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परिवारवाद के रंग में रंगी बसपा : उठे सवाल, क्या पीछे छूट गया कांशीराम का दलित आंदोलन

 परिवारवाद के रंग में रंगी बसपा : उठे सवाल,क्या पीछे छूट गया कांशीराम का दलित आंदोलन

अमित शर्मा, नई दिल्ली Updated Sun, 23 Jun 2019 07:21 




लखनऊ 23 जून 2019 ।।
आज रविवार को लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी की उच्च स्तरीय बैठक में पार्टी अध्यक्ष मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को एक बार फिर बसपा का उपाध्यक्ष बना दिया। भतीजे आकाश आनंद को रामजी गौतम के साथ पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। 
आकाश को पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने की उम्मीद उसी समय बंधने लगी थी जब लोकसभा चुनाव के दौरान वे कई बार मायावती के बेहद करीब नजर आए थे। 
काफी अटकलों के बाद आखिरकार मायावती ने उनका परिचय कराया था और भविष्य में उन्हें पार्टी में अहम जिम्मेदारी देने का इशारा भी किया था। अब वह आकाश आनंद को सक्रिय राजनीति में ले आई हैं, लेकिन मायावती के परिवार के लोगों को पार्टी में इतने ऊंचे पद देने के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या बसपा भी अब परिवारवाद की राजनीति करेगी? बसपा को आगे बढ़ाने के लिए मायावती को अपने परिवार से बाहर का कोई सदस्य क्यों नहीं मिला?

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला कहते हैं कि मान्यवर कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी और दलित आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार के किसी सदस्य को आगे नहीं लाया, बल्कि इसके लिए उन्होंने मायावती का नाम आगे बढ़ाया। बाबा साहब आंबेडकर ने दलित आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार के किसी सदस्य को आगे नहीं बढ़ाया था।

उन्होंने कहा कि मायावती को इन्हीं महापुरुषों से प्रेरणा लेनी चाहिए थी। बड़े सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों को आगे बढ़ाने के लिए इसी तरह के त्याग की जरूरत होती है। जैसे ही कोई दल परिवारवाद के जाल में फंस जाता है तो उसकी एक सीमा निर्धारित हो जाती है और वह इससे आगे नहीं निकल पाता है।

भाजपा के दलित नेता बिजय सोनकर शास्त्री ने मायावती और उनके भाई आनंद कुमार पर दिल्ली सहित अनेक जगहों पर अवैध तरीके से बेनामी संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया था। इन मामलों की जांच अभी भी चल रही है। बसपा के नए कदम पर उनका कहना था कि मायावती हमेशा धनलोभ और परिवार के लिए राजनीति करती रही हैं।

उन्होंने कहा कि वे दलितों के नाम पर राजनीति करती रहीं लेकिन दलित ने यह देखा कि उसके नाम पर राजनीति कर वे करोड़पति-अरबपति बन गई हैं, जबकि उसके हिस्से में कुछ नहीं आया है तो उसका उनसे मोहभंग हो गया।

उन्होंने कहा कि यही कारण है कि दलित समाज को आज नरेंद्र मोदी के रूप में आशा की किरण दिखाई पड़ रही है जो उन्हें घर, शौचालय और गैस कनेक्शन दे रहे हैं। 2014 लोकसभा चुनाव, 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव और हाल ही में सम्पन्न 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिला ऐतिहासिक जनादेश इसी बात का प्रमाण था और मायावती जैसे लोगों को इससे सीख लेनी चाहिए।

कांग्रेस दलित नेता उदितराज (भाजपा में रहते हुए) लगातार मायावती पर परिवारवाद करने का आरोप लगाते रहे थे। उनका कहना था कि मायावती अब दलित नहीं दौलत की बेटी की तरह व्यवहार कर रही हैं। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा में वे दलित आन्दोलन को भी नुकसान पहुंचा रही हैं। उदितराज के मुताबिक  मौजूदा समय में बहुजन समाज पार्टी के कमजोर होने के पीछे भी उनकी यही सोच जिम्मेदार रही है।

‘कांग्रेस-भाजपा की राह पर मायावती’

दलित चिंतक अशोक भारती कहते हैं कि मायावती अब पूरी तरह कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की राह पर चल पड़ी हैं। जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर परिवार को आगे बढ़ा रही हैं। यही कारण है कि आज बसपा लगातार कमजोर हो रही है। अब उसे अपनी राजनीतिक जरूरतों के लिए अन्य दलों से समझौता करना पड़ा है।

क्या इससे दलित आंदोलन कमजोर पड़ेगा? इस सवाल पर अशोक भारती कहते हैं कि दलित अपने आदर्श के लिए केवल आंबेडकर और महात्मा बुद्ध की तरफ देखते हैं। इस आन्दोलन में किसी अन्य व्यक्ति का कोई बड़ा रोल नहीं है।

यही कारण है कि बसपा या किसी अन्य दल के कमजोर होने से दलित आंदोलन को कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि पिछली लोकसभा में बसपा का एक भी सदस्य न होने के बावजूद हम एससी/एसटी एक्ट और रोस्टर सिस्टम पर सरकार को झुकाने में सफल रहे थे।
(साभार)