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"जोर का झटका धीरे से " देने की रणनीति : पश्चिम यूपी में सपा-बसपा महागठबंधन के 'साइलेंट चुनाव' के पीछे की रणनीति?
"जोर का झटका धीरे से " देने की रणनीति : पश्चिम यूपी में सपा-बसपा महागठबंधन के 'साइलेंट चुनाव' के पीछे की रणनीति?
2 अप्रैल 2019 ।।
(अमित तिवारी)
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण की आठ सीटों के लिए 11 अप्रैल को मतदान होना है, जिसके लिए चुनाव प्रचार का शोर 9 अप्रैल की शाम को थम जाएगा. बीजेपी ने अपने गढ़ को बचाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी, अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार में उतार दिया है, लेकिन महागठबंधन खासकर सपा-बसपा के दिग्गज अभी भी चुनाव प्रचार से दूर हैं. गठबंधन की तरफ से मायावती और अखिलेश की जो संयुक्त रैली प्रस्तावित है, वह भी चुनाव प्रचार के थमने से दो दिन पहले देवबंद में होनी है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर गठबंधन के नेता शांत क्यों हैं?
जानकारों की मानें तो महागठबंधन वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए साइलेंट चुनाव लड़ रहा है. दरअसल, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों का असर पश्चिम यूपी में देखने को मिला था. पिछले लोकसभा चुनाव में वोटों का जबरदस्त ध्रुवीकरण का फायदा सीधे-सीधे बीजेपी को हुआ था और उसके प्रत्याशी बड़े अंतर से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. लिहाजा, इस बार गठबंधन की पूरी कोशिश है कि धार्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण न हो.
जानकारों की मानें तो महागठबंधन वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए साइलेंट चुनाव लड़ रहा है. दरअसल, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों का असर पश्चिम यूपी में देखने को मिला था. पिछले लोकसभा चुनाव में वोटों का जबरदस्त ध्रुवीकरण का फायदा सीधे-सीधे बीजेपी को हुआ था और उसके प्रत्याशी बड़े अंतर से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. लिहाजा, इस बार गठबंधन की पूरी कोशिश है कि धार्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण न हो.
धार्मिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने की कोशिश
हालांकि, जानकार यह भी मानते हैं कि सपा-बसपा-रालोद के बीच गठबंधन होने के बाद 2019 में 2014 वाली स्थिति की संभावना नहीं हैं. लेकिन, गठबंधन बीजेपी को ऐसा कोई भी मौका नहीं देना चाहता जिससे उसे धार्मिक व सांप्रदायिक आधार पर विभाजन कर सके. कैराना उपचुनाव में गठबंधन की जीत का फ़ॉर्मूला भी यही था.
मसलन अगर हम बात करें मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट की तो यहां से गठबंधन की तरफ से रालोद अध्यक्ष अजित सिंह मैदान में हैं. वर्ष 2013 में हुए दंगों की शुरुआत भी इसी मुजफ्फरनगर से हुई थी और उसके बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में वोटों का ऐसा ध्रुवीकरण हुआ कि इस सीट पर बीजेपी के संजीव बालियान को 6.53 लाख (करीब 59 फीसदी) मत प्राप्त हुए थे. इस सीट पर इस बार पहले चरण में 11 अप्रैल को चुनाव होना है, लेकिन अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी को छोड़कर गठबंधन का कोई बड़ा नेता अभी तक प्रचार के लिए नहीं पहुंचा है. 7 अप्रैल को संयुक्त रैली से पहले अखिलेश और मायावती का कोई दौरा नहीं है.
अगर बीजेपी की बात करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 24 मार्च को शहरंपुर में जनसभा की तो प्रधानमंत्री ने 28 मार्च को मेरठ की धरती से चुनावी बिगुल फूंका. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी 31 मार्च को नगीना और बागपत में जनसभा को संबोधित कर चुके हैं.
महागठबंधन ऐसे कर रहा प्रचार
साइलेंट चुनाव प्रचार के मुद्दे पर सपा प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी कहते हैं, "उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की 11 संयुक्त रैलियां होंगी, जिसकी शुरुआत 7 अप्रैल से देवबंद में होगी. अखिलेश यादव, मायावती और अजित सिंह इन रैलियों को संबोधित करेंगे. इसके बाद गठबंधन के तीनों राष्ट्रीय नेता अलग-अलग भी अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार करेंगे. वर्ष 2019 में हमारा चुनाव प्रचार जमीनी होगा और हमारा फोकस बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं पर अधिक होगा. महागठबंधन छोटी-छोटी मीटिंग, नुक्कड़ मीटिंग, गांव में चौपाल और घर घर जनसंपर्क पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगा. महागठबंधन की कोशिश होगी कि अधिक से अधिक लोगों से मिलकर अपना एजेंडा और सोच उन तक पहुंचाई जाए."
सपा का आरोप बीजेपी अनाप-शनाप करती है खर्च
अब्दुल हफीज ने बीजेपी पर चुनाव में धनबल का आरोप भी लगाया. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी का तरीका रहा है कि वह बड़ी-बड़ी फाइव स्टार रैलियां करती हैं, जहां पर अनाप-शनाप पैसे का प्रयोग होता है. बीजेपी को इलेक्टोरल बांड के माध्यम से 95% फंड मिले हैं. बीजेपी को कॉरपोरेट घरानों की फंडिंग भी है, इसलिए इस इलेक्शन को पैसे के माध्यम से लड़ रही है. हमारे गठबंधन की एक कोशिश होगी कि कम संसाधनों में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक चुनाव प्रचार के माध्यम से पहुंचा जा सके, इसलिए हमारे गठबंधन में सभी पार्टियों के कार्यकर्ता आपस में मीटिंग कर रहे हैं, लोगों से घर-घर जाकर जनसंपर्क कर रहे हैं, छोटी-छोटी चुनावी सभाएं कर रहे हैं. यही तरीका पूरे उत्तर प्रदेश में दोहराया जाएगा, क्योंकि हमारा मानना है कि बड़ी-बड़ी मीटिंग के बजाय फोकस्ड मीटिंग करके मतदाता से सीधा संबंध स्थापित किया जाए.
(साभार न्यूज18)
"जोर का झटका धीरे से " देने की रणनीति : पश्चिम यूपी में सपा-बसपा महागठबंधन के 'साइलेंट चुनाव' के पीछे की रणनीति?
Reviewed by बलिया एक्सप्रेस
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April 02, 2019
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