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बलिया में रही छठ पर्व की धूम : शुद्धता, पवित्रता,स्वच्छता, पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण का महापर्व है 'छठ'- डा० गणेश पाठक

शुद्धता, पवित्रता,स्वच्छता, पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण का महापर्व है 'छठ'- डा० गणेश पाठक
डॉ सुनील कुमार ओझा की रिपोर्ट










बलिया 2 नवम्बर 2019 ।।  सूर्य पूजा का महापर्व सूर्य षष्ठी पर्व जो छठ माता के पूजन एवं व्रत के रूप में विशेष रूप से प्रसिध्द होकर सबसे गहन आस्था का पर्व हो गया है,  आज पूरे विश्व में आच्छादित होकर अन्तर्राष्ट्रीय पर्व हो गया है। प्राचीन काल से ही भारत में छठ पर्व मनाया जाता आ रहा है। बलिया जनपद समेत पूरे प्रदेश और बिहार , झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशो में पूरे पारम्परिक तरीके से छठ व्रती महिला और पुरुषों ने उल्लास व श्रद्धा के साथ ढलते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य देकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिये सूर्य देव से प्रार्थना की । इस व्रत से खगोलीय घटनाओं का क्या सम्बन्ध है , इसकी विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है ।
शुद्धता का पर्व

 सभी व्रतों में सूर्य षष्ठी का व्रत सबसे अधिक शुद्धता एवं पवित्रता के साथ किया जाता है। यह व्रत एक तरह से तीन दिनों का होता है जो नहाय खाय के साथ प्रारम्भ होकर दूसरे दिन अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य की पूजा की जाती है, जबकि तीसरे दिन उदयागामी सूर्य की पूजा अर्चना करक सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। तीन दिन तक व्रती बिना जल - अन्न ग्रहण किए निराहार रहतें हैं और उनके चहरे पर जरा सी भी सिकन नहीं आती है।
स्वच्छता का पर्व









   छठ व्रत स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। घर की सफाई से लेकर पूजा स्थल तक विधिवत साफ सफाई की जाती है। यह व्रत चूँकि जल स्रोत के पास किया जाता है, इस लिए जल स्रोतों की भी साफ - सफाई जल संरक्षण को ध्यान में रख कर किया जाता है।

पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण का पर्व

    यदि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से देखा जाय तो छठ पर्व पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण का भी पर्व है। इस पर्व में एक तरफ जहाँ प्रकृति के सभी कारकों का पूजा में ध्यान रखा जाता है, वहीं खासतौर से सूर्य पूजा के रूपमें ऊर्जा संरक्षण एवं जल स्रोत की पूजा के रूपमें जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है । कारण कि सृष्टि को चलाने हेतु ऊर्जा , वायु एवं जल ही मुख्य नियामक तत्व हैं।
प्रसाद में केवल प्राकृतिक उत्पादों का ही प्रयोग




छठ पूजा में प्रसाद के रूपमें जिन सामग्रियों को चढ़ाया जाता है वो सभी प्राकृतिक रूपसे उत्पादित पदार्थ ही होते हैं। यही नहीं ऐसे सामग्रियों को प्रसाद के रूपमें रखा जाता है जिसकी प्राप्ति सबके लिए एवं सर्व सुलभ होता है । साथ ही साथ
 ये पदार्थ औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं, जिनका उपयोग कर हम स्वस्थ रह सकते हैं।
  सूर्य षष्ठी पर विशेष खगोलीय घटना होती है घटित
 छठ महापर्व का एक तरफ जहाँ धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व है वहीं दूसरी यह प्रकृति पूजा का भी पर्व है। प्रसाद के रूपमें प्रयोग  की जाने वाली सभी वस्तुएँ शुद्ध रूपसे प्राकृतिक उत्पात होती हैं जो मौसम के अनुसार एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से विशेष उपयोगी एवं ओषधीय गुण वाली होती हैं। सूर्य पूजा के कारण यह प्रगति एवं ओजस्विता का भी पर्व है। यह पर्व सूर्य उपासना का वैज्ञानिक महा अनुष्ठान है। डूबते एवं उगते सूर्य को अर्घ्य देते समय पातँर से जल सतत एवं समरूप से गिरने से जल सीकर पुँज का निर्माण होता है जो सूर्य की हानिकायक अल्ट्रावायलेट किरणों को छान देती हैं, जिससे मात्र उपयोगी किरणें ही शरीर पर पड़ती हैं जो जैव- रासायनिक प्रक्रिया से रोगमुक्त बनाती हैं और स्वास्थ्य में वृद्धि करती हैं। अनुष्ठान के उपवास में आते हीहीलिंग एवं इम्यून सिस्पम तेज हो जाता है। शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विश्राम मिलता है। सूर्य की किरणों में अद्भूत शक्तियां होती हैं , जो प्राणियों एवं वनस्पतियों को जीवनी शक्ति देती हैं। सूर्य की किरणें हर रोग से बचाती हैं । और ऊर्जा के क्षेत्र में विशेष शोध करने वाले प्रो० डा० खर० एन० श्रीवास्तव के अनुसार विभिन्न देशों में किए गये अनुसंधानों से यह पता चला है कि सूर्य स्नान न करने से 100 प्रकार  की खतरनाक बीमारियाँ  होती हैं, जिनमें मधुमेह, घुटने, गर्दन, कमर एवं हड्डियों में दर्द, आस्टियोपोरोसिस, आस्टियोआर्थराइटिस , कैंसर, प्रोस्टेट, ओवरी एवं गर्भाशय कैंसर तथा ब्रेस्ट कैंसर सम्मिलित हैं।


 कार्तिक एवं चैत्र मास में षष्ठी तिथि को होती है खास खगोलीय घटना:  ज्योतषाचार्य पं० नागेंद्र पाण्डेय

     ज्योतषाचार्य पं० नागेंद्र पाण्डेय के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी एवं चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि पर एक विशेष खगोलीय घटना होती है। इस तिथि को विशेष खगोलीय परिवर्तन होत है। गस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं। षष्ठी तिथि को होने वाली विशेष खगोलीय स्थिति में सूर्य की किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित होकर एवं कुछ अपरावर्तित होती हुई पृथ्वी पर पुनः सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। सूर्यास्त एवं सूर्योदय के समय वह और सघन हो जाती हैं। गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक एवं चैत्र मास की अमावस्या के छः दिन पश्चात होती है। इस प्रकार छठ के दौरान होने वाले विधि विधान से कीक्षजाने वाली सूर्य पूजा से सूर्य की पराबैगनी किरणों के दुष्प्रभाव से जीवों की रक्षा होती है। यही कारण है कि सूर्य की पूजा आरोग्य के देवता के रूपमें वैदिक काल से ही होती चली आ रही है। वैज्ञानिकों द्वारा इस तथ्य की भी पुष्टि की जा चुकी है कि सूर्य से निकलने वाली सात रश्मियों में भरपूर औषधीय गुण होता है, जिसे रश्मि चिकित्सा के रूपमें प्रसिद्धि मिल रही है।
     इन सबके बावजूद सूर्य षष्ठी का पर्व आस्था का पर्व है और आस्था के आगे कोई भी दलील नहीं टिक पाती है। वैज्ञानिक भी जब हर तरह से निराश हो जाते हैं तो ईश्वर की आस्था में ही विश्वास करते हैं।
        छठपूजा में व्यस्तता के कारण विस्तृत विवेचन नहीं कर पा रहा हूँ। आज सिर्फ इतना ही।
    जय हो ।