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बलिया में हो रहा है शहादत का सम्मान या अपमान : शहीद स्मारक के लिए, जिम्मेदारों, को नहीं मिल रही जमीन,आठ वर्ष से कार्यालय का चक्कर लगा रही है शहीद की विधवा, दंतेवाड़ा नक्सली हमले में शहीद हो गए थे इंद्रजीत राम, तत्कालीन डीएम अब है प्रभारी अधिकारी क्या निभाएंगे अपना वादा ?

 बलिया में हो रहा है शहादत का सम्मान या अपमान : शहीद स्मारक के लिए, जिम्मेदारों, को नहीं मिल रही जमीन,आठ वर्ष से कार्यालय का चक्कर लगा रही है शहीद की विधवा, दंतेवाड़ा नक्सली हमले में शहीद हो गए थे इंद्रजीत राम, तत्कालीन डीएम अब है प्रभारी अधिकारी क्या निभाएंगे अपना वादा ?


मधुसूदन सिंह
बलिया 23 जून 2019 ।। 
शहीदों की चिताओ पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही एक बाकी निशान होगा...
  लेकिन जब किसी शहीद की शहादत को यादगार बनाने वाली स्मारक के लिये जिला प्रशासन जमीन भी न दे पा रहा हो तो क्या कहेंगे -- शहादत का सम्मान या अपमान ?
देश की सरहद को , देश के लोगो के सुख चैन को बचाने के लिये देश और समाज के दुश्मनों से लोहा लेते हुए , बिना सोच विचार किये कि अगर उनको कुछ हो गया तो उनकी बीबी और बच्चों का क्या होगा ? अपने सीने पर दुश्मनों की गोली खाकर शहीद होने वाले जवानों के परिजन किस हालात से गुजर रहे है , इसको जानने वाला कोई नही है ऐसा ही लगता है ? यह हम इस लिये कह रहे है कि हमारे जनपद बलिया में ऐसा ही वाक्या सामने आया है । दंतेवाड़ा नक्सली हमले में  बलिया की धरती के शान इंद्रजीत राम 2010 में शहीद हुए थे । उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र चढ़ाकर सरकार के नुमाइंदों और तत्कालीन जिला अधिकारी सेन्थियल पांडियन सी ने भी वही से अपने मातहतों के लिये आदेश देते हुए कहा था कि शहीद के नाम पर स्मारक , परिजनों को आवास , सड़क का नामकरण और परिजनों को खेती योग्य भूमि तत्काल उपलब्ध करायी जाय , पर दुर्भाग्य के साथ कहना पड़ रहा है कि शहीद के परिजनों को बसपा सपा के बाद भाजपा की सरकार में आजकल एक ढेला भी नही मिला है । आज इस घटना को उजागर करने का मकसद यह है कि समय ने फिर करवट बदला है , तत्कालीन डीएम बलिया, इस समय बलिया जनपद के प्रभारी अधिकारी बने है और इस फेफना विधान सभा के विधायक उपेन्द्र तिवारी मंत्री है । क्या प्रभारी अधिकारी सेन्थियल पांडियन सी , 2010 में शहीद के लिए किये गये अपने वादों को अमली जामा पहनायेंगे ?, यह यक्ष प्रश्न है क्योंकि बलिया जिला प्रशासन को शहीद के स्मारक , खेती योग्य भूमि और आवास के लिये , कही सरकारी जमीन ही नही मिल रही है । इस उपेक्षित व्यवहार पर मुझे वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार के कथन याद आ जाते है जिसमे श्री कुमार ने शहीदों के सम्बंध में कहा है --
हमें उनकी शहादत का ख़्याल इसलिए भी है कि कोई हमें पत्थर की दीवार बन जाने के लिए जान नहीं देता है। वहशी बनाने के लिए जान नहीं देता है। वो जान इसलिए देता है कि हम उसके पीछे सोचे, विचारें,बोलें और लिखें। उसके पीछे मुस्कुरायें और दूसरों को हँसाये। उसके मुल्क को बेहतर बनाने के लिए हर पल लड़ें, जिसके लिए वो जान दे गया है। शहादत की आड़ में वो अपनी नाकामी नहीं छिपा सकते जिनके कारण सीमा से बहुत दूर जवानों का परिवार समाज और व्यवस्थाओं की तंगदिली का सामना करता है। जवानों की शहादत हम नागरिकों के लिए है। नेताओं के ट्वीट के लिए नहीं है। एंकरों की चीख़ के लिए नहीं है। उनकी ललकार नाटकीय है। जब वे मोर्चे पर नहीं है तो ललकार के दम पर मोर्चे पर होने की नौटंकी न करें। इससे शहादत का अपमान होता है। यह शहादत उनके लिए है जो अपने स्तर पर जोखिम उठाते हुए मुल्क की जड़ और ह्रदयविहीन हो चुकी सत्ता को मनुष्य बनाने के लिए पार्टियों और सरकारों से लड़ रहे हैं। अफ़सोस इस बात का है कि नेता बड़ी चालाकी से शहादत के इन गौरवशाली किस्सों से अपना नकली सीना फुलाने लगते हैं। अपनी कमियों पर पर्दा डालने के मौके के रूप में देखने लगते हैं। गुर्राने लगते हैं। दाँत भींचने लगते हैं। जबड़ा तोड़ने लगते हैं। आँख निकालने लगते हैं। वक्त गुज़रते ही शहादत से सामान्य हो जाते हैं। फिर भूल जाते हैं। कोई किसी को सबक नहीं सीखाता है। सबक सीखाने से दुनिया आतंक से मुक्त हो चुकी होती तो बहुत से मुल्कों के जत्थे सबक सीखाने कब से निकले हुए हैं। बात करने और बात न करने की कूटनीतिक चालों के बीच एक गोली चलती है जो जवानों के सीने के आर पार होती हुई हम सबके ज़हन में धँस जाती है। युद्ध की भाषा बोलने वालों के लिए युद्ध प्राइम टाइम हो गया है। वो नंबर वन होने का ज़रिया है। ज़रिया न होता तो ये सरकारों के एजेंडे का हथियार न बनते बल्कि नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सरकारों से लड़ते। सख़्त सवाल करते। मगर आप समझेंगे नहीं। आप भी भावुक होकर चीखेंगे। फिर धीरे धीरे रोज़ उस शहादत का अपमान करने के लिए चोरी से लेकर सीनाज़ोरी करेंगे।

आइये शहीद की इस उपेक्षित कहानी को 
अपने लक्ष्मणपुर सहयोगी पवन कुमार के शब्दों से जानते है ।

 शहीद स्मारक बनाने एवं जमीन आवंटन के लिए  नौ वर्ष से  शहीद का परिवार तरस रहा है। इसके लिए शहीद की विधवा द्वारा किया जा रहा  हर प्रयास जिम्मेदारों की  उदासीनता से बेकार हो जा रहा है। जी हां हम बात कर रहे हैं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल अंबिकापुर सरगुजा छत्तीसगढ़ में तैनात पलिया खास बड़का खेत निवासी इंद्रजीत राम की जो दंतेवाड़ा नक्सली हमले में 6 अप्रैल 2010 को अपने 76 साथियों के साथ शहीद हो गया था। शहीद के अंतिम संस्कार में गंगा तट पर मुखाग्नि देते 2 वर्ष के अबोध पुत्र को देख कर उपस्थित हजारों लोगों की  आंखें नम हो गई थी। शहीद की विधवा इंद्रावती देवी शहीदी स्मारक कृषि योग्य जमीन आउट आवास एवं शहीद के नाम पर सड़क का नामांकन कराने के लिए आठ वर्षों से अधिकारियों के कार्यालय का चक्कर लगा रही है। जहां पर उसे उम्मीद की किरण दिखाई दी, वह फरियाद लगाती रही और हार नहीं मानी। 8 अप्रैल 2010 को शहीद के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित करने पहुंचे तत्कालीन डीएम  सेन्थियल पांडियन सी ने मौके पर ही मातहतों को शहीद के नाम पर सड़क बनवाने का प्रस्ताव बनाकर भेजने का निर्देश दिया था । साथ ही शहीद परिवार को आवास, कृषि योग्य जमीन आवंटन कराने तथा शहीद स्मारक बनाने की बात कही थी ।  लेकिन आठ वर्ष बीत जाने के बाद भी किसी ने शहीद परिवार की सुधि नहीं लिया है।
शहीद की विधवा हृदयावती देवी की शिकायत पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस वल छत्तीसगढ़ की 62 वी बटालियन द्वारा कई बार अपने स्तर से डीएम समेत अन्य अधिकारियों को पत्र भेजा गया। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल इलाहाबाद ग्रुप परिसर में 27 जुलाई 2017 को स्थापना दिवस का आयोजन किया गया था, जिसमें शहीद की विधवा ने अवगत कराया था कि शहीद परिवार के पास ना तो रहने लायक घर है और ना ही शहीद के नाम पर सड़क एवं शहीद स्मारक का ही निर्माण कराया गया है। शहीद की विधवा ने क्षेत्रीय विधायक एवं राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उपेंद्र तिवारी से मिलकर गुहार लगाई तो मंत्री ने बीडीओ सोहांव को निर्देश दिया कि इन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास उपलब्ध कराया जाए। बावजूद इसके अभी तक शहीद परिवार को ना तो कृषि योग्य जमीन का आवंटन हो सका है ना ही शहीद के नाम पर सड़क शहीद स्मारक एवं आवास ही मिल सका है।

शहीद की मां बोली बने शहीद स्मारक व आवास
 लक्ष्मणपुर शहीद इंद्रजीत राम की बूढ़ी मां प्रभावती देवी ने बड़े दर्द भरे लहजे में कहा कि यदि हमारे लड़के के नाम पर शहीद स्मारक एवं आवास बन सकता है तो शहीद की विधवा अपने बच्चों के साथ समय काट लेती। शहीद के दो लड़के और एक लड़की है। कहां की राशन दुकान से राशन नहीं मिलता था अब एक साल से राशन मिल रहा है। भगवान पर पूरा भरोसा है कि वह इसे पूरा करेंगा। शहीद की जिक्र होते ही बूढ़ी मां की ममता छलक पड़ी।
 न्याय पंचायत में भी नहीं मिल रही जमीन
लक्ष्मणपुर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल अंबिकापुर, छत्तीसगढ़ के पत्र के क्रम बलिया का राजस्व विभाग ने जमीन की तलाश शुरू किया। पलियाखास में ग्राम सभा की जमीन नहीं मिली। नरही के लेखपाल ने भी हाथ खड़ा कर दिया। इसके बाद चकबंदी प्रक्रिया में चल रहे खमीरपुर में जमीन की तलाश की जा रही है। आश्चर्यजनक बात यह है कि न्याय पंचायत लक्ष्मणपुर के तहत लक्ष्मणपुर, सरवन पुर ,तेतारपुर, कुल्हाड़ी ,दरियापुर ,एवं पलिया खास आते हैं इन ग्राम सभाओं में ग्राम सभाओं की पर्याप्त जमीन उपलब्ध है। वाहजुद इसके  जिम्मेदारों को इन ग्राम सभाओ में शहीद स्मारक बनाने एवं कृषि योग्य जमीन नहीं मिल रही है । हद तो तब हो गई जब राजस्व विभाग के कर्मचारियों ने लक्ष्मणपुर न्याय पंचायत के किसी लेखपालों से संपर्क ना कर के, नरही में तथा खमीरपुर जमीन की तलाश शुरू कर दिया। इस संबंध में पलियाखास के लेखपाल अजय कुमार से पूछने पर बताया गया  कि इसके बारे में डीएम साहब को रिपोर्ट भेज दी गई है।

चाहे सरकारी तंत्र के कर्मी हो , या सत्ता सुख भोग रहे नेता गण ,इस शहीद की शहादत का चाहे जितनी उपेक्षा कर ले , परन्तु बलिया एक्सप्रेस परिवार का यही मानना है(शहीद के प्रति) -

जान देकर देश का,

तुम भाल ऊँचा कर गए,

अपनी क़ुर्बानी से,

भारत माँ का टीका कर गए।

ओ वतन के बागबां,

तूुम सेे ही तो है खुशियांँ सभी,

खेल होली खून की


आँगन में मेला कर गए।