जातीयता के जकड़न से आजाद होगी सलेमपुर लोकसभा ? कही जातियों की लामबन्दी का सबब तो नही होगी यह सलेमपुर की चुनावी बयार
जातीयता की जकड़न से आजाद होगी सलेमपुर लोकसभा ? कही जातियों की लामबन्दी का सबब तो नही होगी यह सलेमपुर की चुनावी बयार
मधुसूदन सिंह
आम चुनाव 2019 का बिगुल बज चुका हैं। 2014 के लोकसभा 2017 के विधानसभा में जीत के झंडे गाड़ने वाली भाजपा को चुनौती देने के लिए सुबे की दो बड़ी सियासी पार्टियां एक हो गई। सियासी पंडितों की मानें तो दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, ऐसे में राजनीतिक दलों का उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पैनी नजर हैं। बदलते मौसम के साथ हर सीट का चुनावी समीकरण बदल रहा।
लगभग दो दशकों से जातीयता की जकड़न से जकड़ी हुई सलेमपुर की लोकसभा सीट क्या इससे आजाद होगी ? यह यक्ष प्रश्न खड़ा है । क्योकि चुनाव लड़ रहे किसी भी दल ने जातीय समीकरणों के इतर प्रत्याशी देने की हिम्मत नही जुटायी है । चाहे राष्ट्रवाद और विकास के नारों के आधार पर मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा हो या समाजवाद के नाम पर राजनीति करने वाली सपा हो या दलितों की राजनीति करने वाली बसपा ही क्यो न हो । ऐसे में जब उपरोक्त दल क्षेत्र के दलितों, ओबीसी और कुशवाहा समाज के वोट को आधार बनाकर प्रत्याशी तय कर रहे हो तो कांग्रेस कैसे पीछे रह जाती , इसने भी सवर्ण कार्ड का गणित लगाकर ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में उतार कर भाजपा के वोट बैंक में (ब्राह्मणों में ) सेंधमारी तो करने का प्रयाश कर ही दिया है । वही नई नवेली शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी(लोहिया) ने भी कथावाचक महिला ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारकर लड़ाई को चौमुखी बनाने में लगी हुई है ।
एक नजर सलेमपुर के चुनावी समीकरण पर-
आजादी के बाद लगातार 1977 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। उसके बाद भारतीय लोक दल के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की। उसके बाद कभी समता पार्टी कभी समाजवादी पार्टी कभी बहुजन समाज पार्टी के खाते में सीट जाती रही। 2014 के मोदी लहर में यहां पहली बार भाजपा का खाता खुला था।
कौन बनेगा सलेमपुर का सुल्तान-
भाजपा ने वर्तमान सांसद रवींद्र कुशवाहा पर दांव खेला है, वहीं दूसरी ओर गठबंधन ने आरएस कुशवाहा को अपना प्रत्याशी बनाया है ।बता दे कि सलेमपुर को कुशवाहा बहुल सीट माना जाता है, और यहां की राजनीति कुशवाहा समाज के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। सीट के जातीय समीकरण पर नजर डाले तो पता चलता है सबसे ज्यादा कुशवाहा 2.60 लाख, ब्राह्मण 2.25 लाख, दलित 2.05 लाख, क्षत्रिय 2.00 लाख, वैश्य 1.85 लाख हैं। बात पिछले लोकसभा चुनाव की करें तो बीजेपी के प्रत्याशी को यहां कुल 45.88% मत मिले, वहीं दूसरी ओर सपा को 18.60% और बसपा को 18.68% मत मिले थे। पिछले चुनाव में सपा और बसपा को मिले मतों को जोड़ने पर भी भाजपा प्रत्याशी के मत ज्यादा होते हैं, लेकिन सियासी पंडितों की मानें तो इसका एक बड़ा कारण मोदी लहर था। गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने कोर वोट को स्थानांतरण करने का होगा। वही कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशी वाराणसी के पूर्व सांसद, दो बार वाराणसी स्नातक क्षेत्र से विधान परिषद के सदस्य रहे डॉ राजेश मिश्र लड़ाई को अगड़ा बनाम पिछड़ा , सम्प्रदायवाद बनाम धर्मनिरपेक्षता बनाने के प्रयास में दिन रात एक किये हुए है । अगर श्री मिश्र यह करने में कामयाब हो गये तो इस बार परिणाम काफी चौकाने वाला हो सकता है । पूजा पांडेय पहली बार चुनावी समर में उतरी है इसलिये अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है । सलेमपुर में आगामी 19 मई को त्रिकोणीय संघर्ष होने से इनकार नही किया जा सकता है । इस चुनाव में भाजपा , सपा बसपा और कांग्रेस के मध्य वोटों का जातीय आधार पर ध्रुवीकरण होने की संभावना से इनकार नही किया जा सकता है । ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन बनेगा सलेमपुर का सुल्तान ?