गोरखपुर : लू लगना कब और कैसे मौत की वजह बनता है
लू लगना कब और कैसे मौत की वजह बनता है
ए कुमार
गोरखपुर 15 जून 2019 ।।
आज गर्मी का आलम कुछ ऐसा है जैसे रोड पर निकलते ही आदमी भट्टी की आग में तपने लग रहा है। आज अगर हम देखे तो पारा 45 डिग्री पर पहुच गया है और 45 के बाद यह आपदा की श्रेणी में भी आजाता है और ऐसे में अगर हम देखे तो लू लगने से व्यक्ति की जान भी जा सकती है।
एक अनुमान के मुताबिक तेज़ लू
लगने के बाद इसका पूरा इलाज कराने के बावजूद भी करीब 63 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती हमारे शरीर की यह तासीर है कि आसपास का वातावरण यदि गर्म हो तो वह पसीने की मात्रा बढ़ाकर और त्वचा द्वारा वातावरण की हवा में ताप के निरंतर उत्सर्जन से यह अतिरिक्त गर्मी शरीर से बाहर निकालता रहता है और हमें बाहर तेज गर्मी होने के बावजूद बुखार नहीं हो पाता.
लेकिन शरीर यह काम एक निश्चित सीमा तक ही कर सकता है. हमें एक घंटे में अधिकतम ढाई लीटर तक पसीना आ सकता है. फिर? यदि हम उसी भयंकर गर्मी में ही किसी कार्यवश खड़े रहें और उसी गर्म वातावरण में शारीरिक मेहनत का काम भी करते रह जाएं तो हमारे शरीर का यह सिस्टम, एक सीमा के बाद असफल होने लगता है. पसीना कम होने लगता है और त्वचा से हवा में ताप के उत्सर्जन की दिशा उल्टी हो जाती है. तब हमारे शरीर का तापमान पूरी तरह बाहर की तेज गर्मी के हवाले हो जाता है। *ऐसे में हमें बुखार होने लगता है* शुरू में कम बुखार. फिर भी यदि आसपास की गर्मी में कोई बदलाव नहीं आए तो इस तेज गर्मी में शरीर के थर्मोस्टेट का पूरा सिस्टम फेल हो जाएगा और हमें इतना तेज बुखार हो जाएगा कि उसके असर में शरीर का हर सिस्टम फेल होने लगेगा. यही स्थिति तेज़ लू लगना या हीट स्ट्रोक कहलाती है.
लू लगने का खतरा किन लोगों को ज्यादा रहता है
यूं तो बेहद गर्म वातावरण में लगातार मेहनत का काम करते हुए किसी को भी लू लग सकती है, परंतु तेज गर्मी में लू लगने का सबसे ज्यादा खतरा इन लोगों को रहता है
(1) बहुत छोटी उम्र वाले बच्चों को और बूढ़ों को - इनमें तापमान नियंत्रण का शारीरिक सिस्टम कमजोर होता है. बुढ़ापे में सारे अंग ही उस क्षमता के साथ काम नहीं कर पाते सो लू को बर्दाश्त करने की इनकी क्षमता भी बहुत कम होती है इसीलिए लू लगने पर ये लोग बड़ी जल्दी गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं.
(2)जिनको मोटापा हो.
(3) दिल के मरीज, खासकर जिनके हार्ट का पम्प कमजोर हो (हार्ट फेल्योर के केस)
(4) जो लोग किसी भी कारण से शारीरिक रूप से कमजोर हों.
(5) वे लोग जो ऐसी दवाएं ले रहे हों जो पसीने के सिस्टम, दिमाग के रसायनों, दिल तथा रक्त नलिकाओं आदि पर असर डालती हैं (एंटी हिस्टामिनिक, एंटी कोलिनर्जिक, मानसिक रोगों में इस्तेमाल होने वाली कुछ महत्वपूर्ण दवाइयां, बीटा ब्लॉकर्स, डाइयूरेटिक्स, एलएसडी-कोकीन आदि नशे की दवाइयां. और हां इनके साथ दारू भी.)
लू लगने के लक्षणों को कैसे पहचाना जाए
यहां हम जिन लक्षणों की चर्चा कर रहे हैं, अगर उनमें से कुछ भी हो रहा हो तो जानिए कि आपको लू लगी है. इस स्थिति में ठीक से इलाज न किया गया और अभी-भी अगर हम उसी गर्मी में उसी तरह काम करते रहे तो हमें खतरनाक हीट स्ट्रोक तक हो सकता है. हल्की लू को इन लक्षणों से पहचानें -
(1) गर्मी में मेहनत करते हुए अचानक आंखों के सामने अंधेरा छाना और चक्कर खाकर गिर जाना
(2) मांसपेशियों में तेज ऐंठन (स्पाज्म)
(3) मांसपेशियों में बेइंतहा दर्द
(4) बड़ी बेचैनी, घबराहट और उत्तेजित होना या पागलों जैसा व्यवहार
(5) हल्का या तेज बुखार
(6) जी मितलाना, भयंकर प्यास, तेज सिरदर्द होना या बेहद कमजोरी लगना
यह आवश्यक नहीं है कि ये सारे लक्षण एक साथ मिलें. हां, हल्की लू के बारे में एक बात याद रहे. इसमें मरीज को पसीना आता रहता है. लू में जब तक मरीज को पसीना आ रहा हो, यह अच्छा लक्षण है. पसीना यह बताता है कि अभी-भी तापमान नियंत्रण का मैकेनिज्म काम कर रहा है.
यह लू गर्म जगह से हटने, ठंडी हवा में एक-दो दिन आराम करने, पानी, इलेक्टोराल, आम का नमकीन पना और अन्य नमकीन शर्बत पीने मात्र से एक-दो दिन में ही ठीक हो जाती है.
तेज लू या हीट स्ट्रोक में क्या होता है?
हीट स्ट्रोक के तीन बड़े लक्षण हैं :
(1) तेज बुखार (मुंह या रेक्टल तापमान 40 डिग्री सेल्सियस यानी 104-105 डिग्री फैरिनहाइट या इससे ज्यादा होना)
(2) बदन इतना गर्म होने के बावजूद पसीना एकदम बंद हो जाए. त्वचा सूख जाए.
(3) विचित्र मानसिक लक्षण दिखें (मरीज बेहोश हो जाए, गफलत में हो या आंय-बांय बोल रहा हो)
इस मरीज की हालत बड़ी तेजी से बिगड़ती है. यदि अगले एक घंटे में उसके बढ़े हुये तापमान को नीचे नहीं लाया जाए तो मरीज के बचने की उम्मीद बहुत कम हो जाती है. फिर मरीज मल्टी आर्गन फेल्योर में जाकर शायद ही वापस लौट पाये
लू से बचने के उपाय
1-खुले शरीर धूप में न निकलें। अगर निकलना ही पड़े तो धूप में निकलने पर सिर अवश्य ढंके। आंखों पर सनग्लासेस लगाएं और हो सके तो सफेद या हल्के रंग के कॉटन के कपड़े ही पहनें
2-ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं। जिससे पसीना आकर शरीर का तापमान नियमित निर्धारित हो सके तथा शरीर में जल की कमी न हो सके। अधिक गर्मी में मौसमी फल, फल का रस, दही, मठ्ठा, जीरा छाछ, जलजीरा, लस्सी, आम का पना पिएं या आम की चटनी खाएं।
3-अचानक ठंडी जगह से एकदम गर्म जगह ना जाएं। खासकर एसी में बैठे रहने के बाद तुरंत धूप में ना निकलें। कच्चा प्याज रोज खाएं। धूप में निकलने पर अपने पॉकेट में छोटा सा प्याज रखें, यह लू शरीर को लगने नहीं देता और सारी गर्मी खुद सोख लेता है।
लू लगने पर तत्काल योग्य डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
4- डॉक्टर को दिखाने के पूर्व कुछ प्राथमिक उपचार करने पर भी लू के रोगी को राहत महसूस होने लगती है।
5 बुखार तेज होने पर रोगी को ठंडी खुली हवा में आराम करवाना चाहिए। 104 डिग्री से अधिक बुखार होने पर बर्फ की पट्टी सिर पर रखना चाहिए।
6 रोगी को तुरंत प्याज का रस शहद में मिलाकर देना चाहिए। रोगी के शरीर को दिन में चार-पांच बार गीले तौलिए से पोंछना चाहिए। चाय-कॉफी आदि गर्म पेय का सेवन अत्यंत कम कर देना चाहिए।
7 प्यास बुझाने के लिए नींबू के रस में मिट्टी के घड़े अथवा सुराही के पानी का सेवन करवाना चाहिए। बर्फ का पानी नहीं पिलाना चाहिए क्योंकि इससे लाभ के बजाए हानि हो सकती है।
8 कैरी का पना विशेष लाभदायक होता है। कच्चे आम को गरम राख पर मंद आंच वाले अंगारे में भुनें। ठंडा होने पर उसका गूदा (पल्प) निकालकर उसमें पानी मिलाकर मसलना चाहिए। इसमें जीरा, धनिया, शकर, नमक, कालीमिर्च डालकर पना बनाना चाहिए। पने को लू के रोगी को थोड़ी-थोड़ी देर में दिया जाना चाहिए।
9 जौ का आटा व पिसा हुआ प्याज मिलाकर शरीर पर लेप करें तो लू से तुरंत राहत मिलती है। जब रोगी को बाहर ले जाएं, तो उसके कानों में गुलाब जल मिलाकर रूई के फाहे लगाएं। रोगी की नाभि पर खड़ा नमक रखकर उस पर धार बांध कर पानी गिराए। सारी गर्मी झड़ जाएगी।
10 मरीज के तलवे पर कच्ची लौकी घिसें, इससे सारी गर्मी लौकी खींच लेगी और तुरंत राहत मिलेगी। लौकी कुम्हला जाए तो समझें कि लू की गर्मी उतर रही है। यह क्रिया बार-बार दोहराएं।
ए कुमार
गोरखपुर 15 जून 2019 ।।
आज गर्मी का आलम कुछ ऐसा है जैसे रोड पर निकलते ही आदमी भट्टी की आग में तपने लग रहा है। आज अगर हम देखे तो पारा 45 डिग्री पर पहुच गया है और 45 के बाद यह आपदा की श्रेणी में भी आजाता है और ऐसे में अगर हम देखे तो लू लगने से व्यक्ति की जान भी जा सकती है।
एक अनुमान के मुताबिक तेज़ लू
लगने के बाद इसका पूरा इलाज कराने के बावजूद भी करीब 63 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती हमारे शरीर की यह तासीर है कि आसपास का वातावरण यदि गर्म हो तो वह पसीने की मात्रा बढ़ाकर और त्वचा द्वारा वातावरण की हवा में ताप के निरंतर उत्सर्जन से यह अतिरिक्त गर्मी शरीर से बाहर निकालता रहता है और हमें बाहर तेज गर्मी होने के बावजूद बुखार नहीं हो पाता.
लेकिन शरीर यह काम एक निश्चित सीमा तक ही कर सकता है. हमें एक घंटे में अधिकतम ढाई लीटर तक पसीना आ सकता है. फिर? यदि हम उसी भयंकर गर्मी में ही किसी कार्यवश खड़े रहें और उसी गर्म वातावरण में शारीरिक मेहनत का काम भी करते रह जाएं तो हमारे शरीर का यह सिस्टम, एक सीमा के बाद असफल होने लगता है. पसीना कम होने लगता है और त्वचा से हवा में ताप के उत्सर्जन की दिशा उल्टी हो जाती है. तब हमारे शरीर का तापमान पूरी तरह बाहर की तेज गर्मी के हवाले हो जाता है। *ऐसे में हमें बुखार होने लगता है* शुरू में कम बुखार. फिर भी यदि आसपास की गर्मी में कोई बदलाव नहीं आए तो इस तेज गर्मी में शरीर के थर्मोस्टेट का पूरा सिस्टम फेल हो जाएगा और हमें इतना तेज बुखार हो जाएगा कि उसके असर में शरीर का हर सिस्टम फेल होने लगेगा. यही स्थिति तेज़ लू लगना या हीट स्ट्रोक कहलाती है.
लू लगने का खतरा किन लोगों को ज्यादा रहता है
यूं तो बेहद गर्म वातावरण में लगातार मेहनत का काम करते हुए किसी को भी लू लग सकती है, परंतु तेज गर्मी में लू लगने का सबसे ज्यादा खतरा इन लोगों को रहता है
(1) बहुत छोटी उम्र वाले बच्चों को और बूढ़ों को - इनमें तापमान नियंत्रण का शारीरिक सिस्टम कमजोर होता है. बुढ़ापे में सारे अंग ही उस क्षमता के साथ काम नहीं कर पाते सो लू को बर्दाश्त करने की इनकी क्षमता भी बहुत कम होती है इसीलिए लू लगने पर ये लोग बड़ी जल्दी गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं.
(2)जिनको मोटापा हो.
(3) दिल के मरीज, खासकर जिनके हार्ट का पम्प कमजोर हो (हार्ट फेल्योर के केस)
(4) जो लोग किसी भी कारण से शारीरिक रूप से कमजोर हों.
(5) वे लोग जो ऐसी दवाएं ले रहे हों जो पसीने के सिस्टम, दिमाग के रसायनों, दिल तथा रक्त नलिकाओं आदि पर असर डालती हैं (एंटी हिस्टामिनिक, एंटी कोलिनर्जिक, मानसिक रोगों में इस्तेमाल होने वाली कुछ महत्वपूर्ण दवाइयां, बीटा ब्लॉकर्स, डाइयूरेटिक्स, एलएसडी-कोकीन आदि नशे की दवाइयां. और हां इनके साथ दारू भी.)
लू लगने के लक्षणों को कैसे पहचाना जाए
यहां हम जिन लक्षणों की चर्चा कर रहे हैं, अगर उनमें से कुछ भी हो रहा हो तो जानिए कि आपको लू लगी है. इस स्थिति में ठीक से इलाज न किया गया और अभी-भी अगर हम उसी गर्मी में उसी तरह काम करते रहे तो हमें खतरनाक हीट स्ट्रोक तक हो सकता है. हल्की लू को इन लक्षणों से पहचानें -
(1) गर्मी में मेहनत करते हुए अचानक आंखों के सामने अंधेरा छाना और चक्कर खाकर गिर जाना
(2) मांसपेशियों में तेज ऐंठन (स्पाज्म)
(3) मांसपेशियों में बेइंतहा दर्द
(4) बड़ी बेचैनी, घबराहट और उत्तेजित होना या पागलों जैसा व्यवहार
(5) हल्का या तेज बुखार
(6) जी मितलाना, भयंकर प्यास, तेज सिरदर्द होना या बेहद कमजोरी लगना
यह आवश्यक नहीं है कि ये सारे लक्षण एक साथ मिलें. हां, हल्की लू के बारे में एक बात याद रहे. इसमें मरीज को पसीना आता रहता है. लू में जब तक मरीज को पसीना आ रहा हो, यह अच्छा लक्षण है. पसीना यह बताता है कि अभी-भी तापमान नियंत्रण का मैकेनिज्म काम कर रहा है.
यह लू गर्म जगह से हटने, ठंडी हवा में एक-दो दिन आराम करने, पानी, इलेक्टोराल, आम का नमकीन पना और अन्य नमकीन शर्बत पीने मात्र से एक-दो दिन में ही ठीक हो जाती है.
तेज लू या हीट स्ट्रोक में क्या होता है?
हीट स्ट्रोक के तीन बड़े लक्षण हैं :
(1) तेज बुखार (मुंह या रेक्टल तापमान 40 डिग्री सेल्सियस यानी 104-105 डिग्री फैरिनहाइट या इससे ज्यादा होना)
(2) बदन इतना गर्म होने के बावजूद पसीना एकदम बंद हो जाए. त्वचा सूख जाए.
(3) विचित्र मानसिक लक्षण दिखें (मरीज बेहोश हो जाए, गफलत में हो या आंय-बांय बोल रहा हो)
इस मरीज की हालत बड़ी तेजी से बिगड़ती है. यदि अगले एक घंटे में उसके बढ़े हुये तापमान को नीचे नहीं लाया जाए तो मरीज के बचने की उम्मीद बहुत कम हो जाती है. फिर मरीज मल्टी आर्गन फेल्योर में जाकर शायद ही वापस लौट पाये
लू से बचने के उपाय
1-खुले शरीर धूप में न निकलें। अगर निकलना ही पड़े तो धूप में निकलने पर सिर अवश्य ढंके। आंखों पर सनग्लासेस लगाएं और हो सके तो सफेद या हल्के रंग के कॉटन के कपड़े ही पहनें
2-ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं। जिससे पसीना आकर शरीर का तापमान नियमित निर्धारित हो सके तथा शरीर में जल की कमी न हो सके। अधिक गर्मी में मौसमी फल, फल का रस, दही, मठ्ठा, जीरा छाछ, जलजीरा, लस्सी, आम का पना पिएं या आम की चटनी खाएं।
3-अचानक ठंडी जगह से एकदम गर्म जगह ना जाएं। खासकर एसी में बैठे रहने के बाद तुरंत धूप में ना निकलें। कच्चा प्याज रोज खाएं। धूप में निकलने पर अपने पॉकेट में छोटा सा प्याज रखें, यह लू शरीर को लगने नहीं देता और सारी गर्मी खुद सोख लेता है।
लू लगने पर तत्काल योग्य डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
4- डॉक्टर को दिखाने के पूर्व कुछ प्राथमिक उपचार करने पर भी लू के रोगी को राहत महसूस होने लगती है।
5 बुखार तेज होने पर रोगी को ठंडी खुली हवा में आराम करवाना चाहिए। 104 डिग्री से अधिक बुखार होने पर बर्फ की पट्टी सिर पर रखना चाहिए।
6 रोगी को तुरंत प्याज का रस शहद में मिलाकर देना चाहिए। रोगी के शरीर को दिन में चार-पांच बार गीले तौलिए से पोंछना चाहिए। चाय-कॉफी आदि गर्म पेय का सेवन अत्यंत कम कर देना चाहिए।
7 प्यास बुझाने के लिए नींबू के रस में मिट्टी के घड़े अथवा सुराही के पानी का सेवन करवाना चाहिए। बर्फ का पानी नहीं पिलाना चाहिए क्योंकि इससे लाभ के बजाए हानि हो सकती है।
8 कैरी का पना विशेष लाभदायक होता है। कच्चे आम को गरम राख पर मंद आंच वाले अंगारे में भुनें। ठंडा होने पर उसका गूदा (पल्प) निकालकर उसमें पानी मिलाकर मसलना चाहिए। इसमें जीरा, धनिया, शकर, नमक, कालीमिर्च डालकर पना बनाना चाहिए। पने को लू के रोगी को थोड़ी-थोड़ी देर में दिया जाना चाहिए।
9 जौ का आटा व पिसा हुआ प्याज मिलाकर शरीर पर लेप करें तो लू से तुरंत राहत मिलती है। जब रोगी को बाहर ले जाएं, तो उसके कानों में गुलाब जल मिलाकर रूई के फाहे लगाएं। रोगी की नाभि पर खड़ा नमक रखकर उस पर धार बांध कर पानी गिराए। सारी गर्मी झड़ जाएगी।
10 मरीज के तलवे पर कच्ची लौकी घिसें, इससे सारी गर्मी लौकी खींच लेगी और तुरंत राहत मिलेगी। लौकी कुम्हला जाए तो समझें कि लू की गर्मी उतर रही है। यह क्रिया बार-बार दोहराएं।