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तहकीकात : जागो भारत जागो , अब तो बांग्लादेश से तेज भागो

वही क्या हमने यह जानने की कभी कोशिश की है कि हमारेदेश मे प्रति व्यक्ति आय की स्थिति क्या है ? हम अमेरिका इंग्लैंड को छोड़िये क्या अपने छोटे से पड़ोसी देश से भी प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में सफल हुए है ?
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 2013 में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय 914 डॉलर थी जो 2016 में 39.11 फ़ीसदी बढ़कर 1,355 डॉलर हो गई. इसी अवधि में भारत में प्रति व्यक्ति आय 13.80 फ़ीसदी बढ़ी और 1,706 डॉलर तक पहुंची.
पाकिस्तान में इसी अवधि में 20.62 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई और 1,462 डॉलर पर पहुंच गई. कहा जा रहा है कि अगर बांग्लादेश इसी गति से प्रगति करता रहा तो 2020 में भारत को प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी पीछे छोड़ देगा.क्या यह सोचना जरूरी नही है कि क्या कारण है कि हम साधन संपन्न होते हुए भी क्यो पिछड़ते जा रहे है ।
हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने पिछले कार्यकाल में नोटबन्दी के द्वारा डिजिटल लेनदेन को काफी प्रोत्साहित किया । यही नही करोड़ो लोगो के खाते जनधन योजना के तहत खुलवाये गये । पर अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि खातों को खुलवाने के बाद किसी ने एकबार भी इन खातों के बंद होने पर खाता धारकों से संपर्क करके खातों के बंद होने के कारणों को जानने की कोशिशें की क्या ? इतने बड़े देश मे डिजिटल लेनदेन का प्रतिशत अगर पड़ोसियों से भी कम है तो बड़े ही दुख का समाचार तो है ही।
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 2017 में बांग्लादेश में जिन लोगों का बैंक खाता है उनमें से 34.1 फ़ीसदी लोगों ने डिजीटल लेन-देन किया जो दक्षिण एशिया में औसत 27.8 फ़ीसदी से बहुत अधिक है ।
बन्द खाता धारकों के मामलो में भी भारत की स्थिति ठीक नही है । भरत में ऐसे लोगों की तादाद 48 फ़ीसदी है जिनके पास बैंक खाता तो है लेकिन उससे कोई लेन-देन नहीं करते. ऐसे खातों को डॉर्मन्ट अकाउंट (निष्क्रिय खाता) कहा जाता है. दूसरी तरफ़ बांग्लादेश में ऐसे लोग 10.4 फ़ीसदी लोग ही हैं । 1974 में भयानक अकाल के बाद 16.6 करोड़ से ज़्यादा की आबादी वाला बांग्लादेश खाद्य उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बन चुका है. 2009 से बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय तीन गुनी हो गई है । क्या ऐसा हम कर पाये है , यह सोचिये ?
बांग्लादेश छोटा देश जरूर है पर यहां आवादी बहुत है । बांग्लादेश ने हिंदुस्तान की तरह आवादी का रोना रोकर इसको अपनी गलत नीतियों के बचाव का हथियार नही बनाया ।  बल्कि इसी अत्यधिक आबादी को अपनी तरक्की का हथियार बना लिया । बांग्लादेश छोटा सा देश है पर पर इसकी आबादी बहुत ज़्यादा है. यहां की आबादी बहुत ही सघन है. बांग्लादेश बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री फ़ैसल अहमद बड़ी आबादी को अपने मुल्क की तरक्की में काफ़ी लाभकारी मानते हैं. फ़ैसल ने अपने कई इंटरव्यू में कहा है कि सघन आबादी के कारण सोशल और इकनॉमिक आइडिया को ज़मीन पर उतारने में काफ़ी मदद मिलेगी. सघन आबादी के चलते ही बांग्लादेश कपड़ा उद्योग का हब बन गया है । क्या हम अपनी आबादी को ऐसे विकास के कार्यो से जोड़ पाये है ? क्या हमने आबादी को तरक्की का हथियार बनाने का प्रयास किया है ? हम जहां अपनी योजनाओं/ मोर्चो के प्रदर्शन/क्रियान्वयन में फिसलते जा रहे है वही ज़्यादातर मोर्चों पर बांग्लादेश प्रदर्शन के मामले में सरकारी लक्ष्यों से आगे निकल चुका है. बांग्लादेश अभी मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर पर ज़्यादा ध्यान दे रहा है. कपड़ा उद्योग में बांग्लादेश का प्रभुत्व दुनिया भर में जाना जाता है.
बांग्लादेश में बनने वाले कपड़ों का निर्यात सालाना 15 से 17 फ़ीसदी की दर से आगे बढ़ रहा है. 2018 में जून महीने तक कपड़ों का निर्यात 36.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया. पीएम  हसीना का लक्ष्य है कि 2019 तक इसे 39 अरब डॉलर तक पहुंचाया जाए और 2021 में बांग्लादेश जब अपनी 50वीं वर्षगांठ मनाए तो यह आंकड़ा 50 अरब डॉलर तक पहुंच जाए.यह जुनून यह कोशिश ही है कि बांग्लादेश की पीएम अपने देश को 2024 तक अल्प विकसित देश की श्रेणी से निकालकर विकासशील देश की श्रेणी में करने का लक्ष्य रखी हुई है । क्या हमारे देश के नीति निर्धारकों ने आबादी को साथ लेकर तरक्की की नई इबारत लिखने की कोशिशें की है या करने जा रहे है ? यह पूंछना तो हमारा हक है न ?
जाने माने अर्थशास्त्री कौशिक बसु का मानना है कि बांग्लादेश के समाज के बड़े हिस्से में बदलाव की बयार है और यहां महिलाओं का सशक्तीकरण भी तेज़ी से हो रहा है. बांग्लादेश में एक व्यक्ति की औसत उम्र 72 साल हो गई है जो कि भारत के 68 साल और पाकिस्तान के 66 साल से ज़्यादा है । पर क्या हम लोग महिलाओ के सशक्तिकरण के लिये ठोस कदम उठाये है ? दशको से महिलाओं के लिये आरक्षण का बिल संसद में लटका हुआ है , इसको पास करने के लिये क्यो नही प्रयास हो रहे है ? चुनाव में आधी आबादी जो संवेदनशील है , उसकी संवेदना को उकेर कर सत्ता प्राप्त करने के बाद इनकी उन्नति इनके सशक्तिकरण की योजनाएं क्यो दम तोड़ रही है , यह सवाल किसी ने पूंछने की हिम्मत की है क्या ? गरीबी में जीने वाला छोटा सा देश अपने यहां महिलाओ को सशक्त बनाकर अपनी तरक्की की इबारत लिख रहा है और एक हम है कि आज भी तीन तलाक पर अटके हुए है । महिलाओं को साहब सशक्त बना दीजिये फिर देखियेगा तीन तलाक जैसे मुद्दे उनके लिये कोई मायने नही रखेंगे ।
भारत जेनरिक दवाओं के निर्माण के क्षेत्र में सबसे आगे है । लेकिन भारत को इस क्षेत्र में भी बांग्लादेश से कड़ी टक्कर मिल रही है । भारत दवाइयों के निर्माण में भी काफ़ी आगे है और बांग्लादेश अपने पड़ोसी को इसमें भी टक्कर देने की मंशा रखता है. बांग्लादेश की सरकार देश भर में 100 विशेष आर्थिक क्षेत्रों का नेटवर्क तैयार करना चाहती है. इनमें से 11 बनकर तैयार हो गए हैं और 79 पर काम चल रहे हैं ।
हमारे पीएम मोदी जी के आईटी सेक्टर को मजबूत कर विदेशी मुद्रा अर्जित करने के राह में भी  बांग्लादेश आईटी सेक्टर में  भारत को कड़ी दे रहा है । शेख हसीना ने अपने कार्यकाल में डिजिटल व्यवस्था को काफ़ी दुरुस्त किया है. बांग्लादेश के और विदेशी मीडिया में इसके लिए अमरीका में पढ़े हसीना के बेटे को श्रेय दिया जाता है.
डिजिटल बांग्लादेश प्रोग्राम में शेख हसीना के बेटे सजीब अहमद की भूमिका को काफ़ी अहमियत दी जाती है. इसके तहत बांग्लादेश में सूचना टेक्नॉलजी का काफ़ी विस्तार हुआ और देश भर में इससे जुड़े 12 हाइटेक पार्क बनाए गए.

कहा जा रहा है कि बांग्लादेश आईटी सेक्टर में भारत से मुक़ाबला करने की महत्वाकांक्षा रखता है. सॉफ़्टवेयर कंपनी टेक्नोहैवेन और बांग्लादेश असोसिएशन ऑफ सॉफ़्टवेयर एंड इन्फ़र्मेशन सर्विस के सह संस्थापक हबीबुल्लाह करीम ने फ़ाइनैंशल टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा है, ''बांग्लादेश में इस साल 30 जून तक आईटी सर्विस और सॉफ़्टवेयर का निर्यात 80 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया और इस वित्तीय वर्ष में यह एक अरब डॉलर के पार चला जाएगा. सरकार ने 2021 तक इसका लक्ष्य पांच अरब डॉलर रखा है जो कि काफ़ी चुनौतीपूर्ण है.'' । अब सवाल यह उठ रहा कि कही मंगल पर जाने के जुनून में हमारे पांवो से धरती तो नही खिसक रही है ।
(आंकड़ो का स्रोत बीबीसी हिंदी सेवा)