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गोरखपुर : कौमी एकता की मिशाल बाले मिया की दरगाह, आज रात 12 बजे से शुरू हो रहा है ऐतिहासिक मेला

गोरखपुर : कौमी एकता की मिशाल बाले मिया की दरगाह, आज रात 12 बजे से शुरू हो रहा है ऐतिहासिक मेला
ए कुमार


गोरखपुर 26 मई 2019 ।।गोरखपुर में 26 मई की रात 12 बजे से शुरु हो रहा है पूरे पूर्वांचल का सबसे ऐतिहासिक मेला, जिसमें आनेवालों को यहां गंगा जमुनी तहजीब का उदाहरण मिलता है। यह मेला एक हजार सालों से सैय्यद सालार महसूद गाजी के दरगाह पर हर साल उनकी याद मे लगता है। बाले मियां के नाम से मशहूर यह मेला इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि इसमें मुस्लिम समुदाय के साथ हिन्दु समुदाय के लोग भी काफी उम्मीदों के साथ शिरकत करते हैं। यहां पर आनेवाले सभी लोगों की मुराद पूरी करने वाले बाले मियां के दरबार में पूरे एक महीने तक देश के कोने कोने से श्रद्धालुओं की भीड़ बनी रहती है ।

 सन 1035 में स्थापित यह दरगाह है सैय्यद सालार महसूद गाजी उर्फ बाले मियां का, जिनको अल्लाह का दूत माना जाता है। इमाम हनीफा के परिवार के सदस्य माने जानेवाले बाले मियां गोरखपुर के इस इलाके में आकर रहे थे और उन्होने मानव जाति के कल्याण के लिये काफी काम किया, लोगों के हक के लियेलड़ते हुये बाबा ने यहीं पर अपनी शहादत पाई। इनके अनुयायिओं में हिन्दु भी हैं और मुस्लिम भी। दोनो धर्मो के लोग हर साल बाबा बाले मियां की याद में यह मेला मनाते हैं। यहां हर श्रद्धालु अपने तरीके से बालेमियां का आराधना करता है। यहां कहीं आपको दरगाह पर इबादत करते हुये लोग दिखेगें तो कहीं कपूर अगरबत्ती के साथ पूजा करते हुये। कौमी एकता की मिशाल देता है बाले मियां का यह दरगाह ।

बाइट -  मोहम्मद इशलाम हासमी (संस्थापक, बाले मियां दरगाह)





 यहां पर हर साल मई महीने में पूरे एक महीने के लिये बाबा का मेला लगता है जिसमें पूरे देश से लोग आकर अपनी अरदास बाबा के दरबार में लगाते हैं और बाबा बाले मियां उनकी हर फरियाद पूरी करते हैं। लोग इस जगह आकर कनूरी नामक एक रस्म करते हैं, जिसमें बाबा को मुर्गे का मांस चढाया जाता है और लोगों की आस्था है कि शरीर के जिस हिस्से में बीमारी हो अगर उसका चांदी का प्रतिरुप बाबा के दरगाह में चढाया जाय तो वह लाइलाज बीमारी जरुर दूर हो जाती है। धर्म चाहे जो भी हो, पर बाले मियां की दरगाह में जिसने भी अपनी फरियाद की है उसकी हर कामना यहां पर बाबा ने जरूर पूरी की है ।
 यहां पर आनेवाले अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां एक विशेष ध्वज चढाया जाता है। मेले के आयोजन की तारीख ब्राह्मणों के द्वारा पंचाग से तय होती है। यहां के बारे में कहा जाता है कि बाले मियां का विवाह जोहरा नामक महिला से होनेवाला था पर उनको यह शादी मंजूर नहीं थी और ऐन विवाह के दिन इतनी तेजी से आंधी पानी आई कि इनका विवाह नही हो सका। उस दिन से हर साल जब भी इनकी शादी का कार्यक्रम आयोजित कराया जाता है आंधी पानी जरुर आता है। वही इस मौके पर प्रशासन की तरफ से पूरी तैयारिया मुकम्मल कर ली है, बाहर से फोर्सेस भी मंगाई है, लेखपाल और कई थानों की पुलिस चप्पे चप्पे पर नजर बनाये हुए है, और सीसीटीवी कैमरे के जरिये पुरे मेले पर नजर बनाई गई है ताकि कोई भी अप्रिय घटना न घटे |

 पूरे एक महीने तक चलने वाले इस मेले में हर रोज देश के कोने कोने से लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है। सब बाबा के दरगाह पर कतार लगा कर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। दिन हो रात हमेशा यहां पर लोगों का रेला उमड़ता रहता है। सबकी उम्मीदें बाबा सैय्यद सालार महसूद गाजी यानी बाले मियां से जुड़ी हुई होती है। एक ही आंगन मे ईश्वर के दो बेटे एक साथ अपने हिसाब से अपने बाबा की इबादत करते हैं यहां न कोई छोटा होता है न ही बड़ा। धर्म के नाम पर उन्माद फैलाने वालों के लिये बाले मियां की मजार एक सबक है जो सबको एक ही मालिक की सन्तान होने का संदेश देती हैं ।