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गुरु नानक देव की 550 वी जयंती पर विशेष : वो महामानव जिन्होने रखी सहज, सरल,संगठित समाज की नींव,तोड़ डाले धर्म जाति के बंधन

पेंटर सोभा सिंह का बनाया चित्र।पेंटर सोभा सिंह का बनाया चित्र

  • सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 
  • 1469 में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को 
  • हुआ था ।
  • वह हमेशा वंचितों के साथ खड़े रहे,अछूत समझे 
  • जाने वालों के यहां रुके और उनके हाथों का भोजन
  •  किया ।
  • गुरु नानक देव जी की 3 सबसे बड़ी शिक्षाएं- 
  • नाम जपो, किरत करो और वंड छको

बलिया 12 नवम्बर 2019 ।।

सिखों के पहले गुरु नानक देवजी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को हुआ। आज 550वें प्रकाश पर्व पर पढ़िए नानक जी के समाज में मौजूद विभाजन मिटाने के तरीके और कैसे उन्होंने जात-पात, अमीर-गरीब के भेद को मिटाया। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक...

नीचा अंदर नीच जाति नीच हो अति नीच
नानक तिनके संग साथ बढ़िया के ऊंका रीस।।

यानी-नीचों में भी जो नीच जाति के हैं, उनमें भी जो सबसे नीचे हैं, मैं उनके साथ हूं। खुद को बड़ा मानने वालों से मेरा नाता नहीं है।
वंचितों के साथ खड़े रहे: अछूत समझे जाने वालों के
 यहां रुके और उनके हाथों का भोजन किया
नानक जी जब गुजरांवाला गए तो एक भक्त लालो बढ़ई
 के यहां ठहरे। बात फैल गई कि उच्च जाति का संत
 अछूत लालो के घर पर रुका है। गांव के मुखिया मलिक
भागो ने नानक जी को भोजन पर बुलाया। पर नानक
 जी ने मना कर दिया। उन्होंने कहा- लालो की सूखी
रोटियों में मुझे शहद का स्वाद आता है।
कहा:
परिश्रम से कमाकर, उसमें से भी कुछ बचाकर लोगों
की मदद करने, भूखे को खिलाने वाला श्रेष्ठ है।
विभाजन को तोड़ा:ऐसा समूह बनाया जिसमें
 धर्म-जाति के आधार पर कोई भेद नहीं था
गुरु नानक जी ने समाज को अनेक भागों में बंटा देखा।
उन्हें लगा कि धर्म पर कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया
 है और इसे धन उगाही का धंधा बना लिया है। इसलिए
 उन्होंने एक ऐसा समूह बनाने का निश्चय किया, जिसमें
 जन्म, धर्म और जाति के लिहाज से कोई छोटा-बड़ा
 न हो।
किया:
सामुदायिक उपासना की प्रथा शुरू की। इसमें शामिल
लोगों के लिए जात-पात का बंधन नहीं था।
छुआछूत पर प्रहार किया:सभी जातियों को जोड़ 
एक साथ भोजन बनवाया और खिलाया
करतारपुर में नानक जी संगत में आए लोगों के साथ
भोजन करने बैठे थे। भोजन परोस दिया गया था,
लेकिन नानक जी ने कहा जिन्होंने भोजन बनाया
 है और जिन्होंने यहां झाड़ू लगाई वो तो अभी आए
नहीं। वो अलग भोजन क्यों करेंगे? ईश्वर ने सबको
समान बनाया है। सब साथ भोजन करेंगे।
समझाया:
छुआछूत छोड़ सब एक साथ, एक ही पंगत में
भोजन करें, इसलिए लंगर प्रथा शुरू की।
गुरु नानक देव जी की 3 सबसे बड़ी शिक्षाएं- नाम 
जपो, किरत करो और वंड छको
गुरु नानक जी की तीनों बड़ी शिक्षाएं इंसानी जीवन
 को खुशहाली से जीने का मंत्र देती हैं। ये शिक्षाएं
 हैं नाम जपना, किरत करना और वंड छकना। आज
इन्हीं तीन मंत्रों पर सिख धर्म चलता है। ये सीखें कर्म
से जुड़ी हुई हैं। कर्म में श्रेष्ठता लाने की ओर ले जाती हैं।
 यानी मन को मजबूत, कर्म को ईमानदार और
कर्मफल के सही इस्तेमाल की सीख देती हैं। यह
 एकाग्रता-परोपकार की ओर भी ले जाती हैं।
नाम जपाे, क्योंकि इसी से आध्यात्मिक और 
मानसिक शक्ति मिलती है, तेज बढ़ता है:
नाम जपो- गुरु नानक जी ने कहा है- ‘सोचै सोचि न
होवई, जो सोची लख वार। चुपै चुपि न होवई,
 जे लाई रहालिवतार।’ यानी ईश्वर का रहस्य सिर्फ
 सोचने से नहीं जाना जा सकता है, इसलिए नाम
जपाे। नाम जपना यानी ईश्वर का नाम बार-बार
सुनना और दोहराना। नानक जी ने इसके दो तरीके
बताए हैं- संगत में रहकर जप किया जाए। संगत
 यानी पवित्र संतों की मंडली। या एकांत में जप
किया जाए। जप से चित्त एकाग्र हो जाता
है और आध्यात्मिक-मानसिक शक्ति मिलती है।
 मनुष्य का तेज बढ़ जाता है।
ईमानदारी से श्रम करो, आजीविका वही सही:
किरत करणी- यानी ईमानदार श्रम से आजीविका
 कमाना। श्रम की भावना सिख अवधारणा का केंद्र
है। इसे स्थापित करने के लिए नानक जी ने अमीर
जमींदार के शानदार भोजन की तुलना में कठिन
 श्रम के माध्यम से अर्जित मोटे भोजन को प्राथमिकता
 दी थी।
जो मिले, वो साझा करो और विश्वास करो...इसी 
सीख पर सिख अपनी आय का दसवां हिस्सा दान 
करते हैं :
 वंड छको- एक बार गुरुनानक जी दो बेटों और भाई
लैहणा (गुरु अंगददेव) के साथ थे। सामने एक शव ढंका
हुआ था। नानक जी ने पूछा- इसे कौन खाएगा। बेटे
 मौन थे। भाई लैहणा ने कहा-मैं खाउंगा। उन्हें गुरू पर
विश्वास था। कपड़ा हटाने पर पवित्र भोजन मिला। भाई
लैहणा ने इसे गुरु को समर्पित कर ग्रहण किया। नानक
जी ने कहा भाई लैहणा को पवित्र भोजन मिला, क्योंकि
उसमें साझा करने का भाव और विश्वास की ताकत है।
 सिख इसी आधार पर आय का दसवां हिस्सा साझा
करते हैं, जिसे दसवंध कहते हैं। इसी से लंगर चलता है।
गुरु नानक जी के संदेशों पर चल रहे सिख धर्म के 
चार पवित्र प्रतीक चिन्ह
  • नानक जी ने अंधविश्वास में फंसे लोगों को निकालने
  •  के लिए ओउ्म शब्द के साथ एक लगाकर एक 
  • ओंकार नाम दिया और संदेश दिया कि ईश्वर एक है। 
  • उसे न तो बांटा जा सकता है और न ही वह किसी 
  • का हिस्सा है। वह सर्वोच्च है।
  • गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन पांचवें गुरु श्री गुरु
  •  अर्जन देव जी ने किया। 16 अगस्त 1604 को 
  • हरिमंदिर साहिब में पहला प्रकाश हुआ। गुरु 
  • गोबिंद सिंह जी ने 1705 में दमदमा साहिब
  •  में गुरु तेग बहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर
  •  इसको पूर्ण किया। इसमें कुल 1430 अंग 
  • (पृष्ठ) हैंै। इसमें सिख गुरुओं सहित 30 
  • अन्य हिंदू संत और मुस्लिम भक्तों की वाणी 
  • भी शामिल है।
  • खंडा निशान साहिब पर अंकित “देग-तेग-फ़तह’ 
  • के सिद्धांत का प्रतीक है। इसके केंद्र में दोधारी
  •  खंडा इस दोधारी अस्त्र की धार अच्छाई को
  •  बुराई से प्रतीकात्मक तौर पर अलग करती है।
  •  एक चक्र वृत्ताकार अनादि परमात्मा के
  •  स्वरूप को दर्शाता है, जिसका न कोई आदि है
  •  ना ही कोई अंत है। 
  • दो कृपाण (मुड़े हुए एकधारी तलवार) मीरी 
  • और पीरी भावों का चित्रण करते हैं। यह 
  • आध्यात्म और राजनीति के समन्वय का प्रतीक
  •  है।
  • निशान साहिब सिख धर्म में बेहद पवित्र माना
  •  जाता हैं। यह खालसा पंथ की मौजूदगी का 
  • प्रतीक है। 
  • श्री गुरु हरगोबिंद साहिब ने पहली बार 
  • केसरिया निशान साहिब 1709 में अकाल तख्त पर 
  • फहराया था।