सीट से अपने प्रदेश अध्यक्ष आनन्द मिश्र को लड़ाने की जुगत में है । वही भाजपा से ही क्षेत्रीय मंत्री देवेन्द्र यादव , पूर्व विधायक भगवान पाठक , अच्छेलाल यादव भी दावेदारी कर रहे है । बसपा द्वारा कुशवाहा प्रत्याशी लड़ा देने के बाद भाजपा और कांग्रेस के लिये प्रत्याशियों का चयन कठिन कार्य हो गया है । जहां श्री राजभर इस सीट से ब्राह्मण प्रत्याशी उतारकर अपनी पार्टी सामान्य वर्ग में भी पैठ बनाने की फिराक में है और इस सीट पर लगभग दो दशक बाद ही सही ब्राह्मण को संसद में भेजने की जुगत में है ,तो वही भाजपा इस सीट को हर हाल में गठबंधन के पास जाने से रोकने के लिये प्रयासरत है । अब देखना है कि इस सीट से सपा बसपा गठबंधन के प्रत्याशी आरएस कुशवाहा का मुकाबला भाजपा प्रत्याशी से या सुभासपा प्रत्याशी से होता है ।