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बलिया : वतर्मान संदर्भ में परम्परागत एवं आधुनिक दोनों कृषि पद्धतियों के समन्वय पर आधारित खेती करना बेहतर होगा- डा० गणेश पाठक

वतर्मान संदर्भ में परम्परागत एवं आधुनिक दोनों कृषि पद्धतियों के समन्वय पर आधारित खेती करना बेहतर होगा- डा० गणेश पाठक
डॉ सुनील कुमार ओझा



बलिया 16 जून 2019 ।। बापू भवन (टाउन हाल) बलिया के संगोष्ठी सभागार में शैक्षणिक, औद्योगिक एवं सेवा संस्थान हरपुर, बलिया के तत्वाधान में "धान की खेती के नवोन्मेषी तरीके" विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी - सह 'किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम' का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने की, जबकि कार्यक्रम के मुखँय अतिथि चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर के कृषि वैज्ञानिक डा० के० के० पाण्डेय रहे। कार्यक्रम में विषय विशेषज्ञ के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के वाराणसी केन्द्र के कृषि वैज्ञानिक डा० उमा महेश्वर एवं डा० आशुतोष राय, बलिया जिला के कृषि अधिकारी प्रिया नन्दा तथा कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव, बलिया के कृषि वैज्ञानिक डा० वी० पी० सिंह तथा टाउन कालेज बलिया के बाटनी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा० निशा राघव रहीं। कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन शैक्षणिक, औद्योगिक एवं सेवा संस्थान, बलिया के प्रबन्धक डा० प्रीति उपाध्याय ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सर्व प्रथम द्वीप प्रज्वलित कर एवं माँ सरस्वती के छायाचित्र पर अतिथियों द्वारा माल्यार्पण एवं पुष्पार्जन कर किया गया।
   इस अवसर पर पूरे बलिया जनपद से पधारे 50 से अधिक कृषकों ने अपनी सहभागिता सुनिश्चित की। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डा० निशा राघव ने धान की खेती में एजोला के उत्पादन, प्रयोग एवं उसके लाभ के संदर्भ में विस्तृत चर्चा की। डा० के० के० पाण्डेय ने धान की खेती के विभिन्न विधियों पर प्रकाश डालते हुए धान की नर्सरी लगाने से लेकर धान की रोपाई, निराई, गुड़ाई आदि तथ्यों तथा जैविक उर्वरकों के प्रयोग पर अधिक जोर दिया। डा० उमा महेश्वर ने अन्तर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान केन्द्र की गतिविधियों की विसँतृत चर्चा करते हुए धान की उपयोगी विधियों, उपयोगी बीजों एवं रोगों से निदान के बारे में विस्तृत चर्चा किया। डा० आशुतोष राय ने धान में कीटों एवं खर पतवारों से बचाव पर चर्चा किया । डा० वी० पी० सिंह ने मृदा परीक्षण से लेकर धान में पानी के पँरयोग की मात्रा एवं कृषि पद्धतियों पर विस्तृत चर्चा किया, जबकि कृषि अधिकारी प्रिया नन्दा ने कृषि के विभिन्न पक्षों पर विचार व्यक्त किया। डा० राम गणेश उपाध्याय ने भी कृषि से जुड़े विभिन्न समस्याओं के समाधान के उपाय बताया।
     उक्त संगोष्ठी में कृषकों नेभी अपने विचार रखे एवं अपनी समस्याओं को सामने लाकर विषय विशेषज्ञों से उसके समाधान के रूप में जाधकखरी भी प्राप्त की। अंत में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने कहा कि आज हम जिस अंधाधुन्ध गति से आधुनिक कृषि पद्धतियों कै अपनाएँ हैं, उसका दुष्परिणाम भी हमें भुगतना पड़ा है। पंजाब का उदाहरण देते हुए डा० पाठक ने कहा कि हरित क्रांति लागू होने के बाद अकेले पंजाब पूरे देश को खाद्यान्न पूर्ति में सक्षम होकर निर्यात भी करने लगा था, किन्तु अब स्थिति बदल गयी है और लहाँ के खेत बंजर होते जा रहे हैं, उनकी उत्पादकता काफी कम हो गयी है। यह सब कृषि में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों एवं अत्यधिक सिंचाई का ही प्रतिफल है। डा० पाठक ने बताया कि एक अध्ययन के अनुसार बलिया की कृषि भूमि की भी पोषक क्षमता काफी कम होती जा रही है, जिससे उत्पादकता भी घटती जा रही है। साथ ही साथ भूमिगत जल स्तर भी नीचे खिसकता जा रहा है, जिसका खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इन दोनों के कारण बलिया की क।षि भूमि भी बंजर होने की तरफ अग्रसर होती जा रही है, जिस पर न केवल कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषकों को भी विशेष ध्यान देना होगा। ऐसी परिस्थिति में यदि परम्परागत एवं आधुनिक दोनों कृषि पद्धतियों में समन्वय स्थापित कर खेती की जाय एवं जैविक खाद का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाय तो मिट्टी की उर्वरता को कायम रखी जा सकती है।
      कार्यक्रम के अंत म़े आयोजकों द्वारा उत्तम कृषि करने वाले कृषकों एवं हभी अतिथियों कै अंगलस्त्रम् एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में काजल पाण्डेय, राहुल मिश्र एवं अंकित चौबे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.। अंत में संस्था के संरक्षक डा० चन्द्रशेखर उपाध्याय द्वारा सभी आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया गया।