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बलिया : हिन्दी प्यार, संस्कार एवं संवाद की एक सुमधुर भाषा : हिन्दी हमारी आत्मा की भाषा , हिन्दी भाषा ही नहीं, भावों की है अभिव्यक्ति : डॉ गणेश पाठक


 हिन्दी प्यार, संस्कार एवं संवाद की एक सुमधुर भाषा : हिन्दी हमारी आत्मा की भाषा , हिन्दी भाषा ही नहीं, भावों की है अभिव्यक्ति : डॉ गणेश पाठक
डॉ सुनील कुमार ओझा

बलिया 14 सितम्बर 2019 ।। हम प्रति वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाते हैं । किन्तु मुझे कुछ असहज लगता है ।कारण कि हम किसी का दिवस तो उसकी याद करने के लिए मनाते हैं। तो क्या हम हिन्दी को भूल गये हैं? या हिन्दी के प्रति अपने कर्तव्य को भूल गये हैं? यह सही भी है। क्योंकि आज तक हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा नहीं बन पायी। जबकि वास्तविकता यह हैकि हिन्दी भाषा के मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से अधिक है, जबकि अंग्रेजी के मूल शब्द मात्र 19,000 हैं। आज हिन्दी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त भाषा हो गयी है। हिन्दी 64 करोड़ लोगों की मातृ भाषा, 24 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा एवं 42 करोड़ लोगों की तीसरी भाषा है। आज विश्व के 206 देशों में हिन्दी बोली जा रही है, जिनकी संख्या 1 अरब 39 करोड़ से भी अधिक हो गयी है। विश्व के सभी देश अपनी मातृभाषा में ही सभी कार्य कर विकसित हुए हैं, किन्तु वाह रे विडम्बना आज तक हमारी हिन्दी राष्ट्र भाषा नहीं बन पायी। जब कि अपनी भाषा में ही देश का समग्र विकास होता है। जैसाकि भारतेन्दु जी ने कहा भी है कि-
" निज भाषा उन्नति अहै,
सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के,
मिटे ना हिय के सूल।।
    वह देश एवं वहाँ का नागरिक परम् सौभाग्यशाली होता है, जहाँ की भाषा मातृभाषा, लोकभाषा एवं राष्ट्रभाषा होती है।
      जहाँ तक हिन्दी का प्रश्न है तो हिन्दी हमारे रग- रग में रची- बसी है एवं हमारे मिट्टी की भाषा है। हिन्दी समस्त भारत को जोड़ने वाली एवं अनेकता में एकता कायम करने वाली भाषा है। हिन्दी प्यार, संस्कार एवं संवाद की एक सुमधुर भाषा है। हिन्दी हमारी आत्मा की भाषा है। हिन्दी भाषा ही नहीं, भावों की अभिव्यक्ति है।
   हिन्दी ही सभ्यता है,
   हिन्दी ही संस्कृति है।
   सरल है, सुबोध है,
   सुन्दर अभिव्यक्ति है।
   भारत माँ के भाल पर,
  सजी स्वर्णिम बिन्दी है।
    यह भारत माँ की बेटी,
   आपकी अपनी हिन्दी है।
          सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारी हिन्दी एक पूर्णः वैज्ञानिक भाषा है। हिन्दी भाषा के जितने शब्द हैं  वो वैज्ञानिकता से ओत- प्रोत हैं और उनके उच्चारण के स्थान हैं वो भी वैज्ञानिकता कू आदार पर हैं। जैसे-
 1. क, ख, ग, घ ये कंठ से उच्चारित शब्द हैं, जिन्हें कंठव्य कहा जाता है।
2. च, छ, ज ,झ ये तालू से उच्चारित शब्द हैं, जिन्हें तालव्य कहा जाता है
3. ट, ठ, ड, ढ,  ये जीभ के मूर्धा से उच्चारित शब्द हैं, जिन्हें मूर्धन्य कहा जाता है।
4. त, थ, द, ध ये जीभ एवं दाँतों से उच्चारित शब्द हैं, जिन्हें दंतीय कहा जाता है।
5. प, फ, ब, भ, ओठों से उच्चारित इन शब्दों को ओठव्य कहा जाता है।
       आज हिन्दी दिवस पर हिन्दी की सार्थकता हेतु मेरे गुरूदेव प्रो०राणा पी० बी० सिंह द्वारा प्रेषित इन तथ्यों को भी जानना समीचीन प्रतीत हैता है-
क - क्लेश न करें। ख- खराब न करें। ग- गर्व न करें। घ- घमण्ड न करें। च- चिंता न करें। छ- छल- कपट न करें। ज- जबाबदारी निभावें। झ- झूठ न बोलें। ट- टिप्पणी न करें। ठ- ठगी न करें। ड- डरपोक न बने। ढ- ढोंग न करें। त- तैश में न आएँ। थ- थकें नहीं। द- दिलदार बनें। ध- धोखा न दें। न- नम्र बनें। प- पाप न करें। फ- फालतू काम न करें। ब- बिगाड़ न करें।भ- भावुक बनें। म- मधुर बनें। य- यशस्वी बनें। र- रोओ मत। ल- लोभ मत करो। व- वैर मत करो। श- शत्रुता मत करो। ष- षटकोण की तरह स्थिर रहो। स- सच बोलो। ह- हँसमुख रहो। क्ष- क्षमा करो। त्र- त्रास मत करो। ज्ञ- ज्ञानी बनो।
   और अंत में- हमारी सभ्यता-संस्कृति की पहचान है हिन्दी।
हमारी आन, बान, शान एवं मान है हिन्दी।
आओ हम सब मिलकर हिन्दी कोअपनाएँ, समृद्ध बनाए।
हमारे रग-रग में रची- बसी हमारी भषा है हिन्दी।
भारत माँ के भाल पर सजी स्वर्णिम बिंदी है हिन्दी।
हिन्दुस्तान के समग्र विकास की माध्यम है हिन्दी।
जय हिन्दी, जय हिन्दुस्तान।


 आज की हिन्दी की स्थिति को देखते हुए  "स्पर्श" रूपी कविता का समर्पण

डॉ सुनील कुमार ओझा (उपसम्पादक बलियाएक्सप्रेस)प्राध्यापक -अमर नाथ मिश्र पी0जी0 कालेज दुबेछपरा बलिया

                            स्पर्श 

सुना था माँ का स्वर, सुषुप्ता में,
          आहट देकर, जिसनें हमें जगाया।
अब भूल गए, खोकर बडप्पन में,
          निधियां छोड़, निन्दा गले लगाया।।

जिसका रहा गर्व यहां, सदियों से,
          उस भाषा से जब समाज शर्माया।
फिर उत्कंठित किस मुख से अब,
          तड़पते, गरजते, लोग ये भरमाया।।

घर फूंक, तमाशा देखने वालों के,
          हाथ कुछ, लगते नहीं, कभी कहीं।
जगा लो जगती, आत्मा ये अपनी,
          बरना, कोसेगी पीढ़ियां, यहीं कहीं।।

मातृत्व मिला, हिन्दी से, हिन्दू को,
          हिन्दुस्तान खड़ा है, इसको सहेज।
आततायी आये और चले गये पर,
          मिला उन्हें जीवन, जब रहे सहेज।।

बावरा 'पथिक', तुझसे उत्तम नहीं,
          सर्वोत्तम, गुणों की खान है अन्दर।
पहचान लो, अब भी, स्वयं को ही,
          रुप तेरा, अच्छा नहीं, जैसा बन्दर।।

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