नईदिल्ली : अस्पताल में भर्ती महिला को एमआरआई के लिए ढाई महीने बाद बुलाया, मौत
अस्पताल में भर्ती महिला को एमआरआई के लिए ढाई महीने बाद बुलाया, मौत
ए कुमार
नईदिल्ली 14 जून 2019 ।।
दिल्ली के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सफरजंग हॉस्पिटल की लापरवाही के चलते एक महिला को अपनी जान गंवानी पड़ी। 47 साल की विमला कोमा में थीं और सफदरजंग में भर्ती थीं। वो जिंदगी और मौत से जूझ रही थीं। उनके ब्रेन का MRI होना था। भर्ती होने के बावजूद एमआरआई के लिए उन्हें 26 अगस्त का टाइम दिया गया।
खराब हालत के चलते विमला इतना लंबा इंतजार कर नहीं पाई और उनकी मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि जांच के अभाव में इलाज प्रभावित हुआ, जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। यही नहीं ऐेसा ही एक और मामला सामने आ रहा है जब अन्य महिला मरीज को एमआरआई के लिए 12 नवंबर की डेट मिली है।
आपको बता दें कि विमला सफदरजंग के न्यूरॉलजी विभाग में ऐडमिट थीं। परिजनों का आरोप है कि वह बोल तक नहीं पा रही थीं, कोमा वाली स्थिति में थीं। उन्होंने कहा कि इलाज करने वाले डॉक्टर ने खुद एमआरआई ब्रेन की जांच कराने को लिखा था, बावजूद इसके अस्पताल के रेडियॉलजी विभाग ने 26 अगस्त का समय दिया था।
परिजनों ने बताया कि हमें तो यही डर था कि बिना जांच के इलाज कहीं इस कदर प्रभावित न हो जाए कि हमें इसका बड़ा खामियाजा हमें भुगतना पड़े। रिश्तेदार ने एक अखबार से बातचीत में बताया कि जब मरीज ऐडमिट हो जाता है तो उसके इलाज की जरूरत के अनुसार जल्दी जांच होती है, ताकि इलाज सही तरीके से हो सके। यहां तो ऐडमिट मरीज को भी ओपीडी की तरह डेट दी जा रही थी।
ए कुमार
नईदिल्ली 14 जून 2019 ।।
दिल्ली के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सफरजंग हॉस्पिटल की लापरवाही के चलते एक महिला को अपनी जान गंवानी पड़ी। 47 साल की विमला कोमा में थीं और सफदरजंग में भर्ती थीं। वो जिंदगी और मौत से जूझ रही थीं। उनके ब्रेन का MRI होना था। भर्ती होने के बावजूद एमआरआई के लिए उन्हें 26 अगस्त का टाइम दिया गया।
खराब हालत के चलते विमला इतना लंबा इंतजार कर नहीं पाई और उनकी मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि जांच के अभाव में इलाज प्रभावित हुआ, जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। यही नहीं ऐेसा ही एक और मामला सामने आ रहा है जब अन्य महिला मरीज को एमआरआई के लिए 12 नवंबर की डेट मिली है।
आपको बता दें कि विमला सफदरजंग के न्यूरॉलजी विभाग में ऐडमिट थीं। परिजनों का आरोप है कि वह बोल तक नहीं पा रही थीं, कोमा वाली स्थिति में थीं। उन्होंने कहा कि इलाज करने वाले डॉक्टर ने खुद एमआरआई ब्रेन की जांच कराने को लिखा था, बावजूद इसके अस्पताल के रेडियॉलजी विभाग ने 26 अगस्त का समय दिया था।
परिजनों ने बताया कि हमें तो यही डर था कि बिना जांच के इलाज कहीं इस कदर प्रभावित न हो जाए कि हमें इसका बड़ा खामियाजा हमें भुगतना पड़े। रिश्तेदार ने एक अखबार से बातचीत में बताया कि जब मरीज ऐडमिट हो जाता है तो उसके इलाज की जरूरत के अनुसार जल्दी जांच होती है, ताकि इलाज सही तरीके से हो सके। यहां तो ऐडमिट मरीज को भी ओपीडी की तरह डेट दी जा रही थी।