मुजफ्फरपुर : सरकार की लापरवाही से मुजफ्फरपुर में मरे है सैकड़ो बच्चे , एसएफआई ने विज्ञप्ति जारी कर लगाया है आरोप , आंकड़ो के द्वारा बिहार सरकार को किया है कटघरे में खड़ा
सरकार की लापरवाही से मुजफ्फरपुर में मरे है सैकड़ो बच्चे , एसएफआई ने विज्ञप्ति जारी कर लगाया है आरोप ,
आंकड़ो के द्वारा बिहार सरकार को किया है कटघरे में खड़ा
ए कुमार
मुफ्फरपुर 21 जून 2019 ।। बिहार में एसएफआई ने बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से सैकड़ो बच्चो के मरने के लिये सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हुए दोषी होने के सबूत वाले आंकड़े भी विज्ञप्ति जारी करके आमजन के सामने नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा करने का काम किये है । एसएफआई द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार --
बिहार के मुजफ्फरपुर जिला इन दिनों देशभर में बच्चों की हो रही मौत के कारण चर्चा में है। मीडिया के रिपोर्ट के अनुसार 200 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। ये मौत एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (AES) नाम की बीमारी की वजह से हो रही है। खून में ग्लूकोस लेवल कम हो जाता है और दिमाग काम करना बंद कर देता है। अगर एक घंटे के भीतर इन बच्चों का इलाज किया जाए तो इनको आसानी से बचाया जा सकता है। लेकिन आस पास के पीएचसी काम नहीं करते है और उनको मुजफ्फरपुर के सदर अस्पताल में लेकर आना पड़ता है। बहुत से बच्चों की मौत रास्ते में ही हो जाती है। आसपास के जिले से भी बच्चे मुजफ्फरपुर के सदर अस्पताल में ही आते है। एन.एस.एस.ओ. के हिसाब से बिहार में 3000 पी.एच.सी. होने चाहिए लेकिन यहाँ लगभग 1800 ही पी.एच.सी. है।
वही बिहार में लगभग 12000 डाक्टरों की जरूरत है लेकिन यहाँ सिर्फ 6000 डाक्टर हैं। बिहार में 17685 व्यक्ति पर एक डाक्टर है जो देश के बाकी राज्यों से बुरी हालत है। इस बीच राज्य सरकार और स्वास्थ मंत्रालय स्थिति को काबू करने में पूरी तरह से नाकाम हुआ है। पिछले एक साल में बच्चों के टीकाकरण का काम सिर्फ़ 76 प्रतिशत हो सका है। अगर पूरी तरह से टीकाकरण हो जाता तो शायद इन बच्चों को मरने से बचाया जा सकता था। इस बीमारी से बचाव के लिए लोगों को ठीक से जागरूक भी नहीं किया गया। बिहार सरकार के स्वास्थ मंत्री मंगल पांडेय को जैसे बच्चों की मौत की कोई चिंता ही नहीं है। प्रेस कांफ्रेंस में बैठकर वो बेशर्मी के साथ पूछ रहे थे कि क्रिकेट मैच में कितना विकेट गिरा है।
इस बीमारी से जिन बच्चों की मौत हुई है वो सब गरीब परिवार से हैं इसलिए सरकार को भी कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा। ये सभी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। बिहार सरकार भले ही दावा करती हो कि बिहार की विकास दर सबसे तेज है लेकिन ये भी सच्चाई है कि बिहार मे 44 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इस से साफ जाहिर होता है कि बिहार में आँगनबड़ी और मिड डे मील की क्या स्थिति है क्योंकि ये योजनाएँ कुपोषण को दूर करने के लिए ही बनाई गई थीं। बिहार सरकार ने स्वास्थ के बजट में 2016-17 की तुलना में 2017-18 में 1200 करोड़ रुपये की कमी कर दी है इसके समझा जा सकता है कि वह स्वास्थ को लेकर कितना चिंतित है।
यह भी आरोप लगाया है कि बिहार में शिक्षा के साथ साथ स्वास्थ की बुरी स्थिति है। सरकार अपनी जिम्मेदरी से बच रही है और सार्वजनिक सेवाओं में निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। शिक्षा और स्वास्थ गरीब जनता की पहुँच से दूर होती जा रहा है। हमें इन सेवाओं तक जनता की पहुँच को सुनिश्चित करना होगा। एस.एफ.आई. यह मानती है कि शिक्षा और स्वास्थ जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए सरकार को बजट बढ़ाना चाहिए। एस.एफ.आई. मुजफ्फरपुर के बच्चों के साथ संवेदना प्रकट करती है। एस.एफ.आई. देश भर के छात्रों से अपील करती है कि वो बच्चों की मदद के लिए आगे आएँ। सरकारी मशीनरी पूरी तरह से फेल हो गई है। हमें जन भागीगारी के साथ उसे फिर से बहाल कराना होगा।
आंकड़ो के द्वारा बिहार सरकार को किया है कटघरे में खड़ा
ए कुमार
मुफ्फरपुर 21 जून 2019 ।। बिहार में एसएफआई ने बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से सैकड़ो बच्चो के मरने के लिये सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हुए दोषी होने के सबूत वाले आंकड़े भी विज्ञप्ति जारी करके आमजन के सामने नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा करने का काम किये है । एसएफआई द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार --
बिहार के मुजफ्फरपुर जिला इन दिनों देशभर में बच्चों की हो रही मौत के कारण चर्चा में है। मीडिया के रिपोर्ट के अनुसार 200 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। ये मौत एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (AES) नाम की बीमारी की वजह से हो रही है। खून में ग्लूकोस लेवल कम हो जाता है और दिमाग काम करना बंद कर देता है। अगर एक घंटे के भीतर इन बच्चों का इलाज किया जाए तो इनको आसानी से बचाया जा सकता है। लेकिन आस पास के पीएचसी काम नहीं करते है और उनको मुजफ्फरपुर के सदर अस्पताल में लेकर आना पड़ता है। बहुत से बच्चों की मौत रास्ते में ही हो जाती है। आसपास के जिले से भी बच्चे मुजफ्फरपुर के सदर अस्पताल में ही आते है। एन.एस.एस.ओ. के हिसाब से बिहार में 3000 पी.एच.सी. होने चाहिए लेकिन यहाँ लगभग 1800 ही पी.एच.सी. है।
वही बिहार में लगभग 12000 डाक्टरों की जरूरत है लेकिन यहाँ सिर्फ 6000 डाक्टर हैं। बिहार में 17685 व्यक्ति पर एक डाक्टर है जो देश के बाकी राज्यों से बुरी हालत है। इस बीच राज्य सरकार और स्वास्थ मंत्रालय स्थिति को काबू करने में पूरी तरह से नाकाम हुआ है। पिछले एक साल में बच्चों के टीकाकरण का काम सिर्फ़ 76 प्रतिशत हो सका है। अगर पूरी तरह से टीकाकरण हो जाता तो शायद इन बच्चों को मरने से बचाया जा सकता था। इस बीमारी से बचाव के लिए लोगों को ठीक से जागरूक भी नहीं किया गया। बिहार सरकार के स्वास्थ मंत्री मंगल पांडेय को जैसे बच्चों की मौत की कोई चिंता ही नहीं है। प्रेस कांफ्रेंस में बैठकर वो बेशर्मी के साथ पूछ रहे थे कि क्रिकेट मैच में कितना विकेट गिरा है।
इस बीमारी से जिन बच्चों की मौत हुई है वो सब गरीब परिवार से हैं इसलिए सरकार को भी कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा। ये सभी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। बिहार सरकार भले ही दावा करती हो कि बिहार की विकास दर सबसे तेज है लेकिन ये भी सच्चाई है कि बिहार मे 44 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इस से साफ जाहिर होता है कि बिहार में आँगनबड़ी और मिड डे मील की क्या स्थिति है क्योंकि ये योजनाएँ कुपोषण को दूर करने के लिए ही बनाई गई थीं। बिहार सरकार ने स्वास्थ के बजट में 2016-17 की तुलना में 2017-18 में 1200 करोड़ रुपये की कमी कर दी है इसके समझा जा सकता है कि वह स्वास्थ को लेकर कितना चिंतित है।
यह भी आरोप लगाया है कि बिहार में शिक्षा के साथ साथ स्वास्थ की बुरी स्थिति है। सरकार अपनी जिम्मेदरी से बच रही है और सार्वजनिक सेवाओं में निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। शिक्षा और स्वास्थ गरीब जनता की पहुँच से दूर होती जा रहा है। हमें इन सेवाओं तक जनता की पहुँच को सुनिश्चित करना होगा। एस.एफ.आई. यह मानती है कि शिक्षा और स्वास्थ जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए सरकार को बजट बढ़ाना चाहिए। एस.एफ.आई. मुजफ्फरपुर के बच्चों के साथ संवेदना प्रकट करती है। एस.एफ.आई. देश भर के छात्रों से अपील करती है कि वो बच्चों की मदद के लिए आगे आएँ। सरकारी मशीनरी पूरी तरह से फेल हो गई है। हमें जन भागीगारी के साथ उसे फिर से बहाल कराना होगा।