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बलिया : बढ़ते प्रदूषण के साथ अब असंतुलित होता जा रहा है महासागरों का भी पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र* - डा० गणेश पाठक

(8 जून को विश्व महासागर दिवस पर विशेष)
बढ़ते प्रदूषण के साथ अब असंतुलित होता जा रहा है महासागरों का भी  पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र* - डा० गणेश पाठक
डॉ सुनील कुमार ओझा की रिपोर्ट

बलिया 8 जून 2019 ।।
     अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि जीवन की उत्पत्ति से लेकर मौसम एवं जलवायु के परिवर्तन में महासागरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विश्व भर में मौसम को संतुलित बनाए रखने में ये महासागर अहम् भूमिका निभाते हैं। महासागरों का अपना एक विशेष पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र होता है जिसके तहत ये महासागर महासागरीय जल तंत्र एवं जैव विविधता को कायम रखते हैं।
      हमारी पृथ्वी के लगभग 70.8 प्रतिशत भाग पर महासागरों का विस्तार है और पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का 97 प्रतिशत इन महासागरों में ही विद्यमान है।वर्षा के स्रोत के रूप में वर्षा हेतु उत्तरदायी दशाओं को उत्पन्न पर जीव जगत एवं पादप जगत के लिए सुव्यवस्थित जीवन प्रदान करने में सबसे अहम् भूमिका निभाते हैं।
      डा० पाठक ने बताया कि आधुनिक विकास की अंधी दौड़ एवं समुद्री परिवहन सहित समुद्री संसाधनों के अतिशय एवं अनियोजित दोहन तथा शोषण ने महासागरों को भी प्रदूषण से अछूता नहीं रखा है। समुद्रों के किनारे बसे नगरों एवं उद्योगों से निकले कचरों को सीधे समुद्रों में गिराने, नदियों के साथ बहाकर लाए गए मलवा एवं कचरा का समुद्र में गिरने , अनेक माध्यमों से अबाध रूप से इन महासागरों प्लास्टिक का जमाव होने, जलयानों से तेल का रिसाव होने तथा खनिज तेल के टैंकरों के फट जाने से पूरे तेल का समुद्र में मिल जाने एवं इस तेल के प्रवाह से कभी- कभी समुद्री जल में आग लग जाने के कारण न केवल समुद्री जल प्रदूषित हो रहा है , बल्कि समुद्री जीव जंतुओं एवं समुद्री वनस्पतियों को भी अपार क्षति उठानी पड़ती है और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। 
        यही नहीं महासागर अनेक तरह के खनिज संसाधनों , जीवीय संसाधनों एवं जलीय संसाधनों के स्रोत हैं ।  वर्तमान समय में इन सभी संसाधनों का तीव्रगति से अनियोजित तथा अनियंत्रित दोहन एवं शोषण है रहा है, जिससे न केवल समुद्री जल प्रदूषित हो रहख है , बल्कि पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र भी असंतुलित होता जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप जलीय जीवों एवं समुद्री पादपों ( वनस्पतियों) का वास स्थान भी नष्ट होता जा रहा है  और इनके अस्तित्व पर संकट मँडराने लगा है। बल्कि अनेक जीव- जन्तु एवं समुद्री वनस्पतियाँ तो समाप्ति के कगार पर हैं।
      पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध " अन्तर सरकारी पैनल" की एक अध्ययन आख्या के आनुसार मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग में निरन्तर हो रही वृद्धि के कारण समुद्री जल स्तर में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है, जिसके चलते विश्व भर के मौसम में परिवर्तन परिलक्षित होने लगा है।
     डा० पाठक ने बताया कि महासागरीय जल में बढ़ रहे प्रदूषण, समुद्री संसाधनों के अतिशय दोहन एवं शोषण तथा समुद्री पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहे असंतुलन को देखते हुए ही इसके प्रति जन जागरूकता पैदा करने हेतु 1992 में सम्पन्न हुए "पृथ्वी ग्रह" नामक फोरम में यह निर्णय लिया गया कि प्रति वर्ष  विश्व महासागर दिवस मनाया जाय। किन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस दिवस को अधिकारिक रूप से मनाये जाने की मान्यता 8 जून , 2008 को मिली और 8 जून, 2009 को पहला "विश्व महासागर दिवस" मनाया गया और तब से प्रति वर्ष 'विश्व महासागर दिवस ' 8 जून को पूरे विश्व में मनाया जाता है, ताकि महासागरों को प्रदूषित होने एवं असंतुलित होने से बचाया जा सके।