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लखनऊ : चुनावो में मीडिया घरानों के भ्रष्टाचार पर कब लगायेगा रोक चुनाव आयोग ? प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया के घराने करते है अंडर टेबल कांटैक्ट

चुनावो में मीडिया घरानों के भ्रष्टाचार पर कब लगायेगा रोक चुनाव आयोग ? प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया के घराने करते है अंडर टेबल कांटैक्ट 
मधुसूदन सिंह

लखनऊ 24 मार्च 2019 ।। एक तरह जहां चुनाव आयोग लोक सभा से लेकर पंचायत और नगर निकायों के चुनावों तक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिये लगातार प्रयत्न करते हुए काफी हद तक कामयाब भी हुआ है । वही लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाली मीडिया इस लोकतंत्र के महापर्व को अपनी नाजायज कमाई का जरिया बना चुकी है । जी हां , यह सौ फीसदी सच है । आज मैं बड़े मीडिया घरानों की चुनावो के दौरान किये जाने वाले तरीको को उजागर करने जा रहा हूँ । जो मैं बताने जा रहा हूँ , इस रोग से कोई भी मीडिया घराना शायद ही बचा हो (नगण्य प्रतिशत को छोड़कर) । आइये पहले बताता हूँ कि प्रिंट मीडिया में चुनाव के दौरान कैसे होता है भ्रष्टाचार --
 पहले चुनावो में प्रिंट मीडिया के कमाई का जरिया विज्ञापन हुआ करता था , बंधुआ मजदूर की तरह कार्य करने वाले स्थानीय पत्रकारों को भी विज्ञापन के जरिये कमीशन के रूप में कमाई हो जाया करती थी जो अब बन्द हो चुकी है । कारण है अंडर टेबल कॉन्टैक्ट जो सिर्फ मुख्यालय से आये हुए मीडिया घराने के उच्च पदस्थ अधिकारी ही कर सकते है और भुगतान ले सकते है । इस कारण स्थानीय पत्रकारों को चुनावी विज्ञापनों में कमीशन भी नही मिलना है ।
कैसे होती है डील
 चुनावी दौर में मीडिया हाउसेज प्रत्याशियों को खबर छापने के लिये अपना पैकेज देती है । इसमें प्रत्याशी के प्रचार के दौरान की गई सभाओ रैलियों और बयानों को कवर करने के साथ डेढ़ से दो पेज विज्ञापन निकलना शामिल होता है । इस दो पेज विज्ञापन का बिल मात्र 15 से 25 हजार रुपए के बीच का ही प्रत्याशी को दिया जाता है जबकि नगर निकाय के चुनाव में प्रत्याशियों से 1 लाख से 2 लाख, विधान सभा के प्रत्याशियों से 6 लाख से 15 लाख और लोक सभा के प्रत्याशियों से 15 लाख से 40 लाख तक ( बाजार में सर्कुलेशन के आधार पर रेट तय होता है)  लिये जाते है । यह सारा भुगतान नगद में होता है ।
कहां है गड़बड़झाला
सारा खेल विज्ञापन की दर को लेकर होता है । चुनावी विज्ञापनों की दर को अपने आप को सबसे ज्यादे सर्कुलेशन कहने वाले अखबार भी चुनाव के दौरान अपने अंक को लोकल कहकर चुनाव आयोग के पास अपनी लोकल दर भेज देते है जबकि अन्य समय मे ये इस दर से कई गुना अत्यधिक रेट चार्ज करते है ।
कैसे लगेगा इस पर अंकुश
चूंकि ये लोग आधिकारिक रूप से यह कहते है कि यहां आने वाला मेरे अखबार का अंक लोकल है तो इनके द्वारा चुनाव से पूर्व अत्यधिक दर से छपे सरकारी विज्ञापनों के भुगतान को भी लोकल मानकर इनके द्वारा लोकल रेट से अधिक जो भी भुगतान लिया गया है उसकी वसूली भू राजस्व की तरह से करने का आदेश कर दिया जाय । जब तक ऐसा नही होगा और चुनावी विज्ञापनों के दर की विधिवत जांच पड़ताल नही होगी भ्रष्टाचार नही रुकेगा ।

इलेक्ट्रानिक मीडिया में कैसे हो रही है खेल
  प्रिंट की तरह ही इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी यह खेल खूब फल फूल रहा है । इसमें यह विज्ञापनों के साथ साथ डिबेट और लाइव डिबेट के माध्यम से हो रहा है और जनता को असल मुद्दों से ध्यान हटाकर अपने समझौते वाले मुद्दों को प्रस्तुत कर जनता को गुमराह किया जाता है । उदाहरण के रूप में बता दु कि चैनल वाले विधान सभा चुनाव के दौरान कौन बनेगा मुख्यमंत्री और लोकसभा चुनाव के दौरान कौन बनेगा प्रधान मंत्री , नामक प्रोग्राम जनता के बीच मे आयोजित करने लगते है और अपने पसंदीदा व्यक्तित्व को इतने सलीके से , उसकी अच्छाइयों को इतनी बार परोसते है कि आम जन मानस लोकल समस्याओ और चुनाव में खड़े लोकल प्रत्याशी की मेरिट और डी मेरिट को जाने बगैर मत दे देता है । चुनाव बाद जब वह नेता उसकी समस्याओ के प्रति उदासीन होता है तो जनता मन मारकर रह जाती है और मीडिया को कोसने के अलावा कुछ नही कर पाती है । मीडिया घरानों पर कार्यवाई न होने की एक बड़ी वजह इनके प्रमोटर्स की किसी न किसी राजनैतिक दलों में उच्ची पैठ भी है ।
चुनाव आयोग को करना क्या चाहिये
चुनाव निष्पक्ष और योग्य नेता का हो , इसके लिये जनता के बीच ज्यादे से ज्यादे स्थानीय उम्मीदवार की चर्चा हो , इसके लिये चैनलों के प्रायोजित कार्यक्रमो कौन बनेगा मुख्यमंत्री या कौन बनेगा प्रधानमंत्री जैसे कार्यक्रमो के प्रसारण पर रोक लगा देनी चाहिये क्योकि हमारे संविधान में कही भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का चुनाव जनता के द्वारा होने की बात नही लिखा गया है । हमारे देश मे विधायक चुने जाते है जो बाद में मुख्यमंत्री चुनते है । इसी तरह सांसद का चुनाव होता है जो बाद में  प्रधानमंत्री चुनते है ।