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बलिया एक्सप्रेस का बड़ा खुलासा : ददरी मेला के खर्च को 50-55 लाख से 1 करोड़ के पार पहुंचाया , फिर कैसे कह रहे है चेयरमैन साहब की 61 लाख कमाया ?

बलिया एक्सप्रेस का बड़ा खुलासा : ददरी मेला के खर्च को 50-55 लाख से 1 करोड़ के पार पहुंचाया , फिर कैसे कह रहे है चेयरमैन साहब की 61 लाख कमाया ?
मधुसूदन सिंह की स्पेशल रिपोर्ट

बलिया 18 अक्टूबर 2019 ।। सच ही कहा है आंख बंद करके किसी भी व्यक्ति पर विश्वास करना बहुत ही खतरनाक होता है । बलिया शहर की जनता के साथ भी यही हो रहा है । समाजसेवा नाम और चुनावी गणित के सहारे चेयरमैन की कुर्सी तक पहुंचे अजय कुमार समाजसेवी नित्य प्रतिदिन नये नये इतिहास रचते जा रहे है । नगर पालिका के इतिहास में ये पहले चेयरमैन है जिनके खिलाफ 25 में से 23 सभासद इनके आर्थिक पावर को सीज करने की बात किये थे ,बोर्ड में हंगामा किये थे । वावजूद इसके इन्होंने सभासदों को ही जनता की नजर में चोर और ठेकेदार साबित करने की भरपूर कोशिश ही नही की , जनता को विश्वास दिलाने में कामयाब भी रहे ।
  पिछले साल के ददरी मेला के नन्दी ग्राम प्रभारी सभासद ने इनके एक प्राइवेट सहयोगी को रात में जानवरों की गाड़ी पार कराने के आरोप में जमकर ठुकाई भी कर दी थी । यही नही मेला में फुटपाथ पर बैठकर ठेला लगाकर व्यापार करने वालो से नगर पालिका की फर्जी रसीद पर वसूली का भी मामला खूब गरमाया , यहां तक कि दुकानदारों ने हड़ताल भी कर दी थी , फिर भी इनकी सेहत पर कोई असर नही हुआ क्योंकि ये ईमानदार जो ठहरे । पूरा शहर तालाब बन गया पर इसकी भी जिम्मेदारी इनकी नही विरोध करने वाले सभासदों की थी । आइये अब आपको पिछले साल के ददरी मेला के आयोजन से सम्बंधित आंकड़ो की तरफ ले चलते है । लाभ का मतलब आप सभी लोग जानते है कि आमदनी में से खर्च घटाने के बाद जो बचता है वही लाभ कहलाता है । पिछले ददरी मेला में नन्दी ग्राम और ददरी दोनो को मिलाकर नगर पालिका बलिया को कुल लगभग 61 लाख के राजस्व की प्राप्ति हुई । बता दे कि यह राजस्व की प्राप्ति हुई न कि लाभ हुआ ? जबकि हमारे व्यापारी चेयरमैन साहब पूरे एक साल से इसको अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करते हुए कहते रहे कि मेले में 61 लाख का लाभ हुआ । जबकि इस 61 लाख के राजस्व में 18 प्रतिशत जीएसटी भी शामिल थी । यानी लगभग 11 लाख जीएसटी जमा करने के बाद कुल प्राप्त राजस्व 50 लाख ही रह गया ।
   वर्ष 2018 के ददरी मेला में प्राप्त राजस्व की अगर पिछले चेयरमैन के कार्यकाल में लगने वाले मेला में प्राप्त राजस्व से अगर तुलना करें तो 2018 में लगभग 15 लाख अधिक वसूली हुई । मगर जब पिछले कार्यकाल और 2018 के मेले में हुए खर्च की तुलना की गई तो समाजसेवी चेयरमैन ने खर्च के सारे रिकॉर्ड को तोड़ते हुए लगभग 60 लाख अधिक खर्च कर डाले यानी आमदनी अठन्नी खर्चा सवा रुपैया । अब यह समझ मे नही आ रहा है कि लगभग एक करोड़ 20 लाख खर्च और 50 लाख की आमदनी के वावजूद चेयरमैन साहब कैसे कह रहे है कि पिछले साल मेला 61 लाख के फायदे में रहा ?  बलिया शहर के विकास का लगभग 70 लाख रुपये चेयरमैन साहब की वन मैन आर्मी की सोच के चलते मेला में बह गया , फिर भी हुआ फायदा ? बता दे कि पिछले अध्यक्षो के कार्यकालों में यह मेला अधिकतम 50 से 55 लाख के खर्च में सम्पन्न हो जाता था और नगर पालिका को अपने बोर्ड फंड से अधिकतम 15 लाख ही लगाने पड़ते थे जबकि वर्तमान चेयरमैन साहब ने अपने पहले ही आयोजन में बोर्ड फंड/अन्य मद से एक ही झटके में पिछले कार्यकालों के चार गुना खर्च करके मेला को करोपति खर्च वाला बना दिया ।
   बलिया एक्सप्रेस को हाथ लगे दस्तावेजो के अनुसार 2018 में मेला मद में हुए भुगतान का विवरण निम्न है --
लैंड प्रतिकर (किसानों को) -----739395
बिजली                               2103135
गंगा आरती।                          142537
कार्तिक पूर्णिमा।                      65000
चेतक प्रतियोगिता।                   25000
मुशायरा                               375000
कौव्वाली।                            102000
जमानत वापसी                       95000
सांस्कृतिक कार्यक्रम               523000
दंगल                                     35000
भूमि पूजन                             43109
संत समागम                         117414
ददरी कुली                           119350
ददरी ऑफिस                       327305
पीआरडी                             160250
लेखन सामग्री                         56127
शौचालय/पेशाब घर               339986
प्रचार                                    51900
निर्माण                                115506
टेंट/ शामियाना                    1110698
बेरिकेटिंग                             950981
मिट्टी                                   919137
हैण्डपम्प                             401525
सफाई मजदूर                       363013
जलपान                                 65147
Sharta sivir                       63896
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कुल भुगतान अबतक           9410411 रुपये मात्र

  यह तो वह रकम है जिसका भुगतान हो गया है जबकि अभी भी लगभग 15 लाख रुपये का भुगतान लंबित है । चेयरमैन साहब के कथनानुसार अनुराधा पौड़वाल और कुमार विश्वास के ऊपर खर्च हुए लगभग 14 लाख की धनराशि वो निजी तौर पर वहन किये है । इन सब खर्चो को मिला दिया जाय तो पिछले साल ददरी मेला के आयोजन पर लगभग एक करोड़ 30 लाख की भारी भरकम राशि खर्च हुई । यानी बलिया शहर के विकास के लिये आयी लगभग 70 लाख रुपये की धनराशि मेले में बर्बाद हो गयी । इसके अलावा कर्मचारियों को मेला में काम करने के कारण मिलने वाला लाखो रुपये का बोनस अतिरिक्त खर्च है ।

नही बनी कोई आयोजन समिति
 पिछले अध्यक्षो के कार्यकालों में ददरी मेला लगने के लगभग एक माह पहले ही मेला की रूपरेखा तय करने के लिये अध्यक्ष , सभासदों और अधिकारी कर्मचारियों की एक संयुक्त बैठक होती थी । इस बैठक में विभिन्न कार्यक्रमों के लिये सभासदों और अधिकारी कर्मचारियों की अलग अलग समितियां बनती थी जो अपने अपने निर्धारित दायित्वों को सफलतापूर्वक निर्वहन करके कार्यक्रमों को पूर्ण कराती थी । वर्तमान चेयरमैन साहब के राज में चूंकि इनको सभासदों की ईमानदारी पर संदेह है इसलिये ऐसी किसी भी समिति को अब तक नही बनाये है । पिछले साल एक आध समितियां बनी थी लेकिन उनके प्रमुखों की सलाह को माना ही नही गया था जिससे विवाद हो गया था । मेला लगने में 10 दिन बचे है लेकिन अबतक कोई भी समिति नही बनी है ।

पिछले साल मेले में हुई दो मौत
एक तरफ जहां चेयरमैन साहब के नाम मेला में सवा करोड़ खर्च करने का ऐतिहासिक रिकार्ड कायम हुआ , वही मेले में पहली बार दो मौते भी हुई । जहां एक लड़की चर्खी से गिरकर मरी तो वही दूसरी घटना में बदमाशों ने व्यापारियों पर हमला करके एक व्यापारी की हत्या करके लूट की घटना को अंजाम दिया था ।

साधना गुप्ता के कार्यकाल में उठा था मेले को ठेका पर देने का मामला
  आमदनी से ज्यादे खर्च होने पर पूर्व चेयरमैन साधना गुप्ता के कार्यकाल में यह मामला उठा था और विचार हो रहा था कि क्यो न पूरे मेले को ठेके पर दे दिया जाय जिससे नगर पालिका को प्रति वर्ष होने वाले लाखो रुपये के नुकसान से बचाया जाए । प्रस्ताव यह था कि ऐसा ठेका किया जाय ।इसमे ठेकेदार मेले से प्राप्त राजस्व का एक निर्धारित प्रतिशत नगर पालिका में जमा करें, नगर पालिका सिर्फ मॉनिटर की भूमिका में कार्य करती । प्रत्येक वर्ष होने वाले कार्यक्रमों को ठेकेदार अपने स्तर से आयोजित करता । पर यह सुझाव , ठंडे बस्ते में चला गया ।