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बलिया :प्रख्यात साहित्यकार डाॅ. रामसेवक 'विकल' को पुण्यतिथि पर अर्पित किये गये श्रद्धासुमन

बलिया :प्रख्यात साहित्यकार डाॅ. रामसेवक 'विकल' को पुण्यतिथि पर अर्पित किये गये श्रद्धासुमन

डॉ सुनील कुमार ओझा की रिपोर्ट







बलिया 12 नवम्बर 2019 ।।   डाॅ . रामसेवक विकल साहित्य कला संगम संस्थान इसारी सलेमपुर बलिया के कार्यालय में सोमवार को डॉ विकल जी की पुण्यतिथि मनायी गयी। कार्यक्रम की अध्यक्षता  टनमन  सिंह( प्रधान ) और संचालन डॉ आदित्य कुमार अंशु ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मॉ सरस्वती के चित्र पर पुष्प अर्पित कर दीप प्रज्ज्वल कर किया गया, तत्पश्चात उपस्थित सभी लोगों नें डॉ रामसेवक सेवक विकल के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। उसके बाद सन्तोष कुमार शशि ने सरस्वती वंदना - हे हंसवाहिनी हियरा में हमरी समा जइहऽ । को माहौल को स्वरमय बना दिया।  श्री अशोक कुमार यादव ने कहा- मुझे विकल जी की रचनाओं को टाइप करते समय पढ़ने का अवसर मिला जो काफी उच्चकोटि की है।  श्री राम अवतार यादव ने अपनी कविता- तू है पानी का एक  बुलबुला धरती पर क्यों आया।  आकर के क्यों तू भूला।  राजेश यादव ने विकल जी के साहित्य पर अपने विचार प्रस्तुत किये- डॉ विकल जी की रचनाओं को ज्यादे  पढ़ने का अवसर नहीं मिला है परन्तु जितना पढ़ा है उससे ज्ञात होता है कि इस जनपद में उनके जैसा विद्वान नहीं है। खुर्शीद आलम ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा - अच्छे लोगों के साथ रहने से अच्छा  ज्ञान मिलता है।  मुझे उनसे मिलने का अवसर नहीं मिल पाया। श्री प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा- मेरे ख्याल से इस इलाके में डॉ विकल जी जैसा कोई साहित्यकार नहीं है । डॉ संतोष कुमार शशि ने कहा- सबसे जरूरत है नैतिकता की। क्योंकि समाज में लोग अपने पूज्यनियो का सम्मान नहीं करते हैं। अपने पिता के प्रति इस प्रकार का भाव रखकर  डॉ अंशु ने सराहनीय कार्य किया है। प्रज्ञा ने गीत प्रस्तुत की- हे ईश्वर मालिक हे दाता । मुख्य वक्ता के रूप में डॉ सत्येन्द्र कुमार सिंह 'इन्दुराज ' ने कहा - विकल जी जैसे विराट व्यक्तित्व के बारे में ज्यादे क्या कहुँ। मेरे पास शब्दों की कमी है। इस व्यक्तित्व का कई आयाम था । अभावों की दुनिया से निकलकर ज्ञान की ज्योति जमशेदपुर बिहार में जाकर जलाये थे । डॉ विकल जी अपनी अनुपस्थिति को सजीव कर दिया।
श्री हरेराम यादव, पंकज श्रीवास्तव, अंजनी श्रीवास्तव, मनोहर यादव (बड़ू) ,सेराज आलम,अंगद शर्मा, सद्दाम हुसैन, आशुतोष तिवारी, संतोष गुप्ता, अरविंद सिंह आदि ने अपने विचार व्यक्त करते श्रद्धाजंलि दिया। अंत में अध्यक्षीय सम्बोधन में श्री टनमन सिंह ने कहा- डॉ विकल जी की जमीनी स्तर तक साहित्य में पहुँच थी।वे एशिया फेम के साहित्यकार थे।पारिवारिक सहयोग और आर्थिक कारणों से पटल पर नहीं आ पाये । सभी लोगों के  प्रति आभार व्यक्त करते हुए डॉ आदित्य कुमार अंशु ने अपने कहा कि अपने व्यस्ततम समय में से आप निकालकर आये इसके लिए सबके प्रति आभारी हूँ। मैं अपने पुरे परिवार के तरफ से अपने पिता डॉ रामसेवक विकल जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।